Thursday, October 30, 2014

जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना -गोपालदास "नीरज" जी का एक गीत




जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना 
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।
नई ज्योति के धर नए पंख झिलमिल,
उड़े मर्त्य मिट्टी गगन स्वर्ग छू ले,
लगे रोशनी की झड़ी झूम ऐसी,
निशा की गली में तिमिर राह भूले,
खुले मुक्ति का वह किरण द्वार जगमग,
ऊषा जा न पाए, निशा आ ना पाए
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।

सृजन है अधूरा अगर विश्व भर में,
कहीं भी किसी द्वार पर है उदासी,
मनुजता नहीं पूर्ण तब तक बनेगी,
कि जब तक लहू के लिए भूमि प्यासी,
चलेगा सदा नाश का खेल यूँ ही,
भले ही दिवाली यहाँ रोज आए
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।

मगर दीप की दीप्ति से सिर्फ जग में,
नहीं मिट सका है धरा का अँधेरा,
उतर क्यों न आयें नखत सब नयन के,
नहीं कर सकेंगे ह्रदय में उजेरा,
कटेंगे तभी यह अँधरे घिरे अब,
स्वयं धर मनुज दीप का रूप आए
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए। 

- गोपालदास "नीरज"

Wednesday, October 29, 2014

ठुमक -ठुमक "मायरा" चलत

(बहुत कोशिश के बाद भी नानी की बेटी- "मायरा" के ब्लॉग पर प्लेअर नहीं लगे ... :-(





ठुमक -ठुमक "मायरा" चलत
नानी को नचाने -२

नानी आये पीछे-पीछे
मायरा भागे आगे...
नन्हे-नन्हे पैर हिले
छुन-छुन पायल बाजे....
ठुमक -ठुमक "मायरा" चलत
नानी को नचाने.....२

एक जगह टिकती नहीं
ये छोटी पिदुकली
लेटते ही पलटी मारे
देखते रहें सारे...
ठुमक -ठुमक "मायरा" चलत
नानी को नचाने.....२

नानी उसको गोद ले तो
चार बाल नोंच ले
कभी चश्मा खीच ले
और नाक भी दबोच ले
नानी से ही खिचड़ी खाए
और झूला झूले...
ठुमक -ठुमक मायरा चलत
नानी को नचाने.... २

Monday, October 27, 2014

कामायनी (भाग १) - चिंता

बहुत दिनों से मन था इसे रिकार्ड करने का ...कई प्रयास किए, मगर एक तो मेरी कम पुस्तक पढ़ने  की आदत और दूसरे इतनी बड़ी रचना ,नेट से  स्क्रीन पर देखते-देखते आंखें थक जाती ... .... हर बार अधूरा करके छोड़ देती लगता नहीं हो पायेगा
लेकिन इस बार जब दशहरे पर राँची गई ,तो बाज़ार में उस दूकान को देख मन माना नहीं जहाँ २० साल पहले जाया करती थी बच्चों के लिए कहानियों की किताबें लेने ... वत्सल और नेहा से बताया कि ये वही दूकान है तो हम तीनों अन्दर गए मुझे छोड़ दिया किताबों के स्टैण्ड के पास ...देखते -देखते नज़र पड़ी बोर्ड पर लिखा था - पुराना हिन्दी साहित्य ..... एक काउंटर अलग से था ...ऊपर में ...चढ़कर गई तो कई साहित्यकारों जिनके नाम सुने थे की किताबें नज़र आई , सामने ही थी - जयशंकर प्रसाद जी की "कामायनी"... बस खरीद ली और अब रिकार्ड किया पहले भाग -चिंता को ....
कैसा हुआ ये तो आप ही सुनकर बता पाएंगे ...और गलतियों के लिए माफ़ भी करेंगे ... सुझाव भी देंगे तो कोशिश करूंगी आगे के भाग को और अच्छे से कर पाउं ....
और प्रोत्साहन मिलेगा तो जल्द से जल्द पूरा करने की भी कोशिश रहेगी मेरी ...आप तो जानते ही हैं-"मायरा" में मन उलझा हुआ है मेरा .....

