Thursday, February 28, 2013

आनन्द---1

आनन्द....
हाँ यही नाम है उसका..वो मिला मुझे नेट की दुनिया में कदम रखते ही...मई २००९ से भी पहले ...
हाँ जब से नेट के बारे में जाना पहले जी मेल ,फ़िर ब्लॉग,फ़िर ऑर्कुट और अब फ़ेसबुक ...सबके बारे में जाना और समझा...जी मेल और ब्लॉग तो बहुत काम में लेती हूँ खुद के लिए ..और फ़ेसबुक खबरों के लिए...
लेकिन जो छूट गया वो है ऑर्कुट ....आजकल नहीं के बराबर आना -जाना होता है वहाँ...
तो मैं बता रही थी आनन्द के बारे में ...२५-२८ साल का ऐसा लड़का जिसके बारे में पहले नहीं जानती थी...
ऑर्कुट पर एक सोशल ग्रुप देखा तो रहा नहीं गया मुझसे ...उसकी गतिविधियाँ देखने के लिए पढ़ती रहती थी उस पर आए मेसेज.....
और एक दिन आनन्द का एक मेसेज पढ़ा--- बंगलौर में एक नेत्रहीन छात्र पैसे के अभाव में फ़ीस जमा नहीं कर पा रहा है उसे मदद कीजिये ....नम्बर पर ...बात कर सकते हैं ...कुछ पैसे कम पड़ रहे हैं आपकी मदद समय पर मिल जाए तो वह इसी वर्ष परीक्षा दे सकेगा परीक्षा का .....वगैरह....
और मन किया कि बस कुछ करना है ....तभी छोटा भाई ट्रांस्फ़र होकर बॉम्बे से बंगलौर गया था ,तुरंत उसे फोन लगाया और सारी बात बताई...फोन नम्बर भी दे दिया, कहा- जो बन पड़े करना...
दूसरे दिन भाई का फोन आया कि उसने बात कर ली है और आज ऑफ़िस में उसे बुलाया है ,उसके साथी के साथ आएगा,मैं बात करके उसे दे दूंगा पैसे ....
बहुत खुश हो गई थी मैं ...सोचा एक तो नेक काम होगा शायद ....
खुशी-खुशी दूसरे दिन भाई से पूछा -पता लगा कि वो आया था , उसके साथ एक मित्र को लेकर,और भाई ने रूपये दे दिये ...ये कह कर कि और कोई मदद चाहिये हो तो बताना...वो खुशी-खुशी लौट गया था ।हमने भी सोच लिया था कि उसने फ़ार्म भर दिया होगा और हमने एक नेक काम कर लिया....
लेकिन कुछ दिन बाद ही एक और मेसेज देखा आनन्द का....इस बार सबसे क्षमा याचना करते हुए लिखा था कि- उससे भूल हुई, उसके  बताए हुए बच्चे को मदद नहीं पहुँची, उसके साथी ने उसे धोखा दिया और उस बच्चे के लिए इकट्ठे किये पैसे ले गया.....और जिन लोगों ने मेरे कहने पर, भरोसा करके उस बच्चे को मदद दी मैं उन सबसे क्षमा मांगता हूँ...
मैंने ये पढ़कर आनन्द को बताया कि उसे तो मेरे भाई ने भी मेरे कहने पर मदद की थी ...उसे बहुत बुरा लगा ये जानकर ,और आनन्द नें मुझसे माफ़ी मांगी ।
मैंने आनन्द को कहा कि कोई बात नहीं तुम क्यों माफ़ी मांगोगे ,तुम्हारी कोई गलती नहीं है ,तुमने अपना फ़र्ज निभाया ,अब अगर उसे मदद नहीं मिली तो इसमें हमारी कोई गलती नहीं है ,आनन्द का कहना था ऐसी ही बातों  के कारण कोई मदद करने को आगे नहीं आता और सारी कोशिश बेकार चली जाती है ,मैंने उसे समझाया कि इन बातों के होने से हम मदद करना तो नहीं छोड़ सकते! ये ही सोच लो कि जो पैसे ले गया वो उस नेत्रहीन बच्चे से भी ज्यादा जरूरतमंद होगा...हमारा दिया किसी तक तो पहुँचा ही है ।
बात खतम हो गई ये कह कर कि इस बारे में अब बात नहीं करेंगे...
लेकिन मुझे एक बेटा मिलना था सो मिल गया...:-)
कुछ दिनों बाद पता चला  कि मेरे सहकर्मी नवीन सर की तबियत खराब हो गई है, और वे किसी ऐसे हॉस्पीटल की तलाश कर रहे हैं, जहाँ उनका ईलाज हो सके ...गुजरात में है ...ये सुनकर मुझे आनन्द की याद आई मैंने चेट पर  ये सारी बात बताई और उसने कुछ अस्पतालों की जानकारी मुझे दी ये  कहा कि जाँच करवाने के लिए कुछ दिन रूकना होगा ,सुनकर उसने जो कहा वो मैं कभी नहीं भूल सकती - "ज्यादा कुछ तो कर नहीं पाउंगा लेकिन वे चाहें तो मेरे  घर रूक सकते हैं ,एक कमरे का घर है मेरा....मेरे साथ मेरा छोटा भाई रहता है बस हम दो ..."
और जिस हक से उसने कहा था वो मेरे मन को छू गया ..कोई किसी अनजान व्यक्ति के लिए इतने भरोसे से कह रहा है,जिसे वो जानता तक नहीं ,ये बात जीवन में मुझे औरों पर भरोसा करना सीखा गई ....
आज बस इतना ही ..जारी रहेगा संस्मरण जब तब ...आनन्द के साथ ...


