Monday, December 4, 2017

यात्रा में क्षणिकाएं

1-

थक चुकी हूँ अब ...
फिर भी मुस्कुराती हूँ,
कि तुम सदा  मुस्कुराओ!
मौन होकर भी
बहुत कुछ कहती हूँ
कि बस! तुम समझ जाओ!
सुनाई नहीं देती
अब कोई भी आहट
किसी हादसे की,कि
चाहे किसी भी धुन में गाओ!
सफर पर हूँ,अकेली,निडर
और अनजान डगर में
एक आस लिए कि
मंजिल पर लेने तुम आओ!
-अर्चना

2-

उम्मीद नहीं थी कि
आँसू बरसकर
कागज पर उकेरे
अक्षरों को बादल में बदल देंगे
अचरज से आँखे फटी रह गई
जब अचानक से अनहोनी घटी!
-अर्चना

3-

कविताएं जन्म लेती है
भावनाओ से
भावनाएं बहती है
मौन के चिंतन से
चिंतन शुरू होता है
एकांत के मिलने से
और एकांत जाने कब
किस कोने में दुबका मिल जाये
नहीं जानता कोई
और अप्रत्याशित रूप से
जन्म ले लेती है
काव्यमय कविता ...👌
-अर्चना

4 comments:

kuldeep thakur said...

दिनांक 05/12/2017 को...
आप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...

दिगम्बर नासवा said...

तीनों क्षणिकाएं बहुत गहरी ...
लम्बी बात कहती हुयी ... लाजवाब ...

NITU THAKUR said...

Man ke bhav jab kagaj par aate Hai
Bejuban shabd bahut kuch kahe jate Hai
Man se likhi man ne padhi
Kavita jaise jivant ho khadi

Onkar said...

वाह, बहुत बढ़िया