Saturday, June 22, 2013

संध्या- कविता

अच्छे मित्रों का साथ रहे तो बहुत कुछ अच्छा-अच्छा सीख सकते हैं हम ---ऐसे ही एक मित्र बने  
-आशीष राय

मुलाकात तो कभी हुई नहीं, हाँ देखा जरूर हैं, उनको मैंने और मुझे उन्होंने ...लखनऊ जाना हुआ था मेरा ,(हाँ उसी परिकल्पना सम्मान समारोह में, जिसकी रपट लिखना बाकि है)..:-) पर मुझे बहुत अच्छा लगा था ये अभी भी लिख सकती हूँ ।
हाँ, तो वहाँ किसी से परिचय तो था नहीं, पर उससे पहले "वीरजी" से मिल चुकी थी एक बार ...और शिवम को शायद उन्होंने ही बताया होगा ...शिवम मुझसे आकर मिला था दीदी बोलकर ... (लखनऊ का नाम आया तो बहुत कुछ याद आने लगा है ,लिखती हूँ अलग से ..:-) )

ये जनाब मेरे पीछे की लाईन में बैठे थे-शिखा,अमित शिवम और निवेदिता श्रीवास्तव जी के साथ, लखनऊ से वापस आने के बाद पता चला...



 
 
 
 
 
एक फोटो पोस्ट की थी उसमें भजिए खा रहे थे

 
 ...फिर फ़ेसबुक पर मित्र बने ,
फिर पता चला कि खूब लिखते हैं , "बधशाला" तो ऐसी लिखी कि क्या कहने!... बनाया पॉडकास्ट उसका...
फिर फ़ेसबुक पर इनके यात्रा संस्मरण पढ़ने को मिलते रहे साथ ही कविताएँ भी...पर मेरी परेशानी ये है, कि इनके लिखे बहुत से शब्दों का अर्थ पता नहीं रहता ... तो मेहनत करनी पड़ती है समझने के लिए ,पर्याय खोजने पड़ते हैं,इनसे ही अर्थ पूछ-पूछ कर समझती हूं ,लेकिन तारीफ़ करनी पड़ेगी कि नाराज नहीं होते ,बताते रहते हैं जितनी ही बार पूछो ...
...और इस चक्कर में दिमाग काम करने लगा अपना ...

इस बार तो इनकी इस कविता की पहली चार लाईनों को  समझ कर सरल करने की कोशिश की कि भाव वही रहे.... तो उत्साह बढ़ाया कि आगे ?... फिर क्या था ..आगे बढ़ी ...फिर आगे ? ..फिर किया ...और ये रहा नतीजा ... एक नई कविता टपक पड़ी मेरी ...अगर ये कविता है तो .. :-)
(समझता नहीं न! मुझे इसलिये )

पहले आशीष जी की कविता (शीर्षक नहीं दिया था उन्होंने ..)

तपती दुपहरिया गुजर चुकी ,
गगन लोहित हो चला
उफनाते नयनों से ढलकर,
दुःख मेरा तिरोहित हो चला


गोरज, रजत भस्म सी दिखती,
बैठी तरुवर के दल पर
नीरव प्रदोष में क्लांत मन ,
सुनता विहगों के पंचम स्वर

एकाकी मन में स्मृतियाँ
जग जग उठती है पल प्रतिपल
मेघों के तम को चीर रही
मधुरतम स्मृति एक उज्ज्वल

चपला दिखलाती मेघ वर्ण
संग में गुरुतर गर्जन तर्जन
घनीभूत अवसाद मिटाते,
नीलाम्बर में मुक्तावली बन
- आशीष राय 

और ये रहा मेरा प्रयास--
संध्या- कविता -

धूप अब ढलान पर है
नभ में लाली छाई है
अश्रुपूर्ण नयनों से अब
पीड़ा छलक कर बह आई है....

सांध्य धूलि चमक रही है
हरे पत्तों पर छिटक कर
शांत अंधियारे में उदास मन
सुन रहा पंछियों के प्रीती के स्वर....


नीरव मन के बादल में
कौंधती यादों की बिजली
ज्यो अन्धकार के बीच में
मधुर पलों की एक लौ हो जली....