Wednesday, February 27, 2013

राष्ट्र हित मे आप भी जुड़िये इस मुहिम से ...

 सन 1945 मे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की तथाकथित हवाई दुर्घटना या उनके जापानी सरकार के सहयोग से 1945 के बाद सोवियत रूस मे शरण लेने या बाद मे भारत मे उनके होने के बारे मे हमेशा ही सरकार की ओर से गोलमोल जवाब दिया गया है उन से जुड़ी हुई हर जानकारी को "राष्ट्र हित" का हवाला देते हुये हमेशा ही दबाया गया है ... 'मिशन नेताजी' और इस से जुड़े हुये मशहूर पत्रकार श्री अनुज धर ने काफी बार सरकार से अनुरोध किया है कि तथ्यो को सार्वजनिक किया जाये ताकि भारत की जनता भी अपने महान नेता के बारे मे जान सके पर हर बार उन को निराशा ही हाथ आई !

मेरा आप से एक अनुरोध है कि इस मुहिम का हिस्सा जरूर बनें ... भारत के नागरिक के रूप मे अपने देश के इतिहास को जानने का हक़ आपका भी है ... जानिए कैसे और क्यूँ एक महान नेता को चुपचाप गुमनामी के अंधेरे मे चला जाना पड़ा... जानिए कौन कौन था इस साजिश के पीछे ... ऐसे कौन से कारण थे जो इतनी बड़ी साजिश रची गई न केवल नेता जी के खिलाफ बल्कि भारत की जनता के भी खिलाफ ... ऐसे कौन कौन से "राष्ट्र हित" है जिन के कारण हम अपने नेता जी के बारे मे सच नहीं जान पाये आज तक ... जब कि सरकार को सत्य मालूम है ... क्यूँ तथ्यों को सार्वजनिक नहीं किया जाता ... जानिए आखिर क्या है सत्य .... अब जब अदालत ने भी एक समय सीमा देते हुये यह आदेश दिया है कि एक कमेटी द्वारा जल्द से जल्द इस की जांच करवा रिपोर्ट दी जाये तो अब देर किस लिए हो रही है ??? 
आप सब मित्रो से अनुरोध है कि यहाँ नीचे दिये गए लिंक पर जाएँ और इस मुहिम का हिस्सा बने और अपने मित्रो से भी अनुरोध करें कि वो भी इस जन चेतना का हिस्सा बने !
 
