Wednesday, November 12, 2014

ये जिंदगी

यूं तो गुजरते -गुजरते गुजर ही जाती है जिन्दगी
पर जब गुजारनी हो तो नहीं गुजरती ये जिन्दगी..

बदलते -बदलते आखिर  कितना बदल गए हम
कि अपने जमाने से कोसों आगे निकल गयी ये जिन्दगी...

चलते-चलते ,चलते ही जाना है ,जाने कितनी दूर तलक
कि सांसों के घोड़ों पर सवार हो सफ़र पर निकल पड़ी ये जिन्दगी...

जाते-जाते अनगिनत दुआएं देकर जाने की ख्वाहिश है मेरी
कि खुदा के घर में भी दुआओं के सहारे बसर कर लेगी ये जिन्दगी....

मिटाते-मिटाते भी नामोंनिशां न मिटा पाएंगे वे मेरा
क्यों कि कतरा-कतरा बन फ़िजा में अब महकेगी ये जिन्दगी.....


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