Tuesday, December 16, 2014

भोर का राग

अपनी नानी याद आ रही है मुझे भी .....अभी -अभी भोर का मायरा राग आलाप बंद हुआ है,पता नहीं क्या सूझा रात्रि को पहले पहर का भी सुनाया .....तब तो नानी ने सुन-सुन के  समापन करवा  लिया तो नानी का हाथ तकिया बनाना पड़ा .....अब माँ की गोद में बिराज कर ही सुनाया .... राग तो बंद हुआ मगर माँ हिली तो फिर शुरू होने का खतरा ..... पापा थक के अब  सारंगी बजा रहे हैं ......

फेसबुक पर मॉर्निंग वाक किया तो घुघूती बासुती जी कहते हुए दिखी -
वाह बारहखड़ी!!

Monday, December 15, 2014

मायरा और बॉल

Thursday, December 11, 2014

सांचा नाम तेरा ...

जब भी ये गीत कानों में पड़ता है .... विश्वास बढ़ता हुआ सा लगता है ....

Tuesday, December 9, 2014

चाय की चुस्की विथ सूरज भाई व्हाया अनूप शुक्ल



" पुलिया पर दुनिया " के लेखक ,ब्लॉगर और फेसबुकिया साथी अनूप शुक्ल जी का एक स्टेटस सुनिए यहाँ - 



और पढ़िए यहाँ-

लो आ गयी उनकी याद
पर वो नहीं आये।
गाना धीमे बज रहा है। पूछा तो चाय वाले ने बताया-'मौसम की गड़बड़ी है।रेडियो स्टेशन से ही धीमे बज रहा है।'
आसमान में सूरज भाई ऐसे दिख रहे हैं मानो अपने चारो तरफ रुई लपेटे अधलेटे हैं।लगता है उनके यहाँ कोई दर्जी नहीं है।होता तो रुई समेट के ठीक ठाक रजाई सिल देता।
सूरज भाई बादलों की रुई के बाहर मुंह निकाले किरणों को ड्यूटी बजाने का निर्देश दे रहे थे।किरणों ने जब देखा कि सूरज खुद अलसाये हुए हैं तो वे भी आराम-आराम से अपना काम अंजाम दे रही हैं। कोहरा, जो कल किरणों को देखते ही फूट लिया था, आज बेशर्मीं से टिका हुआ था।कहीं कहीं तो किरणों को छेड़ भी दे रहा था। किरणें भी बचबच कर टहल रहीं थीं। झाड़ी, घने पेड़ के नीचे जाने की बजाय खुल्ले में कई किरणों के साथ सावधानी से टहल रहीं थीं।
धरती के कुछ हिस्से सूरज की इस किरण और ऊष्मा सप्लाई से नाराज होकर सूरज की तरफ मुट्ठी उठाकर शेर पढ़ रहे थे:
वो माये काबा से जाकर कर दो
कि अपनी किरणों को चुन के रख लें
मैं अपने पहलू के जर्रे जरे को
खुद चमकना सिखा रहा हूँ।
सूरज भाई इस शेर को सुनकर बमक गए और बादलों का सुरक्षा कवच तोड़ कर बाहर निकल आये।चेहरा तमतमाया हुआ था।इधर उधर माइक की तलाश की लेकिन शुक्र है कि मिला नहीं होगा वर्ना चमकना छोडकर भाइयों बहनों करने लगते। सूरज अरबों बरसों से अपना काम करता आ रहा है इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि वहाँ लफ़्फ़ाजी के लिए माइक और रेडियो नहीं है।
गाना बजने लगा:
'तुमने क्या समझा हमने क्या गाया
जिंदगी धूप तुम घना साया।'
जाड़े के मौसम में यह गाना बेमेल है।जाड़े में घूप की जरुरत होती है साये की नहीं।लेकिन जैसा हो रहा है वैसा की गाना भी बजेगा। चोरों से निजात दिलाने के लिए गुंडे सर्मथन मांग रहे हैं।
तू न मिली हम जोगी बन जायेंगे
तू न मिली तो।
गाना लगता है किसी बूढ़े राजनेता का बयान है।वह सत्ता से कह रहा है अगर मुलाक़ात नहीं हुई तो समझ लो। जोगी ही बनकर बदला लेंगे। तुझे अपने इशारे पर नचाएंगे।सत्ता हलकान है-'इधर सठियाया राजनेता उधर ढोंगी जोगी।वह जाए तो जाए कहाँ।'
'ये लाल रंग कब मुझे छोड़ेगा
तेरा गम कब तलक मुझे तोड़ेगा।'
इस सवाल का जबाब भला मिला है किसी को।हमने सूरज भाई से चाय की चुस्की लेते हुए पूछा।
अरे छोड़ो यार लाल, हरा,केसरिया सब झांसा देने के तरीके हैं। अपना काम करो मस्त रहो। अभी तो एक चाय और पिलाओ। जाड़ा जबर है।
हम सूरज भाई को चाय पीते हुए देख रहे हैं।बीच बीच में मुंह से भाप टाइप निकालते हुए वे जताते जा रहे थे कि जाडा पड़ने लगा।
सुबह हो गयी। सुहानी भी है।