यहाँ ऊपर दिये गए लिंक मे उल्लेख किए गए पेटीशन का हिन्दी अनुवाद दिया जा रहा है :-

सेवा में,
अखिलेश यादव, 

माननीय मुख्यमंत्री
उत्तर प्रदेश सरकार 
लखनऊ 
प्रिय अखिलेश यादव जी,

इतिहास के एक महत्वपूर्ण मोड़ पर, आप भारत के सबसे युवा मुख्यमंत्री इस स्थिति में हैं कि देश के सबसे पुराने और सबसे लंबे समय तक चल रहे राजनीतिक विवाद को व्यवस्थित करने की पहल कर सकें| इसलिए देश के युवा अब बहुत आशा से आपकी तरफ देखते हैं कि आप माननीय उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के हाल ही के निर्देश के दृश्य में, नेताजी सुभाष चंद्र बोस के भाग्य की इस बड़ी पहेली को सुलझाने में आगे बढ़ेंगे|
जबकि आज हर भारतीय ने नेताजी के आसपास के विवाद के बारे में सुना है, बहुत कम लोग जानते हैं कि तीन सबसे मौजूदा सिद्धांतों के संभावित हल वास्तव में उत्तर प्रदेश में केंद्रित है| संक्षेप में, नेताजी के साथ जो भी हुआ उसे समझाने के लिए हमारे सामने आज केवल तीन विकल्प हैं: या तो ताइवान में उनकी मृत्यु हो गई, या रूस या फिर फैजाबाद में | 1985 में जब एक रहस्यमय, अनदेखे संत “भगवनजी” के निधन की सूचना मिली, तब उनकी पहचान के बारे में विवाद फैजाबाद में उभर आया था, और जल्द ही पूरे देश भर की सुर्खियों में प्रमुख्यता से बन गया| यह कहा गया कि यह संत वास्तव में सुभाष चंद्र बोस थे। बाद में, जब स्थानीय पत्रकारिता ने जांच कर इस कोण को सही ठहराया, तब नेताजी की भतीजी ललिता बोस ने एक उचित जांच के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। अदालत ने उस संत के सामान को सुरक्षित रखने का अंतरिम आदेश दिया।

भगवनजी, जो अब गुमनामी बाबा के नाम से बेहतर जाने जाते है, एक पूर्ण वैरागी थे, जो नीमसार, अयोध्या, बस्ती और फैजाबाद में किराए के आवास पर रहते थे। वह दिन के उजाले में कभी एक कदम भी बाहर नहीं रखते थे,और अंदर भी अपने चयनित अनुयायियों के छोड़कर किसी को भी अपना चेहरा नहीं दिखाते थे। प्रारंभिक वर्षों में अधिक बोलते नहीं थे परन्तु उनकी गहरी आवाज और फर्राटेदार अंग्रेजी, बांग्ला और हिंदुस्तानी ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया, जिससे वह बचना चाहते थे। जिन लोगों ने उन्हें देखा उनका कहना है कि भगवनजी बुजुर्ग नेताजी की तरह लगते थे। वह अपने जर्मनी, जापान, लंदन में और यहां तक कि साइबेरियाई कैंप में अपने बिताए समय की बात करते थे जहां वे एक विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु की एक मनगढ़ंत कहानी "के बाद पहुँचे थे"। भगवनजी से मिलने वाले नियमित आगंतुकों में पूर्व क्रांतिकारी, प्रमुख नेता और आईएनए गुप्त सेवा कर्मी भी शामिल थे।
2005 में कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश पर स्थापित जस्टिस एम.के. मुखर्जी आयोग की जांच की रिपोर्ट में पता चला कि सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु 1945 में ताइवान में नहीं हुई थी। सूचनाओं के मुताबिक वास्तव में उनके लापता होने के समय में वे सोवियत रूस की ओर बढ़ रहे थे।
31 जनवरी, 2013 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने ललिता बोस और उस घर के मालिक जहां भगवनजी फैजाबाद में रुके थे, की संयुक्त याचिका के बाद अपनी सरकार को भगवनजी की पहचान के लिए एक पैनल की नियुक्ति पर विचार करने का निर्देशन दिया।

जैसा कि यह पूरा मुद्दा राजनैतिक है और राज्य की गोपनीयता के दायरे में है, हम नहीं जानते कि गोपनीयता के प्रति जागरूक अधिकारियों द्वारा अदालत के फैसले के जवाब में कार्यवाही करने के लिए किस तरह आपको सूचित किया जाएगा। इस मामले में आपके समक्ष निर्णय किये जाने के लिए निम्नलिखित मोर्चों पर सवाल उठाया जा सकता है:

