Tuesday, March 31, 2015

अजीब दास्ताँ है ये .......................................कहाँ शुरू कहाँ ख़तम .........ये मंजिले है कौनसी .........न वो समझ सके न हम ...........


* नोट :- पोस्ट को पाँच साल हो जाएंगे ६ अप्रेल २०१५ को ... थोड़े परिवर्तन के साथ फिर से पोस्ट किया है ... ....

फ़्लैश बेक.... 

एक छोटी बच्ची ,करीब ४-५ साल उम्र की ........सुन्दर सा फ़्रॉक पह्ने हुए .......सुबह टिफिन लेकर ताँगे में बालमंदिर जाना......... साथियों के साथ खेलना , टिफिन खाना , नाचना ,कविता - कहानी सुनाना , शाम तक घर आना हाथ-मुहं धो कर माँ से चोटियाँ बनवाना --- रंग-बिरंगी रिबन लगवाना...... फिर खेलना ,.......वापस आकर दादा-दादी के साथ शाम के दिए लगाते समय प्रार्थना बोलना .......सब बड़ो कों प्रणाम करना फिर साथ में खाना खाना और सोते समय दादी से कहानी सुनने के बदले में उन्हें पहले पहाड़े और उलटी गिनती सुनाना .............यही दिनचर्या

फिर ........१०-१२ वर्ष की किशोरी .............स्कर्ट -ब्लाउज पहनावा हुआ ..................पढ़ने के अलावा स्कूल के अन्य कार्यक्रमों में हिस्सा लेना ..................सहेलियो के साथ खेलते समय छोटे भाई-बहनों कों भी सँभालते रहना यही दिनचर्या ..........

अब थोड़ी बड़ी ......उम्र १४-१६ वर्ष .................पढाई में ज्यादा मन नहीं लगता .............खेलना ज्यादा पसंद खासकर लड़को वाले खेल .............और हम उम्र लड़को के साथ खेलना......माँ नाराज रहती .............घर के काम में ज्यादा मन नहीं लगता ..............स्कूल में किसी भी खेल में चयन हो जाने पर कहते ------सर ,हम नहीं खेल सकते आपको घर पर पूछने के लिए आना पड़ेगा ........और सर----- सच में आकर पिताजी से आज्ञा ले लेते पिताजी को तभी पता चलता कि मैं क्या -क्या और कैसे खेलती हूँ ...............वे आश्चर्य करते और खुश होकर प्रेक्टिस करने की अनुमति दे देते ..............लड़कों के साथ खेल का अभ्यास करते......... पर बातें सिर्फ काम की ..........दोस्ती अच्छी रहती ...............यही दिनचर्या .........

फिर ........१७-२२ वर्ष की उम्र ..............कॉलेज जाना ........यहाँ फिर पहनावा बदल गया था ,अब स्कर्ट छूट गया उनकी जगह लम्बे .............पैर ढंकने वाले कपड़ो ने ले ली .............सलवार -कमीज सिर्फ मुस्लिमों का पहनावा माना जाता था ...........परिवार थोडा फारवर्ड माना जाता था.........तब "बेलबोटम "चले थे उसे लम्बी कुर्ती के साथ पहनते थे ...........यहाँ खेलना करीब-करीब बंद हो गया .............पढाई करनी पडी ........मैदानी खेलो की जगह टेबल-टेनिस और बेडमिन्टन ने ले ली ..............सिर्फ परिचित लड़कों से ही बात करने की अनुमति ...........यानि जिनके परिवार को हमारा परिवार जानता हो ................अनजाने दोस्तों को दूर से ही नमस्कार और सिर्फ सहेलियों की दुनिया ................खुद तो किसी को पसंद कर ही नहीं सकते थे, सिर्फ दिल में ही रखना होता था, कोई अच्छा भी लगे तो जाहीर नहीं किया जा सकता था ......(खुद ही झिझक होती थी) ......और कोई अपने को पसंद करे तो दूर रहकर एक आह ...............की---- हाए! .........बात भी नहीं कर सकते ......(जाने किस डर के मारे!)..............पढाई के अलावा घरेलू कामकाज भी करना और लड़कियों के काम.................सिलाई-कढाई की क्लास लगाना .........एक नियमित दिनचर्या .............मन की पसंद पर लगाम ...............

२३ वर्ष होते-होते शादी ......अब जिंदगी का दूसरा पहलू ....