बिजली की चमक,बादल की गरज
मिलकर रचते ,एक नया फ़लक
खिलता नभ फ़िर अवसाद मिटा
और झरते मोती बन्धन को हटा....
-अर्चना


Sunday, June 16, 2013

शिक्षा अभिभावकों के लिए ...अपने बच्चों की खातिर...भाग -२


 
(वत्सल का लिया एक चित्र)
 अगर आपके बच्चे स्कूल जा रहे हों या जाने वाले हों तो कॄपया ध्यान दें .......
सुनें बच्चों व आपके हित में जारी पॉडकास्ट आपके लिए....

"बस यूँ ही".......अमित: से 
स्कूल कैसा हो -द्वितीय भाग

 



Wednesday, June 12, 2013

आज कुछ गीत जो बहुत कुछ कहते है ....................

1-जाने वो कैसे लोग थे ---


2-बड़ी सूनी-सूनी है ---


3-कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन---


Tuesday, June 11, 2013

शिक्षा अभिभावकों के लिए ...अपने बच्चों की खातिर... भाग -१


                                                             (वत्सल का लिया एक चित्र)
 अगर आपके बच्चे स्कूल जा रहे हों या जाने वाले हों तो कॄपया ध्यान दें .......
सुनें बच्चों व आपके हित में जारी पॉडकास्ट आपके लिए....

"बस यूँ ही".......अमित: से 
स्कूल कैसा हो? -----  प्रथम भाग

Monday, June 10, 2013

बरगदिया


                                                         (चित्र गूगल से साभार)
संस्मरण पढ़ते समय हर किसी को अपने पुराने दिन याद आने लगते हैं, .....और जैसा कॄष्ण कुमार मिश्रा जी ने लिखा है - बचपन की याद दिलाता है सबको , अपने खेत.... अपने बाबूजी ...अपना गाँव ....बचपन के साथी ...स्कूल...,
तो अच्छा लगता है पढ़ते हुए , ....इस पोस्ट में खास बात ये है कि उस व्यक्ति को इन्होंने  याद किया.. ...जिसने सालों पहले छांह देने वाला पेड़ लगाया....और  इनके मन में उस पेड़ की याद अब तक है ...हो सकता है कि लोगों को भी लगे कि---
सबके भले के लिए निस्वार्थ काम किया तो कितना संतुष्टि देता है मन को .....
और तो और  कुछ करने की भावना भी जगती है इससे लोगों के मन में
तो मुझे तो पोस्ट अच्छी लगी... शायद आपको भी अच्छी लगे ..आप सुनें ----
पुलिया वाली बरगदिया

Sunday, June 9, 2013

ननिहाल ,मामाजी और पीपल मामा

गर्मी की छुट्टियाँ आए और ननिहाल न जाएँ सम्भव नहीं होता ...हाँ बचपन खूब सजा होता है नानी के घर की यादों से ,फिर हम बड़े होते जाते हैं,स्कूल-कॉलेज और अपने कार्यों में व्यस्त होने लगते हैं, और ननिहाल जाना सिर्फ़ उत्सव, त्योहारों शादी-ब्याह तक सिमट जाता है ,और जब घर की लड़की हो तो वो और भी दूर अपने घर में व्यस्त हो जाती है उसका अपना तो ननिहाल पीछे छूट जाता है ,बहुत पीछे....

ये है ननिहाल के आँगन का पीपल का पेड़... मेरे मामाजी से लेकर उनके पोते इसी की छ्त्रछाया में पले-बड़े हुए और आज भी इसकी हवा तरोताजा रखती है उन्हें...,बचपन से लेकर अब तक इनकी छाया में सुकून की नींद लेते हैं हम ...जब भी मौका मिलता है......मामाजी ने बताया कि ये पीपल भी उसी घर का लड़का है ,इसके जनेऊ भी किये हैं .और तो और...सुनने में आया है ,जिनकी दो शादी होगी ऐसा बता देते हैं पंडित * तो उन लड़कियों की इनसे शादी भी की गई है ...












 बूढ़े हो गए पीपल मामा भी अब ....