1. फैजाबाद डीएम कार्यालय में उपलब्ध 1985 पुलिस जांच रिपोर्ट के अनुसार भगवनजी नेताजी प्रतीत नहीं होते।

2. मुखर्जी आयोग की खोज के मुताबिक भगवनजी नेताजी नहीं थे।
3. भगवनजी के दातों का डीएनए नेताजी के परिवार के सदस्यों से प्राप्त डीएनए के साथ मेल नहीं खाता।
वास्तव मे, फैजाबाद एसएसपी पुलिस ने जांच में यह निष्कर्ष निकाला था, कि “जांच के बाद यह नहीं पता चला कि मृतक व्यक्ति कौन थे" जिसका सीधा अर्थ निकलता है कि पुलिस को भगवनजी की पहचान के बारे में कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिला।

हम इस तथ्य पर भी आपका ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं कि न्यायमूर्ति मुखर्जी आयोग की जांच की रिपोर्ट से यह निष्कर्ष निकला है कि "किसी भी ठोस सबूत के अभाव में यह स्वीकार नहीं किया जा सकता कि भगवनजी नेताजी थे"। दूसरे शब्दों में, आयोग ने स्वीकार किया कि नेताजी को भगवनजी से जोड़ने के सबूत थे, लेकिन ठोस नहीं थे।

आयोग को ठोस सबूत न मिलने का कारण यह है कि फैजाबाद से पाए गए भगवनजी के तथाकथित सात दातों का डी एन ए, नेताजी के परिवार के सदस्यों द्वारा उपलब्ध कराए गए रक्त के नमूनों के साथ मैच नहीं करता था। यह परिक्षण केन्द्रीय सरकार प्रयोगशालाओं में किए गए और आयोग की रिपोर्ट में केन्द्र सरकार के बारे मे अच्छा नहीं लिखा गया। बल्कि, यह माना जाता है कि इस मामले में एक फोरेंसिक धोखाधडी हुई थी।
महोदय, आपको एक उदाहरण देना चाहेंगे कि बंगाली अखबार "आनंदबाजार पत्रिका" ने दिसंबर 2003 में एक रिपोर्ट प्रकाशित कि कि भगवनजी ग्रहण दांत पर डीएनए परीक्षण नकारात्मक था। बाद में, "आनंदबाजार पत्रिका", जो शुरू से ताइवान एयर क्रेश थिओरी का पक्षधर रहा है, ने भारतीय प्रेस परिषद के समक्ष स्वीकार किया कि यह खबर एक "स्कूप" के आधार पर की गयी थी। लेकिन समस्या यह है कि दिसंबर 2003 में डीएनए परीक्षण भी ठीक से शुरू नहीं किया गया था। अन्य कारकों को ध्यान में ले कर यह एक आसानी से परिणाम निकलता है कि यह "स्कूप" पूर्वनिर्धारित था।
जाहिर है, भारतीय सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायधीश, एम.के. मुखर्जी ऐसी चालों के बारे में जानते थे और यही कारण है कि 2010 में सरकार के विशेषज्ञों द्वारा आयोजित डी एन ए और लिखावट के परिक्षण के निष्कर्षों की अनदेखी करके,उन्होंने एक बयान दिया था कि उन्हें "शत प्रतिशत यकीन है" कि भगवनजी वास्तव में नेताजी थे।यहाँ यह उल्लेख करना प्रासंगिक होगा कि सर्वोच्च हस्तलेख विशेषज्ञ श्री बी लाल कपूर ने साबित किया था कि भगवनजी की अंग्रेजी और बंगला लिखावट नेताजी की लिखावट से मेल खाती है।
भगवनजी कहा करते थे की कुछ साल एक साइबेरियाई केंप में बिताने के बाद 1949 में उन्होंने सोवियत रूस छोड़ दिया और उसके बाद गुप्त ऑपरेशनो में लगी हुई विश्व शक्तियों का मुकाबला करने में लगे रहे। उन्हें डर था कि यदि वह खुले में आयेंगे तो विश्व शक्तियां उनके पीछे पड़ जायेंगीं और भारतीय लोगो पर इसके दुष्प्रभाव पड़ेंगे। उन्होंने कहा था कि “मेरा बाहर आना भारत के हित में नहीं है”। उनकी धारणा थी कि भारतीय नेतृत्व के सहापराध के साथ उन्हें युद्ध अपराधी घोषित किया गया था और मित्र शक्तियां उन्हें उनकी 1949 की गतिविधियों के कारण अपना सबसे बड़ा शत्रु समझती थी।
भगवनजी ने यह भी दावा किया था कि जिस दिन 1947 में सत्ता के हस्तांतरण से संबंधित दस्तावेजों को सार्वजनिक किया जाएगा, उस दिन भारतीय जान जायेंगे कि उन्हें गुमनाम/छिपने के लिए क्यों मजबूर होना पड़ा।
खासा दिलचस्प है कि , दिसम्बर 2012 में विदेश और राष्ट्रमंडल कार्यालय, लंदन, ने हम में से एक को बताया कि वह सत्ता हस्तांतरण के विषय में एक फ़ाइल रोके हुए है जो "धारा 27 (1) (क) सूचना की स्वतंत्रता अधिनियम (अंतरराष्ट्रीय संबंधों) के तहत संवेदनशील बनी हुई है और इसका प्रकाशन संबंधित देशों के साथ हमारे संबंधों में समझौता कर सकता है" ।