Sunday, December 7, 2014

कामायनी (भाग २) आशा

बहुत दिनों से मन था इसे रिकार्ड करने का ...कई प्रयास किए, मगर एक तो मेरी कम पुस्तक पढ़ने  की आदत और दूसरे इतनी बड़ी रचना ,नेट से  स्क्रीन पर देखते-देखते आंखें थक जाती ... .... हर बार अधूरा करके छोड़ देती लगता नहीं हो पायेगा
लेकिन इस बार जब दशहरे पर राँची गई ,तो बाज़ार में उस दूकान को देख मन माना नहीं जहाँ २० साल पहले जाया करती थी बच्चों के लिए कहानियों की किताबें लेने ... वत्सल और नेहा से बताया कि ये वही दूकान है तो हम तीनों अन्दर गए मुझे छोड़ दिया किताबों के स्टैण्ड के पास ...देखते -देखते नज़र पड़ी बोर्ड पर लिखा था - पुराना हिन्दी साहित्य ..... एक काउंटर अलग से था ...ऊपर में ...चढ़कर गई तो कई साहित्यकारों जिनके नाम सुने थे की किताबें नज़र आई , सामने ही थी - जयशंकर प्रसाद जी की "कामायनी"... बस खरीद ली और रिकार्ड किया पहला भाग -चिंता को ...



और आज किया दूसरा भाग आशा.
कैसा हुआ ये तो आप ही सुनकर बता पाएंगे ...और गलतियों के लिए माफ़ भी करेंगे ... सुझाव भी देंगे तो कोशिश करूंगी आगे के भाग को और अच्छे से कर पाउं ....
और प्रोत्साहन मिलेगा तो जल्द से जल्द पूरा करने की भी कोशिश रहेगी मेरी ...आप तो जानते ही हैं-"मायरा" में मन उलझा हुआ है मेरा .....

डाउनलोड करिए या सुनिए यहाँ -


या यहाँ से -

Saturday, December 6, 2014

विरह ...

सावन आँगन बरसे बूँदे,पलकन बोझा ढोय
सरर सरर मोरी चुनरी सरके सिहरन देह मा होय...

चाँद बिछावै तारा रंगोली जब चाँदनी आँगन धोय
सरस सुगंध मदन मन मोहे, सजन बुला दे कोय...

कजरा गजरा महावर रूठे, रोम-रोम हुलसाय
सखी सुन,मोरो चैन भी खोयो,विरह मोहे तड़पाय .....

-अर्चना
और इसे मैंने गाने की कोशिश भी की.... 
सुनना चाहें अगर ....

Friday, December 5, 2014

अमॄत बूँद




एक पल कोई साथ चले तो,बनता एक अफसाना है,
कल फिर लौट के जाना है ,अपना जहाँ ठिकाना है। 

पथ के कांटे चुनते - बीनते हमको मंजिल पाना  है,
मिल जाए जो  दीन -दुखी तो अपना हाथ बढ़ाना है।

चलते-चलते मिल जाते साथी,बस बतियाते जाना है,
मंजिल की तुम राह न ताको मिलकर चलते जाना है।

"बूँद"-"बूँद" से भरेगी गागर,बस हमको छलकाना है,
हर एक जगह पर कुंभ लगेगा,अमॄत बूँद गिराना है ..... 
-अर्चना

Thursday, December 4, 2014

जी ...वो.... , डर गई थी मैं....

