Sunday, January 26, 2014

गणतंत्र दिवस- विशेष.....







नन्ही कलाकार  आर्या शुक्ला से आप अपरिचित नहीं हैं ....--
आज एक और बात बताना चाहती हूँ कि राष्ट्र के प्रति प्रेम को दिखाने की जरूरत नहीं होती ...इसे महसूस किया जाना चाहिए ..... और अपने बच्चों को इस भावना से रूबरू करवाना माता-पिता का कर्तव्य है....
आर्या के माता-पिता हर वर्ष पंद्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी को आर्या की स्कूल आते हैं और कार्यक्रम के साक्षी और सहभागी बनते हैं .....
आर्या के माता -पिता का इस कार्य के लिए अभिनन्दन .....


प्रस्तुत है आर्या शुक्ला की आवाज में उनके पापा प्रशान्त शुक्ला की लिखी एक कविता ---


गणतंत्र दिवस की बधाई आप सभी को .......

Sunday, January 19, 2014

सुनो एक कहानी .......

मुझे लिखना आता
तो लिखती अपनी कहानी
सुनाती जिसको
कभी बच्चों की नानी-

एक था राजा
एक थी रानी
जीवन में उनके
अनेकों किस्से-कहानी
उनके थे
दो प्यारे बच्चे
मन के सुन्दर और
बातों के सच्चे
एक दिन अचानक
एक तूफान आया
जिसने घेर कर
राजा को फंसाया
रानी आगे आ अड़ी
तूफान से लड़ी
तूफान था दुष्ट
रानी को दे गया कष्ट
रानी ने हार न मानी
सबक तूफान को चखाने की ठानी
बच्चों को पढाया
जीवन के पथ पर आगे बढाया
अन्दर से उनको
मजबूत बनाया
तूफ़ान उन्हें देख
खूब घबराया
अब बच्चे
हमेशा मुस्कुराते है.
और तूफान तो क्या
उसके फ़रिश्ते भी
बच्चों को सामने देख
कोसों दूर भागते हैं ..........

तुम भी बच्चों 
तन से नही
मन से मजबूत बनना
और आने वाले अनजान
तूफानों से लड़कर
हमेशा जीतना
और जीवन पथ पर
आगे-और आगे बढ़ना............

Wednesday, January 15, 2014

टेबल-टेनिस और टाँग का टूटना



कुछ यूं हुई एक दुर्घटना ......................जनवरी २०१०  की  बात है ----- चार साल पहले .......
..................... क्रिसमस की छुट्टियों के बाद स्कूल खुलने कों मात्र चार -पांच दिन ही हुए थे ,उस दिन तारीख थी, नए साल की जनवरी की, ऊपर से सेकण्ड सटरडे................बच्चो की प्री -बोर्ड एक्जाम चल रही थी मगर उस दिन पेपर नहीं था .....सो मै अपने एक साथी शिक्षक के साथ बाहर मैदान में धूप में खड़ी थी। ...............बाकी लोग दिखाई नहीं दे रहे थे तो मैंने पूछा ------वे लोग कहाँ है?
------वे टेबल-टेनिस खेलने गए |
-------ओह इतने ऊपर ???(हमारे यहाँ टेबल-टेनिस रूम चौथी मंजिल पर है ) |
----हां ,आज तो मै भी जाऊँगा ,वे लोग रोज खेलते है |
-------अच्छा तो मै यहाँ अकेले क्या करूंगी ,वैसे भी एक घंटे तक कोई क्लास नहीं है ,आज मै भी चलती हूँ |
और हम लोग भी चले गए .............चूँकि मै अपने साथियो में सबसे बड़ी हूँ तो उम्र का लिहाज़ पालते हुए उन लोगो ने मुझे पहले खेलने कों बेट पकड़ा दिया और हम डबल्स खेलने लगे ................हमने दूसरा गेम शुरू किया ही था कि साथी खिलाडी कों जगह देने के लिए पीछे हटी और मेरे बाए पैर के पंजे पर वजन लेकर दाया ऊपर उठाया कि मेरे बाए पैर का अंगूठा अन्दर कि ऑर मुड गया ........एक कड़क कि आवाज आई और मै चीखते हुए कि मेरा पैर गया .............नीचे बैठ गई .....................बस वही पता चल गया कि हड्डी टूट गई ........................तुरंत अस्पताल गए ........................प्राथमिक जांच में ही पता चल गया था कि हड्डी के कम से कम तीन टुकड़े तो है ही ................. इसलिएपरेशन करवाना पडेगा ....................मरती क्या करती १० तारीख को ऑपरेशन करवाया ,और दस दिन बाद टाँके कटाने के बाद डेढ़ महीने का पलस्तर चढ़ गया ...................अब उम्मीद थी मार्च तक चलने लगूंगी ...............................
और अब इस घटना के साथ जुड़ा घटनाक्रम --------------आप इसे योग कहे या संयोग ----------------
---मै दिसंबर में ही अपनी सासुजी कों नागपुर में मिलकर लौटी ...........उनके घुटनों में हमेशा से दर्द रहता है ..........मेरे लौटने के एक दिन पहले उन्हें खड़े होते समय एक पैर को रखने में कुछ दिक्कत हुई ....जिस दिन मुझे लौटना था उसी शाम पता चला कि शायद फ्रेक्चर है .................मै तो लौट आई मगर दूसरे दिन उनका ओपरेशन करवाना पड़ा .............मै सोचती थी कि इतनी उम्र (७३ ) में कितना मुश्किल होगा दर्द सहन करना |तो .........................इस घटना से अनुभव हो गया ......................