महोदय, इस सारे विवरण का उद्देश्य सिर्फ इस मामले की संवेदनशीलता को आपके प्रकाश में लाना है। यह बात वैसी नहीं है जैसी कि पहली नजर में लगती है। इस याचिका के हस्ताक्षरकर्ता चाहते है कि सच्चाई को बाहर आना चाहिए। हमें पता होना चाहिए कि भगवनजी कौन थे। वह नेताजी थे या कोई "ठग" जैसा कि कुछ लोगों ने आरोप लगाया है? क्या वह वास्तव में 1955 में भारत आने से पहले रूस और चीन में थे, या नेताजी को रूस में ही मार दिया गया था जैसा कि बहुत लोगों का कहना है।

माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के न्यायमूर्ति देवी प्रसाद सिंह और न्यायमूर्ति वीरेन्द्र कुमार दीक्षित, भगवनजी के तथ्यों के विषय में एक पूरी तरह से जांच के सुझाव से काफी प्रभावित है। इसलिए हमारा आपसे अनुरोध है कि आप अपने प्रशासन को अदालत के निर्णय का पालन करने हेतू आदेश दें। आपकी सरकार उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में विशेषज्ञों और उच्च अधिकारियों की एक टीम को मिलाकर एक समिति की नियुक्ति करे जो गुमनामी बाबा उर्फ भगवनजी की पहचान के सम्बन्ध में जांच करे।

यह भी अनुरोध है कि आपकी सरकार द्वारा संस्थापित जांच -

1. बहु - अनुशासनात्मक होनी चाहिए, जिससे इसे देश के किसी भी कोने से किसी भी व्यक्ति को शपथ लेकर सूचना देने को वाध्य करने का अधिकार हो । और यह और किसी भी राज्य या केन्द्रीय सरकार के कार्यालय से सरकारी रिकॉर्ड की मांग कर सके।

2. सेवानिवृत्त पुलिस, आईबी, रॉ और राज्य खुफिया अधिकारी इसके सदस्य हो। सभी सेवारत और सेवानिवृत्त अधिकारियों, विशेष रूप से उन लोगों को, जो खुफिया विभाग से सम्बंधित है,उत्तर प्रदेश सरकार को गोपनीयता की शपथ से छूट दे ताकि वे स्वतंत्र रूप से सर्वोच्च राष्ट्रीय हितों के लिए अपदस्थ हो सकें।

3. इसके सदस्यों में नागरिक समाज के प्रतिनिधि और प्रख्यात पत्रकार हो ताकि पारदर्शिता और निष्पक्षता को सुनिश्चित किया जा सके। ये जांच 6 महीने में खत्म की जानी चाहिए।

4. केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा आयोजित नेताजी और भगवनजी के बारे में सभी गुप्त रिकॉर्ड मंगवाए जाने पर विचार करें। खुफिया एजेंसियों के रिकॉर्ड को भी शामिल करना चाहिए। उत्तर प्रदेश कार्यालयों में खुफिया ब्यूरो के पूर्ण रिकॉर्ड मंगावाये जाने चाहिए और किसी भी परिस्थिति में आईबी स्थानीय कार्यालयों को कागज का एक भी टुकड़ा नष्ट करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

