Sunday, December 13, 2015

मधुर याद







रात के उन लम्हों की बात बताउँ

जिनमें मौन ही मैं सब बोल गई...



एक-एक उलझन जो मन में थी 

तेरे आगे सुलझाकर कर खोल गई...



झंकॄत हो मन .गया थिरक-थिरक

सिहरन हुई और देह भी डोल गई...



साँसों की सरगम पे ताल मिली जब

मधुयामिनी मन में मधुरस घोल गई..


-अर्चना

3 comments:

राजीव कुमार झा said...

बहुत सुंदर और भावपूर्ण.

जसवंत लोधी said...

भावुक पंक्तियाँ ' भाव बिभोर करने बाली है । धन्यवाद

कविता रावत said...

बहुत सुन्दर ...