Saturday, May 4, 2013

रे मन!...

तन की तल्लिनता को तौल कर मत निहार
मन की मलिनता को मौन हो मत स्वीकार

घन की घनिष्ठता का सुन तू घोर घर्षण
छन-छन छनकती पायल का मत रख आकर्षण

धन की धौंस से न धर धीमे से गतिरोध
जन की जड़ता का कर पुरजोर विरोध....

5 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

अँगड़ाई कुछ कर पाने की..

Ramakant Singh said...

घन की घनिष्ठता का सुन तू घोर घर्षण
छन-छन छनकती पायल का मत रख आकर्षण

मन को झंकृत करती भावमय लडियां

संगीता पुरी said...

अच्‍छी है ..

Anju (Anu) Chaudhary said...

वाह

कालीपद "प्रसाद" said...

अलंकृत भाषा में सुन्दर बात कही आपने !बधाई आपको

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