डाउनलोड करिए या सुनिए यहाँ -



और एक और प्लेअर पर यहाँ -

Sunday, October 19, 2014

मनवा न लागत तुम बिन

सुनिए - आदरणीय कैलाश शर्मा जी की एक रचना - उनके ब्लॉग आध्यात्मिक यात्रा से

कार्तिक की एक सुबह

23-
- आज जाना नहीं है?
-नहीं ..
-क्यों ?
- मन नहीं है ...
-हम्म!... पर मुझे तो जाना है न!,
-जानता हूँ... तुम्हारा जाना जरूरी है ...
-फिर ?...जाओ ..तुम...
-सुनो ...
-क्या ?
-तुम्हारे आने तक यहीं रूक नहीं सकता ?
-मगर क्यों ?
-तपना है मुझे भी ..... तुम्हारी तरह ,
झुलसना है धूप से ...तुम्हारी तरह ...
इस सूरज के आगे अड़े रहना चाहता हूँ
तुम्हारे लौटने तक खड़े रहना चाहता हूँ ......
- जाओ भी !!! ...सुबह होने को आई है ....
- ह्म्म! जाता हूँ ,जाता हूँ ...पर एक बार ...
- ह ह ह ह ....... :-)

अनवरत प्रवाहमान कहानी का एक टुकड़ा
-अर्चना

Monday, October 13, 2014

जीवन मैग -वेब पत्रिका से एक कहानी - दाह संस्कार

जीवन मैग साहित्य और पत्रकारिता के क्षेत्र में रुचि रखने वाले छात्रों का एक समूह है जिस पर से मैंने पढ़ी कहानी "दाह संस्कार " लिखा है अक्षय आकाश ने ....

फेसबुक पर आकाश कुमार ( इस कहानी के लेखक नहीं )का निमंत्रण मिला पत्रिका को पढ़ने का और जाना आकाश के बारे में .....
आप जानिये आकाश के बारे में पत्रिका पर
फिलहाल अक्षय आकाश की कहानी सुनिए -  

दाह संस्कार

अनवरत प्रवाहमान कहानी का एक टुकड़ा

22

...ये जल्दी उठने की आदत तुम्हारी थी ,मुझे लग गई ...
-तो ?अच्छी आदत है ,उठा करो ...
-हुंह !उठा करो  :P  .....बोल तो ऐसे रहे हो कि जैसे कुछ हुआ ही नहीं
- ओह! हुआ क्या ? बताओ भी ...... :)
- न ,नहीं बताना ...
- प्लीज ....  बता भी दो ....रूको !रूको चाय लेकर आता हूँ फिर बताना
-चाय ?,बन भी गई ?
-हम्म !!!...
-कब ?
- न!...... ,पहले तुम बताओगी फिर मैं  .....
-अरे !!! ..... मैं तो ऐसे ही ......
- नहीं ...बताना पड़ेगा ....छुपाने का कोई प्रॉमिस नहीं हुआ था
-ओके !ओके! ... मैंने इसलिए कहा कि --जल्दी सोने की भी तो आदत थी नहीं तुम्हारी ..........और दिन में सोना मुझसे होता नहीं ........ अब उठकर अँधेरे में अकेले घूमने भी तो जाने का मन नहीं होता ...
-ओह!.... सुबह -सुबह उदासी !!! नो! ......खुश हो जाओ यार ! चलो मैं बताता हूँ -चाय कब बनाई ...
- हम्म! .....बताओ  कब ?.....बताओ जल्दी ......
.
.
.

- जब तुम सुबह का सपना देख रही थी .......
......
....
अनवरत प्रवाहमान कहानी का एक टुकड़ा ........
-अर्चना

Thursday, October 9, 2014

इक जरा इन्तजार



सब कुछ सत्य है !

मैंने देखा है मॄत्यु को
वो आई, पर
मुझे साथ न ले गई
वो फिर आयेगी,

जानती हूँ
और इस बार कोई बहाना
न कर पायेगी
इस बार तैयार हूँ मैं
उससे भी पहले से ....
-अर्चना

Wednesday, October 8, 2014

अपनी भाषा

एअर इंडिया की ऊडान में अचानक समय परिवर्तन हो गया था साढे़ तीन बजे के बदले डेढ़ बजे निकलना पड़ा .... हड़बड़ी में भागना पड़ा और....  ..."अदा जी" को शुक्रिया और विदा कहने का मौका भी नहीं मिल पाया.....

दिल्ली में रूकना था ढाई घंटे ..दिल्ली से भी फोन ट्राय किया....अफ़सोस ! नहीं मिला ....