-मेडम प्लीज....
बाजू से आवाज आई तो मुड़कर देखा मैंने , एक पुरानी स्टूडेंट की माँ ने मुझे पुकारा था..
- मेडम प्लीज थोड़ा रूकिए , आपसे एक बात करनी है..
मैं रूक गई, - जी कहिए कहते हुए ...
उन्होंने कहा -दो मिनट.. और उन शिक्षिका से जल्दी-जल्दी बात खतम की जिनसे मिलने के लिए आई थीं।
उनकी बेटी अच्छा खेलती थी , मुझे याद आया एक बार टीम में सिलेक्शन भी हुआ था ,मगर तब बाहर भेजने से मना कर दिया था घर से तो मैंने उसके माँ-पिताजी से बात की थी और राजी किया था भेजने को ... तब पिता ने बड़े खुश होते हुए अपनी सहमति जताई थी कहा था कि मैं भी खिलाड़ी रहा हूँ ....इसकी मम्मी ही मना करती है , डरती है ,बाहर भेजने से ...
तभी वे मेरे और निकट आ गई और पास आकर कहा -
- नमस्ते , माफ़ कीजिए आपको ऐसे रोकना पड़ा, पर बहुत दिनों से आपसे एक बात बताना चाहती थी ,आज आप दिख गई तो....
-जी नमस्ते ,कोई बात नहीं ... कहिए क्या कहना है आपको ?मैंने पूछा
- जी आपने उनसे कुछ बात की थी आठ दस  माह पहिले....कुछ फ़ेसबुक ....अपने पति के बारे में याद दिलाया उन्होंने... 
मुझे याद आया, मैंने बताया  - हाँ ,हाँ .. वो आजकल उम्र गलत डालकर बच्चे अकाउंट बना लेते हैं, लेकिन मुझे फ़्रेंड रिक्वेस्ट भी भेज देते हैं....मैं एड कर लेती हूँ ...और समय-समय पर कुछ अच्छा पढ़ने की लिंक देती रहती हूँ ......आपकी बेटी के फोटो पोस्ट देखे थे, कुछ अजीब से थे ,अच्छे नहीं लगे थे मुझे  सेल्फ़ी और चेहरा पहचान कर नाम देखा तो नाम अलग था.... मुझे कुछ गलत लगने पर मैंने मेसेज में पूछा भी था कि- नाम गलत क्यों है? तो कोई जबाब नहीं मिला था ......
.... और अचानक एक-दो दिन बाद ही उसके पापा से मुलाकात हो गई तो उनसे पूछा था कि बेटी के पास फोन है क्या? नेट यूज करती है क्या ?,उन्होंने कहा- है तो, मगर नेट यूज नहीं करती ,मैंने कहा -तो फिर साईबर कैफ़े वगैरह जाती हो ...
 उन्होंने ना ही कहा था... बताया था  कि बस उसकी मम्मी का फोन यूज करती है कभी-कभी..और उसमें नेट है....और पूछा -मगर क्यों?
और मैंने उन्हें बताया था कि उसकी फोटो देखी थी, इसलिए सहज पूछा... 
-नहीं-नहीं , उसकी हो ही नहीं सकती ,आपने गलत देख लिया होगा ...कहते हुए उन्होंने अपनी बात रखी थी ...मैंने कहा था कि कोई बात नहीं ,हो सकता है मुझसे गलती हुई हो, आज कन्फ़र्म करके फिर आपको फोन करूंगी, और उनका नम्बर ले लिया था.... 
घर जाकर देखा भी था तो अकाउंट डिलिट हो चुका था ...मैंने फिर कोई बात नहीं की ...मैं तो उस बात को भूल भी गई अब ....
- जी , जी ... उससे बहुत गड़बड़ हो गई थी... बात बहुत बिगड़ गई....
- मगर हुआ क्या ? मुझे तो बताना ही था....
- जी, वो तो सही है , मगर उस बात पर उन्होंने बहुत पिटाई की थी बेटी की भी और मुझे भी बहुत पीटा ...
- अरे! .... ...आप मिलती तो आपको भी मैं यही बताती.... अगर ऐसा हुआ तो उन्होंने बहुत गलत किया , उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था..
-जी वही आपको बहुत दिनों से मिलकर बताना चाहती थी ,बात तलाक तक आ गई थी ...उन्होंने तो मेरे माता-पिता को भी बुलाकर बोल दिया था कि -अपनी बेटी को ले जाईये यहाँ से ....खुद भी बिगड़ी हुई है और बेटी को भी बिगाड़ रही है ........उनके लिए तो अच्छा ही होता न !
-अरे!!! मैं अवाक थी ....
-उस दिन घर आकर वे बहुत नाराज हुए थे ,और गुस्से में डाँटा भी था मुझे और बेटी को भी फ़िर समझाया भी उसे ... फिर किसी काम से बाहर चले गए ,मैंने सोचा बात खतम हो गई ... मगर दूसरे दिन तो उनका गुस्सा चरम पर था , बहुत पी कर आए और घर पर ही मेरे और बच्चों(एक बेटा भी है उनका) के सामने बॉटल लेकर बैठ गए, धमकाने लगे - कि देखो अब मैं क्या करता हूँ ....वो वाला मोबाईल भी फ़ेंककर तोड़ दिया , आज भी अलमारी में रखा है , कभी दिखाउंगी आपको ..... 

