Wednesday, April 20, 2011

अंतर.......

जब भी माँ के घर जाती हूँ उससे मुलाकात होती है,रिश्ते में भाई लगता है मेरा...पास ही रहते हैं और उम्र में भी बराबर,साथ-साथ बड़े हुए..
हम तीन भाई दो बहनें ,वो चार बहनों का अकेला भाई..
लाड़-प्यार में कोई कमी नहीं दोनो के यहाँ....बहुत ज्यादा तो नहीं पर जो थोड़ा बहुत याद आता  है वो उम्र रही होगी १३-१४ साल की...
तब की बात ही और होती थी...तब को-एड नहीं होता था..
प्राथमिक शाला में सब साथ -साथ पढ़ते फ़िर होती थी कन्या माध्यमिक,उच्चतर माध्यमिक शाला इसी तरह बालक माध्यमिक व बालक उच्चतर .....
और यहाँ तक कि अलग स्कूल में पढ़ने की तरह  खेलने के मैदान भी अलग .....आधे यहाँ ,आधे वहाँ....अंतर शुरू....

 मैं  सिमट कर रही  और वो...बिखर कर.....
मेरी  पसन्द गुम होने लगी...उसकी पसन्द का खयाल रखा जाने लगा......मुझे  समय पर घर आना होता था ....वो घर आकर भी बाहर जा सकता था......
मुझे  खाना बनाना सिखाया जाने लगा  .और उसे खाना खाना......
नतीजा ....वही मैने मन को संयम में रखकर सब सीखा ..और उसने मन भी खो दिया....संयम कहाँ रहता ...
अब कई साल बाद फ़िर मिली हूँ उससे....मेरी शादी के बाद सुना था उसकी भी शादी कर दी गई......
कहते हैं न मुसीबतें किसकों नहीं आती.......दोनों पर आई...
मैं लड़ती रही हमेशा उनसे और वो......सिगरेट और शराब में मुसीबतों को  डुबाते रहा.....जिंदगी चलती रही मेरी भी और उसकी भी.......

अब वो बीमार है और उसकी माँ,पत्नि,बेटी उसकी देखभाल करती है.......
सोचती हूँ, मैं  अगर बीमार हुई तो .....कोई नहीं होगा....

मै फ़िर अकेली.........
क्यूँ सोचती हूँ मैं................

21 comments:

पद्म सिंह said...

संघर्ष किसी और मायने में इंसान को आत्मबल प्रदान करता है. वहीँ निरंतर सुख के अपने नकारात्मक प्रभाव होते हैं... अगर बुद्ध को दुखों के दर्शन न होते तो बुद्ध बुद्ध न होते... और स्त्रियाँ सदियों से इसी संघर्षमय जीवन के कारण मानसिक रूप से अधिक बलवान और सहनशील होती रही हैं.

रश्मि प्रभा... said...

जाने कैसे यह फर्क माँ बाप कर लेते हैं !

आशु said...

यह फ़र्क क्यों ?? हमारे ही समाज ने पैदा किया हुआ है..कौन कहता है की एक लड़की, बहन व् माँ में कभी फ़र्क हो सकता है

Satish Saxena said...

खुश रहा करिए ....शुभकामनायें !!

vandana gupta said...

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (21-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

http://charchamanch.blogspot.com/

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

शायद हर स्त्री की यही कहानी है ..

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत मार्मिक पोस्ट!

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

मर्मस्पर्शी लेखन ....आशा ही जीवन है

संजय भास्‍कर said...

आदरणीय अर्चना जी
...बहुत मर्मस्पर्शी लिख है आपने

राज भाटिय़ा said...

इतना फ़र्क तो जायज हे, लडकी खाना बनाना नही सीखे गी तो क्या क्रिकेट खेलना सीखेगी, फ़िर भगवान ना करे कभी आप बिमार हो जाये, अगर कभी बिमार हुयी तो आप के बच्चे, आप के पति आप की देख भाल करेगे... मेरी बीबी जब भी बिमार होती हे तो बच्चे ओर मै सब को फ़िक्र होती हे, अगर एक दिन भी उदास दिखे तो हम हजार बार पुछते हे, जब कि मेरे से कोई नही पुछता...
नर ओर नारी को भगवान ने भी थोडा अलग अलग बनाया हे, अगर दोनो के गुण एक दुसरे मे आ जाये तो बहुत गडबड लगती हे, ओर स्भाव भी अलग अलग अलग बनाया हे, नारी को कोमल ओर मर्द को सख्त, अगर नारी सख्त हो ओर मर्द कोमल तो....

संजय @ मो सम कौन... said...

B +

udaya veer singh said...

prabhavkari lekh samajik hit chinatan
dusaron ka prerana srot banata hai . sunder vicharon ke liye shukriya ji.

विशाल said...

आप के मर्मस्पर्शी लेखन में मुझे एक अलग सी खुशबू आयी है.
इसी खुशबू को अपनी खुशियों का आधार बना लीजिये.
सलाम.

Dr (Miss) Sharad Singh said...

विचारणीय ...मर्मस्पर्शी कहानी....

रजनीश तिवारी said...

कुछ चीजें पता नहीं क्यूँ नहीं बदलती । बहुत मर्मस्पर्शी लेखन ।

अनामिका की सदायें ...... said...

shuru se ladkiyon ko apne man par niyantran rakhna sikhaya jata hai jo unhe har jagah maryaadaon me rahne aur har sthiti ka saamna karne me mazbuti bhi sikhata hai. jab aap bimar ya akeli hongi to yahi seekha hua apke kaam aayega.

marmik vishay..aur gahen vishleshan karti post.

प्रवीण पाण्डेय said...

जीवन से जूझने भर मे जीवन से प्यार होने लगता है।

जयकृष्ण राय तुषार said...

सुंदर पोस्ट बधाई और शुभकामनाएं अर्चना जी !

बाल भवन जबलपुर said...

यही तो एक सवाल है जिसका ज़वाब खोजना सम्भव नही
मार्मिक पोस्ट

SANDEEP PANWAR said...

जाट देवता की राम-राम,
कभी-कभी ये लगता है कि ये लेख है या हकीकत?
बडी भ्रम की स्थिति हो जाती है, खैर जो भी दोनों ही सूरत में बुरा ही तो है।

हल्ला बोल said...

-------- यदि आप भारत माँ के सच्चे सपूत है. धर्म का पालन करने वाले हिन्दू हैं तो
आईये " हल्ला बोल" के समर्थक बनकर धर्म और देश की आवाज़ बुलंद कीजिये...
अपने लेख को हिन्दुओ की आवाज़ बनायें.
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