5.सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि भगवनजी की लिखावट और अन्य फोरेंसिक सामग्री को किसी प्रतिष्ठित अमेरिकन या ब्रिटिश प्रयोगशाला में भेजा जाये.
हमें पूरी उम्मीद है कि आप, मुख्यमंत्री और युवा नेता के तौर पर दुनिया भर में हम नेताजी के प्रसंशकों की इस इच्छा को अवश्य पूरा करेंगे |

सादर
आपका भवदीय
अनुज धर
लेखक "India's biggest cover-up"

चन्द्रचूर घोष
प्रमुख - www.subhaschandrabose.org और नेताजी के ऊपर आने वाली एक पुस्तक के लेखक

Monday, February 25, 2013

पुरानी पेटी...

वो पुरानी "पेटी"
करके जिस पर बचा वार्निश
नया बना दिया था माँ ने
जिसमें माँ रखती थी अपनी साड़ी
खुशी-खुशी सजा ली थी मैंने
कि अब मेरा अपना भी कुछ होगा
इस घर में
जमाती थी कपड़े नये-पुराने
रखती थी तह करके रूमाल
कुछ लिफ़ाफ़े और एक पेन
छोड़ा जब माँ का घर
रह गई- उसी जगह मेरे कमरे में
मेरी सखी -मेरी "पेटी"
बिना कुछ बोले
अब भी उसकी जेब में
मेरे कुछ लिफ़ाफ़े हैं
मगर पेन की स्याही सूख चुकी...
आज फिर खोले बैठी हूँ  पुराना संदूक
और पुरानी यादें बिखर गई है बाहर
फिर जमाने की कोशिश में
खूशबू से महक उठा है मन भी
मुझसे बन्द भी नहीं हो रहा अब
हेल्प मी .....
-अर्चना

Friday, February 22, 2013

लड़की...

सुना था मैंने
वो जो बहती है न!
नदी होती है
लेकिन जाना मैंने
वो जो बहती है न!
जिंदगी होती है...

सुना था मैंने
वो जो कठोर होता है
पत्थर होता है
लेकिन जाना मैंने
वो जो कठोर होता है
ईश्वर होता है
...

सुना था मैंने
वो जो गाती है न!
चिड़िया होती है
लेकिन जाना मैंने
वो जो गाती है
लड़की होती है...

Thursday, February 21, 2013

राम और श्याम ...मंत्रमुग्ध मन ....

प्रवीण पाण्डेय जी के ब्लॉग से एक रचना पहले ही सुन चुके होंगे आप  ...आज सहेजने को मन किया यहाँ ---


 इसे पढ़िये यहाँ

Monday, February 18, 2013

कहाँ गये वो दिन ....


आज वाणी जी ...वही ज्ञानवाणी वाली...  जी की एक पोस्ट पढ़कर... वही पोस्ट जो फ़ेसबुकिय सुप्रभातम के समय गिरिजेश जी ने  वही एक महान आलसी  ने :-) .....टाँकी थी ...से एक बहुत पुरानी बात याद आ गई..

 तब मैं भी ११-१२ साल की रही होउंगी...घर से १२ किलोमीटर की दूरी पर खेत था हमारा , जब भी फ़सल पकती गेहूँ,ज्वार,गन्ना,कपास... तो गाँव से मंड़ी बैलगाड़ी में लाई जाती थी,साथ में खेत में काम करने वाले दसरथ दाजी  - जो खेत की देखभाल करते थे, भी आते थे ...उनका खाना भी माँ ही बनाती थी वे या तो मंड़ी जाने से पहले खा कर जाते या वापस आकर खेत जाने से पहले खाते.... हमारी ड्यूटी रहती उन्हें परोसने की ...अगर इस बीच वक्त बचता तो वे यहाँ के भैस-गाय का चारा-पानी कर देते और उस जगह की सफ़ाई कर देते ...और बाहर बैठ जाते...घर के बीच में एक गलियारा था जिसमें से बाहर दिखता था...पिताजी भी बाहर बैठे रहते , उन्हें अगर कोई चीज चाहिये होती, फिर दरवाजा बन्द करना हो ,या और कोई छोटा-मोटा काम तो वे आवाज लगाते -अर्चना.... और हम खेल में इतने मस्त होते कि अपने छोटे भाई को आवाज लगा देते ...फ़िर वो उसके छोटे को और ...वो उसके ....या . और अन्त में ...वो दाजी सुन लेते और जैसे ही उठते ....हम दौड़ पड़ते डर के मारे ...क्योंकि जानते थे डाँट पड़ती फिर -- तुम्हारे बाप का नौकर है?   ...और तब सारे भाई-बहन बच जाते डाँट खाने से ......  