.............लड़की से महिला ..............पति-----परिवार की पसंद का , लेकिन खुद इसके लिए तैयार होने से -----पति की पसंद को अपनी पसंद बना लिया ..........दोनों ही को कोई परेशानी नहीं हुई ..........भाषा , विचार , रीती-रिवाज सबके ऊपर समझदारी हावी हो गई। .................सजना,संवरना , साड़ी , चुडीयाँ , बिंदी का साइज , सब -कुछ बदलते रहा .....कभी अपनी पसंद ----कभी उनकी ................दोनों की पसंद ............सब_कुछ रंग-बिरंगा ................लड़की की  पसंद का भी ख्याल होने लगा ...........दिन बहुत खुबसूरत लगने लगे..........घर से दूर होकर भी घर ज्यादा याद नहीं आता ..............अगले ३-४ साल में दो प्यारे बच्चों के मम्मी -पापा हो गए  .............अपनी परेशानियों ,गुस्से झगड़े के बीच,बच्चों की खुशियाँ , उनका प्यार हावी हो गया ..................उनकी देखरेख ----उनका ख़याल.................. , उनका स्कूल , कपड़े, खाने ..................पति की पसंद हटकर बच्चों पर आ गई ..............जीवन का सबसे सुखद समय बीत रहा था............व्यस्त दिनचर्या ................... , ......... .... ................. ........ ........... ............... ..............             

..........७-८ साल तक बीता समय अब सपना -सा लगता है ..............फिर जिंदगी ने पलटा खाया .................पति का एक दुर्घटना में निधन हो गया .....................अब सबके होते हुए भी एकदम अकेली ................पहनावा एकबार फिर बदल गया ..............परम्परानुसार........... रंग जीवन के साथ ही कपड़ों से भी गायब हो गए बिंदी , चूड़ी ........सब गायब ...........यहाँ तक कि पूजा करते समय जब कंकू चढाते है, तो सर पर लगाने के लिए बरबस हाथ चला जाता ...............(आदत - सी पड़ गई थी )............... तो पूजा करने को मन ही नहीं करता ...........कहीं तो समय बिताना पड़ता तो नाम-स्मरण से ही ....................सबसे ज्यादा समस्या हुई दिनचर्या के बदल जाने की ................पति के साथ रहते हुए नाश्ता , खाना समय पर करना होता था .............................अब कभी भी बनाओ .................और शाम को ऑफिस से लौटने का समय तो काटे नहीं कटता था ................(खाना बनाने का तो आज भी मन नहीं करता ).........पहले पैसों के हिसाब-किताब कि कोई चिंता नहीं होती थी ...............सो मालूम भी नहीं था-----और आता भी नहीं था ..............सब धीरे-धीरे सीखना पड़ा ................जल्दी ही बच्चों के भविष्य कि चिंता हुई और कमाई की खातिर घर से पहली बार काम करने बाहर निकली ................बच्चों के लिए सब-कुछ भुला दिया ..........अब बच्चों का ग्रेजुएशन पूरा हो चुका है ....................आगे पढाई करना है ,पर दोनों समय और परिस्थितियों से जूझकर बड़े हुए हैं, इसलिए आगे पढ़ने का अभी टाल दिया है, (जानती है माँ ).............काम की तलाश में लगे रहते हैं ..............माँ की ज्यादा से ज्यादा मदद करना चाहते हैं, ...................माँ को  उन पर गर्व होता है, अब बच्चों के खुश रहने से खुशी होती है ...

.............आगे पता नहीं जिंदगी कहाँ ले जाएगी ..................पर साथ में तीनों खुश है ...............माँ .चाहती है ---दोनों कों वो सब मिले जो वो चाहते हैं ................बस कभी-कभी डर लगता है कि हमेशा अकेले निर्णय लेना पड़ा......... (हालांकि परिवार ने हमेशा साथ दिया पर अंतिम निर्णय तो उसका ही रहता रहा ).............सलाह करने के लिए "वो" साथ नहीं है ...................ये भी लगते रहता है, कि वो होते तो शायद और बेहतर होता !...... .............. .............. ........ .......

4 comments:

Shekhar Kumawat said...

nice

shekhar kumawat

http://kavyawani.blogspot.com/

Smart Indian said...

एक जीवन में कितने अनुभव, कितनी यादें....बहुत अच्छा लिखा है.

Udan Tashtari said...

सब नियति का खेल है. आपने बहुत हिम्मत से सब परिस्थितियों को झेला. अब तो बच्चे बड़े हो गये हैं. सब बढ़िया ही होगा. अनेक शुभकामनाएँ.

Unknown said...

hum hai na ... :)