और ये रहे बड़े मामाजी श्री सुदामा शंकर सराफ़,फ़ुटबॉल के खेल के शौकीन....अभी पैर में फ़्रैक्चर हुआ है, तो बैठे हैं पलंग पर....


जब मैंने एक फोटो लिया तो बैठक में लगा अपना एक फोटो मंगवाया और दिखाया....

इस फोटो के बारे में पूछने पर बताया कि अपने बेटे के यहाँ इन्दौर गये कान के इलाज के लिए ,तो घूमते -घूमते राजवाड़ा पहुँच गये ,वहाँ एक बहुत फ़ेमस फोटोग्राफ़र की दूकान देखी तो मन हुआ कि एक फोटो खिंचवाई जाए... तब दाढ़ी बढ़ी हुई थी ...फोटोग्राफ़र ने कहा आ जाईये.... मामाजी बोले - बढ़िया आनी चाहिए कोट टाई के साथ ... फोटोग्राफ़र ने कहा कि पहन लिजीए कोट ... मामाजी बोले मेरे पास नहीं है कोट -टाई, तब फोटोग्राफ़र मुस्कूराया और अपने पास के कोट और टाई पहनाकर फोटो निकाला ,और जब फोटो उसने भी देखा तो खुश हो गया बोला -वाह क्या पोज दिया है .... गज़्ज़ब!..
केप तो उनकी अपनी हैं, हमेशा लगाए रखते हैं...


शीला मामी के साथ ..दोनों शिक्षक रहे ,अब रिटायर हैं... शादी की पचासवीं सालगिरह पर बहुत शुभकामनाएँ मामा-मामी को ....
और इस फोटो में मम्मी के साथ मामी-मामाजी उनकी चारों पुत्रियाँ (चारों शिक्षिकाएँ हैं ) साथ हैं- उनकी भाभी भी राईट साइड कार्नर में.....

 मामाजी ने मुझे उपहार में दी अपने संकलन से---


और आज ही नासिक से पहुँची हूँ इन्दौर .. यहाँ छोटी मौसी भी आई हुई हैं ...और जन्मदिन है आज उनका सत्तरवाँ तो लगे हाथ बधाई शशि मासी को भी ---

शुभकामनाएँ हम सबकी ओर से ....(फोटो अभी लिया स्पेशल जन्मदिन की बधाई देने को ).. :-)

Wednesday, June 5, 2013

पर्यावरण दिवस...

सुबह गज़ब का नजारा देखा
घूमने के समय अजब तमाशा देखा
गुलमोहर गुमसुम खड़ा था
दूब खिलखिला रही थी
बादल नंगे पाँव दौडे चले आ रहे थे
हवा उनको पीछे से दौड़ा रही थी
हम अपनी धुन में चले जा रहे थे
प्रकॄति संग में गुनगुना रही थी
गुलमोहर और दूब की छेड़छाड़ के बीच
गुलमोहर के लाल फूल झड़े जा रहे थे
ये देखकर उनकी माँ कभी उन्हें डरा
और कभी मना रही थी..
शायद स्कूल के लिए देर हो रही थी
और वो दोनों को नहाने के लिए बुला रही थी
सूरज दादा बदली की चादर ताने
झूठ-मूठ ही सोने का नाटक कर रहे थे
तभी चिडिया रानी ने चीं-चीं का शोर मचाया
देर हो जायेगी ऐसा बताया...
बादल नें दौड़कर उनको पकड़ लिया
उनकी धक्का-मुक्की में मुझको भी धर लिया..
नहलाना था उन दोनों को
साथ-साथ मुझे भी नहला दिया
भीगे बदन से घर लौटना पड़ा
पर सिहरन को समेटना बहुत अच्छा लगा
आते ही मौसम ने ली अँगड़ाई
और पर्यावरण दिवस पर दी सबको बधाई.....
-अर्चना
(०५-०६-२०१३,नासिक)

Sunday, June 2, 2013

उफ़्फ़! ये....

बदराया आकाश  
सहमा-सा सूरज
गुनगुना प्रकाश
नहाई प्रकॄति
अठखेली करती पछुआ
महकती फ़िजा
सिहरता मन
कसमसाता यौवन
खिलता चाँद
ठिठुरती रात
सुहानी सुबह...
.........