Tuesday, April 20, 2010

फ़ितरत इन्सान की -------इन्सान खुद बनाता है ...................

इस पोस्ट को पढने से पहले पढें-------------इसे...
( क्योंकि इसके बाद ही मै ये सोच पाई हूँ )---



हर कोई बस अपनी ही किस्मत बदलना चाहता है ,
सिर्फ़ अपना घर ही बसाता है भले दूसरों का उजड जाए ,

छोटी-सी चादर भी अगर सबसे बाँट ले कोई ,
तो क्या मजाल किसी की कि कोई भूख
से मर जाए

गर काटा न होता किसी ने बेवजह पेडों को अब तक,
हरी होती वसुन्धरा-
पानी के लिए कोई न लड पाए

बुरा सोचने से किसी का- भला कब हुआ है आज तक ?,
गर अच्छा सोचें जो इन्सां-
तो सबका भला न हो जाए ?


ठान ले जो धनिया अपनी बेटी को पढाना ,
बेटी के साथ ही उसकी-
सारा गाँव भी पढ जाए

ख्ह्वाहिश है मेरी- राह के पत्त्थर हटाने की ,
इस उम्मीद में कि मेरे बाद कोई ठोकर न खा जाए............


फ़ितरत इन्सान की -------इन्सान खुद बनाता है ........
सब सकारात्मक सोचें- तो शायद ये दुनिया बदल जाए.........

8 comments:

विनोद कुमार पांडेय said...

दुनिया ऐसी ही बदल सकती है जब सब अच्छा सोचें और सकारात्मक भी ..हर पंक्ति लाज़वाब..बढ़िया रचना बधाई

राज भाटिय़ा said...

फ़ितरत इन्सान की -------इन्सान खुद बनाता है
सब सकारात्मक सोचें- तो शायद ये दुनिया बदल जाए
आप की यह कविता सकारात्मक सोच लिये है, बहुत सुंदर लगी धन्यवाद

दिलीप said...

Archana ji maan gaye mere vyanga ka kitna sateek hal sujhaya...bas dua hai ki meri rachna chod aapki rachna dil me basa lein to duniya ka manjar hi badal jaye...
shukriya apni kalam se mujhe itna samman dene ke liye...

संजय भास्‍कर said...

फ़ितरत इन्सान की -------इन्सान खुद बनाता है

M VERMA said...

ठान ले जो धनिया अपनी बेटी को पढाना ,
बेटी के साथ ही उसकी- सारा गाँव भी पढ जाए ।

रोशनी की हद में आज भी तो नहीं है धनिया
बेहतरीन रचना

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया!

nilesh mathur said...

फितरत इंसान की के साथ अच्छा सामंजस्य बिठाया है आपने ! लेकिन बुरा मत मानियेगा 'फितरत इंसान की' बेहतरीन रचना बनी है !मैं तो दिलीप साहब का कायल हो गया हूँ

अरुणेश मिश्र said...

उत्कृष्ट ।