---जिस दिन ये घटना हुई उस दिन सुबह बस स्टॉप पर स्कूल जाने के लिए पहुंची .......( देर हो चुकी थी )........- मिनट इंतज़ार के बाद पास ही खड़े बच्चों से पूछा ---- मेरी बस चली तो नहीं गई न ? एक ने जबाब दिया -- नहीं , थोड़ी शांति मिली ......थोड़ी देर बाद दूसरे बच्चे ने आकर बताया ----आंटी शायद चली गई ..............अब ?? पैदल चलना शुरू किया.....ईश्वर को याद करते हुए ...( जब याद करो तो मदद जरूर करता है )...१०-१५ कदम ही चली थी की एक दुसरे स्कूल की बस पास आकर रुकी देखा तो उसका ड्राइवर पहले हमारे स्कूल में काम करता था, उसने मुझे पैदल चलते देख बस रोकी ,बोला,बैठिए मैड़म मेरी बस में चलिए आगे मिल जायेगी आपकी बस तो बदल लीजियेगा.... बहुत खुश होते हुए मैं बैठ गई..... आगे -आगे देखती रही कि बस कहीं दिखे ..... पर बस न दिखनी थी न दिखी ......
अब उसका रूट भी बदलने वाला था तो एक सहकर्मी शिक्षक को फोन लगाया ,जो उस दिन बाईक से आने वाले थे , हालांकि जानती थी उनका रूट ये नहीं है,पर मेरे कहने से आ जायेंगे ये भी मालूम था ..... किस्मत से वे आगे नहीं निकले थे मैंने कहा
-
 "सर मेरी बस छूट गई है मैं दूसरी स्कूल की बस से जा रही हूं मगर फ़लां चौराहे से आगे नहीं जायेगी प्लीज आप उधर से मुझे साथ ले लीजियेगा" ...
सर ने कहा- हाँ, ठीक है आप उतर जाईए मैं आ ही रहा हूँ .....

...थोड़ा निश्चिंत होकर बैठी ही थी कि ड्राईवर साहब बोल पड़े - मैड़म थोड़ा आगे उतर जाईयेगा वहां से तो और दूसरे रूट से आने वाली बस भी मिल जायेगी यहाँ कहाँ बीच चौराहे पर रूकियेगा ......
मैंने सोचा ठीक है सर तो आ ही रहे हैं , यहां नहीं तो वहाँ सही जाना तो उनके साथ ही है ..... ड्राईवर साहब को हामी भरी .....और सर को फिर फोन लगाया - सर आगे वाले मोड़ से ले लिजियेगा ये बस जा ही रही है उधर से .....
बेचारे सर ! ...... फ़िर हाँ कह बैठे ....अब मैं बस में आगे-आगे और सर उसी रूट पर पीछे -पीछे ...पर दिखाई कहीं नहीं दे रहे थे ...न ही उनको बस दिखी थी तब तक .....
अब आगे वाले मोड़ पर ड्राईवर साहब ने उतारा ,बहुत-बहुत धन्यवाद कहकर सर के इन्तजार में एक ओर खड़ी ही थी कि मेरी स्कूल का एक बच्चा पास आकर मेरे बगल में खड़ा हो गया ...... मैंने उसे देखते ही पूछा - लेट हो गए? 

बोला - नहीं मैडम बस खराब हो गई थी बीच में ....अब आने ही वाली है ...तभी बस आ गई .... अब कंडेक्टर साहब और बच्चा दोनों मुझे सवार करने पर तुले थे ....सर का तब तक भी कोई -अता-पता नहीं था , कंडेक्टर साहब बोले सर तो इधर से नहीं जाते , वो मुड़ गए होंगे पीछे से ही ........
फ़िर कन्फ़्यूज़न ...... अब मरती क्या न करती चढ़ गई इसी बस में ....... तभी फोन की घंटी बजी - कहाँ हैं मैंडम आप ?
कहा- सर सॉरी , मुझे अपने स्कूल की बस मिल गई  मैं इसमें बैठ गई , बस आपको फोन लगाने ही वाली थी , प्लीज अब आप राह न देखें , आ जाईये स्कूल .....
 ....