 ये तो जानते ही नहीं थे कि नौकर कौन होता है सिर्फ़ कहानियों में सुनते थे कि एक सेठ के यहाँ एक नौकर काम करता था...सेठ को आँख बन्द करके भी इमेज  में मोटे पेट वाला ही होगा भाँप लेते ... :-)
कितनी सारी बातें सीख जाते थे खेल-खेल में हम.....और ये आखरी लाईन वाणी जी की ज्ञानवाणी से साभार ज्यों कि त्यों-

अविश्वास के इस दौर में जीने वाले हमलोग ...सोचती हूँ ,क्या हमारे बाद वाली पीढ़ी की स्मृतियों में भी ऐसा  अपनापन संभव हो सकेगा !!!

Saturday, February 16, 2013

सूरज की शह पर...


ऐ सफेद फूलों और
इतराने वाली गुलाबी कलियों!
देख लिया है शायद
तुमने मेरे साजन को
तभी मुस्कुरा उठी हो
शरमा भी रही हो
मुझे चिढ़ाते हुए
पर जानती हूँ
ये सिर्फ़
सूरज की शह पर ही
कर पाते हो तुम
वो भी एक दिन के लिए.
मेरा भी सवेरा होगा
जब चाँद लेकर आयेगा
तुम जैसी सफ़ेद चाँदनी
और गुलाबी प्यार
और तब तुम देखोगे
मुझे खिली-खिली सी
मुस्कुराते हुए
हमेशा के लिए....

Friday, February 8, 2013

स्वागत बसन्त...


स्वागत तेरा
आँगन आँगन में
मेरे बसन्त ...

पीली सरसों
और लाल पलाश
केशरिया मैं...

प्रीत उमगे
उर में साजन के
मैं शरमाउँ...

बसन्त आया
बिछ गई धरा पे
पीली चूनर...

कोयल बोले
आम के पेड पर
मधुर बोली...

पीली सरसों
चमक उठे खेत
महके मन..

मेरी कोयल
कूकती,चहकती
बसन्त संग...


और अब रविन्द्र संगीत--


इन हायकु को हाइगा के रूप मे बदलने के लिए ॠता शेखर‘मधु’ जी का आभार ...

Sunday, February 3, 2013

करना फ़कीरी फिर क्या....

 






सूंघ तुम पाते नहीं
वरना दूर से
खुशबू पहचान लेते

न जाने तुम्हारी आँखों से
झिल्ली भी कब उतरेगी
जो पढ़ते हो गलत समझते हो
तुम्हारे कान अब पकने लगे हैं
सड़न लग चुकी है उसमें
मधुर संगीत भी तुम्हें
अब कर्कश लगता है -
चिड़िया को गाने से रोकना
यानि तुम्हारे कान का
इलाज भी बाकी है .....
खुद गा पाना
तुम्हारे बस का नहीं
चिल्ला-चिल्ला कर
गला खराब कर चुके हो

बस एक छू सकते हो
मुझे जबरन
लेकिन वो भी
ज्यादा दिन तक नहीं
छू पाओगे ...
मेरे नये पंख अब
उगने लगे हैं
मजबूत वाले .....
घने लम्बे और सफ़ेद....

Saturday, February 2, 2013

जब दिमाग जीत गया तर्क की बाजी...

 नितीश कु. सिंह से बात करते हुए कब रिश्ता बन गया पता ही नहीं चला...बस "बुआ" पुकारने लगा और बन गया मेरा भतीजा --- उसका ब्लॉग कभी देखा हो ऐसा याद नहीं आता ..लेकिन जब पहुँची उसके ब्लॉग पर तो ये मिला,आप भी सुनें


कुछ और रचनाएँ भी अच्छी लगी खासकर -
खुदकुशी और नदी और समंदर