Friday, June 25, 2010

क्योंकि ------ प्यार करने वाले -

नींद टूट चुकी थी मेरी
अब तक इतनी बैचैनी -कभी नहीं हुई 
अब लगता है 
मेरा दिल भर गया है 
उफ़न-उफ़न कर बाहर 
गिर रहे हैं शब्द
मैं समेटना चाहती हूँ
अतीत को यादों में
लिखना चाहती हूँ 
कोई किताब
बाँटना चाहती हुँ अनुभव
सुधारना चाहती हूँ सोच 
और, बताना चाहती हूँ उपाय
कई सवालों के ...
"जबाब"  मुझसे नही जाने तो,
ढूँढते रह जाओगे....
आओ-- मदद करो
हाथ बढाओ
समेंटो शब्दों को
और लिखो 
कहानी मेरी 
बहुत पुरानी
बडी लम्बी 
मोटी बनेगी मेरी किताब  
करेगी बहुत हिसाब
और फ़िर 
हम जियेंगे शान से ...
क्योंकि ------
प्यार करने वाले -
जीते हैं --शान से
मरते है ---शान से ...................

अब दिन भर के लिए ये गीत ...............


6 comments:

आचार्य उदय said...

भावपूर्ण अभिव्यक्ति।

अजय कुमार said...

दिल तो बच्चा है जी ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
--
बधाई!

बाल भवन जबलपुर said...

ateet ko bhulana mushkil kintu kabhee kabhee zarooree hai

सुमन कुमार said...

गुमशुदा कविता की तलाश
खो गई है
मेरी कविता
पिछले दो दशको से.
वह देखने में, जनपक्षीय है
कंटीला चेहरा है उसका
जो चुभता है,
शोषको को.
गठीला बदन,
हैसियत रखता है
प्रतिरोध की.
उसका रंग लाल है
वह गई थी मांगने हक़,
गरीबों का.
फिर वापस नहीं लौटी,
आज तक.
मुझे शक है प्रकाशकों के ऊपर,
शायद,
हत्या करवाया गया है
सुपारी देकर.
या फिर पूंजीपतियो द्वारा
सामूहिक वलात्कार कर,
झोक दी गई है
लोहा गलाने की
भट्ठी में.
कहाँ-कहाँ नहीं ढूंढा उसे
शहर में....
गावों में...
खेतों में..
और वादिओं में.....
ऐसा लगता है मुझे
मिटा दिया गया है,
उसका बजूद
समाज के ठीकेदारों द्वारा
अपने हित में.
फिर भी विश्वास है
लौटेगी एक दिन
मेरी खोई हुई
कविता.
क्योंकि नहीं मिला है
हक़.....
गरीबों का.
हाँ देखना तुम
वह लौटेगी वापस एक दिन,
लाल झंडे के निचे
संगठित मजदूरों के बिच,
दिलाने के लिए
उनका हक़.

बाल भवन जबलपुर said...

सुमन जी
कविता को गूगल बज़ पे आज़माइये
इधर टिप्पणी ही रहनें दें .... आप अपनी कविताएं यूं ही भेजें गे इधर उधर तो गुमना स्वाभाविक है