मैंने पूछा - क्या आप जानती थी कि बेटी  फ़ेसबुक यूज करती है ? और उसने किस तरह के फोटो पोस्ट किए है? और क्या उसके पापा को ये बात पता नहीं थी? 

उन्होंने कहा- जी ,मुझे पता था, उनके पापा को नहीं बताया था मैंने, उन्होंने पहले ही मना किया था, लेकिन आप तो जानती है आजकल दूसरे बच्चों को देखकर बच्चे का मन भी होता है , और एकदम बन्द तो नहीं कर सकते हैं सब, रोकटोक लगा देंगे तो उतना ही जानने की इच्छा बढ़ती है, और बच्चे छुपकर करेंगे फिर..  मैंने ही बनवाया था,हाँ मैंने उसे समझाया था कि फोटो वगैरह न पोस्ट करे....

- मगर आपको उन्हें(आपके पति को)बताना चाहिए थी यही बात ...

-एक बात बताईये जिस आदमी के साथ १७-१८ साल बिता लिए हों और फिर भी उसे मुझ पर भी शक हो ,किसी से बात नहीं करने देना,मिलने नहीं देना आदि....जिसको खुद करे तो वही बात अच्छी लगे और दूसरे करें तो बुरी जैसे वे अपनी पुरानी मित्र ?परिचित से मिलें तो मेरे सामने ही गले मिलें और अगर मैं ऐसा करूं तो जमीन-आसमान एक हो जाए ....  जिस आदमी को आप समझा नहीं सके इतने सालों बाद भी तो उसे वैसे ही छोड़ देना चाहिए न मैडम ....क्या किया जा सकता है , पर बहुत कुछ तो जमाने के साथ भी चलना पड़ता है बच्चों को आगे बढ़ाना है तो उनको भी सारी जानकारी होनी चाहिए या नहीं ?...

- मुझे ये सब नहीं पता, मैंने तो सोचा भी नहीं कि वे इस तरह बर्ताव करेंगे,वे तो खुद खिलाड़ी भी रहे हैं, बताया था मुझे .... लेकिन एक बात बताईये - नाम भी अलग था... मैंने तो फोटो देखकर ही पहचाना था, और मैं उसे पहचानने में भूल कैसे कर सकती हूँ.?
- जी वो मैंने ही कहा था कि चेहरा और नाम एक हो तो बहुत मुश्किल हो सकती है, नाम से तो पूरा समाज जान जाएगा , " ........" लिख देने से ही सारा समाज बातें बनाने लगेगा ... और हमारे समाज में तो बस लोगों को मौका ही मिलना चाहिए ....