अकेले लम्बी दूरी की यात्रा करो तो दॄष्टि चारों ओर आते -जाते लोगों पर लगी ही रहती है.... मैं भी राँची से इन्दौर आते हुए यही करती रही ....थोड़ा घूम फिर कर बैठ गई एक कुर्सी पर ... बाजू में एक कुर्सी छोड़कर एक लड़की बैठी थी ...कुछ ही देर में उसके कुछ साथी आये तो वो .बेग वही छोड़कर.पीछे की तरफ़ चली गई बतियाने ,अंग्रेजी में ही बातें करते रहे वे हिंदी का एकाध शब्द  बोले ......५-६ साथी थे वे शायद इन्दौर में पढ़ाई कर रहे थे और छुट्टियाँ खतम होने पर लौट रहे थे घरों से ....


मेरे बाजू वाली कुर्सी पर मैंने भी अपना झोला रखा हुआ था, थोड़ी देर में एक विदेशी परिवार जिसमें पति-पत्नि के अलावा तीन छोटे बच्चे लगभग ६वर्ष की बड़ी बेटी ,४ वर्ष का बेटा और लगभग ३ वर्ष की छोटी बच्ची  थी ,वहाँ आया ....पत्नि की नज़रें खाली कुर्सी  खोज रही थी... मैंने अंदाजा लगते ही अपना झोला उठाकर नीचे रख लिया वे मेरे पास वाली कुर्सी पर बैठ गईं और फोन में व्यस्त हो गईं, पति पास ही बेग रखकर टहलने लगे और बच्चे इधर-उधर खेल-घूम कर खुद का मनोरंजन करने लगे.....थोड़ी देर बाद बड़ी बेटी माँ के पास आकर बैठने की कोशिश करने लगी ... माँ ने बाजू की बैग वाली कुर्सी की ओर देखते हुए मुझसे पूछा- आप जानती हैं, ये सामान किसका है ?(स्पष्ट हिंदी में )....
चुँकि मैं जानती थी, मैंने पीछे बैठी लड़की से कहा- आपका सामान हटा लीजिए... वो आई और सामान हटा लिया , बच्ची खुश होते हुए बैठ गई माँ के पास .....
मुझे उन्हें हिंदी बोलते हुए सुनना अच्छा लगा ... मैंने पूछा- कहाँ जा रहे हैं आप ? जबाब मिला - अमेरिका ...

तुरन्त ही विमान में जाने का आदेश मिला और हम लाईन में लग अलग हो गए ....
इन्दौर में उतरने पर वे बाहर मिली ...उनके पास से गुजरते हुए रहा नहीं गया ...धन्यवाद कहने का मन था ,
मैंने कहा- बहुत अच्छा लगा आपको हिंदी बोलते हुए सुनना ... उनके चेहरे पर लम्बी सी मुस्कुराहट आ गई...खुश होकर कहा - Oh! ...Thankyou...Thankyou .....
और Bye कहकर मैं चल दी.....

Tuesday, October 7, 2014

चमक

चमक






कल फिर मेरी सहयात्री ने मुझसे पूछा -
दूसरी शादी नहीं की?
हँस दी मैं हमेशा की तरह ......
आज दुधिया चाँदनी है
ये चाँद से कहो न थोड़ा हटे, छुपे....
तुम्हारे तो पास है वो, साथ है वो
कई दिनों से, कई सालों से...
मान लेगा तुम्हारी बात शायद ..
इतनी चाँदनी में तो
भीगी कोरे भी चमक कर
दिख जाती है ...
हँसने पर भी तो
भीग जाती है न कोरें.....
- अर्चना

फेसबुकी कतरन - प्रेम

तुम्हारे पास दिल है,
मेरे पास भी दिल है...

तुम मुझसे प्रेम करते हो,
मैं तुमसे प्रेम नहीं करती...

तुम उग्र हो जाते हो,
मैं धैर्य रखती हूँ ...

तुम्हारा अपमान होता है,
मेरा भी अपमान होता है....

क्या दिल सिर्फ़ तुम्हारे पास है?
या दिल, मेरे पास भी है ? ...
-अर्चना

Sunday, October 5, 2014

ये रात


ये रात
शुरू कब होती है
पता नहीं चलता ....
भागादौड़ी
के चक्कर में

और दिन ...
रात के आंचल में
दुबक के छुपा
रहता है
....
सुबह
पता चलता है कि
आँखों ही आँखों में
गुज़र गई रात ये .......
-अर्चना