और प्रार्थना के बाद साथी शिक्षक ( सर) और मैं  मैदान में धूप में  कड़े हो सुबह की घटना पर हँस रहे थे ..... और वे चलते-रूकते. फोन उठाते, परेशान हो चुके थे और इसी कारण बोले - 

हाँ , आज तो मै भी जाऊँगा टेबल-टेनिस खेलने ,वे लोग रोज खेलते है |...... 

आज  याद आने पर हम खूब हँसते हैं कि आखिर उन्होंने मेरी टाँग तुड़वाकर ही दम लिया ........ 


वो भी टेबल-टेनिस खेलते हुए ..... :-)

Tuesday, January 14, 2014

व्यक्ति का व्यवहार -उसके जीवन का आधार

 ये हैं केवलराम जी  ....


केवलराम जी के लिए कई पॉडकास्ट बनाए है मगर अब तक मेरे ब्लॉग पर पोस्ट नहीं किए कभी ...क्यों ? इसका तो कोई जबाब नहीं है मेरे पास ....
 खुद का परिचय ये कुछ ऐसे देते हैं - 

 "क्या बताऊँ आपको अपने बारे में, जिंदगी में कुछ खास कहने के लिए नहीं है . बहुत सुहाना सफ़र रहा है आज तक जिंदगी का , पर कुछ खालीपन फिर भी महसूस होता रहा . दुनिया देखने ,सोचने और समझने में अलग है. क्या कुछ नहीं दिखाई देता हमें सुबह से शाम तक. कितना जोड़ पाते हैं हम खुद को उन स्थितियों और परिस्थितियों से, बस यही कुछ समझने और जानने की कोशिश रहती है कि हमेशा दुनिया में इंसान बन कर जी सकूँ .
जीवन अनिश्चितताओं और विरोधाभासों का संगम है , इसे समझना आवशयक है ...बस इसी समझ को पाने के प्रयास अनवरत जारी है ...! ब्लॉग से मेरा परिचय होना भी एक अजीब घटना है । (उसके बारे में फिर.....! ) लिखने का शौक तो बर्षों से रहा है.... ब्लॉग ने यह पूरा कर दिया. .ब्लॉग अपने आप में एक नशा है, जितना देखता, पढता, लिखता , सोचता और समझता हूँ , उतना ही इसमें डूबने का मन करता है ....!"
 अभी सुनिये एक पॉडकास्ट - अपनाने में हर्ज क्या है ? 


बाकि सारे पॉडकास्ट आप यहाँ सुन सकते हैं --
चलते-चलते

रात और दिन ....

जब आई तेरी याद
एक लम्हे ने बिताई रात
दूजे ने बिताया दिन
थके मेरे नैन
पल-पल, छिन-छिन....
सांसो की ताल पर
थिरकता रहा मन
मेरे सजन
तुम बिन ,तुम बिन....
पलकों की कोरों से
बिखर गए घूंघरू
बजती रही दिल से
आह! की धुन ...
सुबह की लाली
पूरब से आई
एक नया संदेसा
तेरा फ़िर लाई
फ़िर एक लम्हा
भेज दिया तुमने
संजो लिया फ़िर से
उसको भी गिन
बीत रहे  ऐसे
बस
रात और दिन ....
.......


Thursday, January 9, 2014

जब लिखो -

कम लिखो,अपना लिखो
जागी आँखों का सपना लिखो

कम लिखो ,सरल लिखो
बातें सच्ची और तरल लिखो

कम लिखो ,सटीक लिखो
गलत न हो बस ठीक लिखो

बातें जो लिखो कोरी न हो
तुमने किसी से चोरी न हो ....

जरूरी नहीं है कवि बनना
बनना ही है कुछ तो रवि बनना.................

- अर्चना (8/1/2014)

Thursday, January 2, 2014

सुबह-सुबह...

सुबह-सुबह गिरती है जब ओस
भीग जाता है मन
देखकर अलसाते फूल
उनींदी आँखों से दिखाता है सूरज
एक सपनीला नज़ारा
धुंध में छिपा लगता है
प्रकृति का कण-कण प्यारा
सिहरन देती चलती है
मॉर्निंग वॉक करती ठंडी हवा
उम्र कई साल पीछे जा
हो जाती है नटखट- जवां
अलाव से उठता धुंआ
रगड़ती हथेलियां
गर्माता खून
और दुबके परिंदे देख मन भरता है उड़ान
और लांघता है लम्बा पुल
यादों का
पार होते ही गलियारा दूसरी ओर दिखता है फिर एक पुराना
सपनीला नजारा
फिर गिरती है ओस
इस बार कोर से
उनींदी आँखों की
भीग जाता है मन
सुबह-सुबह ..