मैं सन्न थी सारी बातें जानकर.... हैरान थी ऐसे माता-पिता से मिलकर...और मुझे याद आया कि उस बच्ची के पापा से बताने के बाद मैंने एक बार मेरे सामने आने पर उससे पूछा भी था कि तुम्हारा अकाउंट फ़ेसबुक पर था न ? ...जी वो अब नहीं है डिलिट कर दिया ...... कह कर नजरें झुका ली थी उसने... मैंने कहा था -हाँ वही ,,तुम्हारे पापा से बताया था मैंने....और मेरे मेसेज का जबाब क्यों नहीं दिया था तुमने तब?
 .... " जी ...वो.... , डर गई थी मैं" बस इतना ही कहा था उसने ...... बाकि कुछ भी बताया  नहीं था मुझसे ...
अगर माँ से मुलाकात न होती तो मैं कभी जान भी नहीं पाती .... :-(
...

सारी बात सुनकर मैंने उस बच्ची की माँ से सॉरी कहा ,कहा कि- आपकी भी गलती है,आपको छुपाकर नहीं करना चाहिए  मुझे नहीं पता था कि इतना कुछ हो जाएगा ,मगर आप यकीन रखिए अगर उनसे पहले आप मुझसे मिली होती तब भी मैं यही सब आपसे कहती .....
- जी बिलकुल ठीक है आपका कहना , अच्छा लगा कि आप इतना ध्यान रखती हैं , लेकिन कभी-कभी इन्सान जो बाहर से दिखता है वैसा होता नहीं .... भीतर से ....

मैंने पूछा- अब सब ठीक है?
- जी अब तो ठीक है, नया मोबाईल भी दिलवा दिया है बेटी को ...और अब बेटी को अपने किसी भी दोस्त से मिलना होता है तो पहले ही पापा से बता देती है कि हम एक क्लास में  है और इससे कॉपी -किताब लेनी है ...या कहीं जाना है तो किन-किन दोस्त और सहेली के यहाँ और किनके साथ जा रहे हैं ......

.
.
इस बात को बहुत साल हो चुके ... याद आई .....जब घुघुति बासुती जी ने फ़ेसबुक पर सवाल किया था-
Ghughuti Basuti अर्चना चावजी, क्या इस उम्र में भी अपनी फोटो नेट पर न आने देने के पीछे अचेतन में छिपा यह कारण उस समय के हरियाणा के बारे में कुछ कहता है? और उस जमाने में तो स्त्रियों का अनुपात भी इतना बुरा न रहा होगा. टी वी भी नहीं आया था. पोर्न भी नहीं था. जो था वह वहां की महान संस्कृति भर के कारण था.

मैंने जबाब दिया था -

अर्चना चावजी कुछ ? ... बहुत कुछ कहता है .... मैं हमेशा सोचती हूँ... सोचती रही हूँ ... खासकर आपके फोटो न डालने पर .... कोई कारण समझ नहीं आता था... लेकिन अब लग रहा है,आप जहाँ जन्मी होंगी और मैं जहाँ जन्मी ... जमीन -आसमान का फर्क रहा होगा....



हालांकि डरते तो हम भी थे .... पर इतने की  कल्पना नहीं की थी.....

ज्यादातर दबंग कहलाने या कहलाना पसंद करने वाले लोगों का दब्बूपना उनके व्यवहार और उनके द्वारा अपनाए जाने वाले रीति-रिवाजों में दिखाई देता है.........

Wednesday, December 3, 2014

विदा कहना और करना आसान नहीं ...

2/12/1996 से....... 2/12/2014....... अब तक
18 साल......

पर उस दिन को ,उस पल को
भूलना आसान नही,

भुलाना भी क्यों?
और कैसे?
जबकि
अंतिम सांस की आहट
और खड़खड़ाहट
गूंजती है अब भी
कानों में
और ये आँखे बंद
होकर भी नहीं होती
विदा कहना
और करना
आसान नहीं....
.
वचनबद्ध हूँ...
रहूँगी सदा.....

महसूसती हूँ
आज भी
अंतिम स्पर्श
.....
और

सुनाई देती है चीख
अंतिम मौन की....

रात भर का साथ
और निर्जीव देह
एक नहीं दो
.
बस!
दिखाई देता है
जीवन यात्रा
का पूर्णविराम....
जहाँ लिखा था-
ॐ नमो नारायणाय......
.
.
वक्त के साथ
सफर जारी है मेरा

ॐ शांति शांति शांति......

Tuesday, December 2, 2014

परिवार अब तक

कुछ लिखने कहने की जरूरत नहीं...
ईश्वर के आशीष से ....