न गज़ल के बारे में कुछ पता है मुझे, न ही किसी कविता के, और न किसी कहानी या लेख को मै जानती, बस जब भी और जो भी दिल मे आता है, लिख देती हूँ "मेरे मन की"
Wednesday, July 21, 2010
कोई तो बताओ !!!
(आज एक पुरानी पोस्ट )------
जबसे लिखने का बीडा उठाया है,
थोड़ा सा भी चैन नहीं पाया है ।
विचारों के तंतु मेरा सर फाड़ते हैं,
और विषय मेरे चारों ओर दहाड़ते हैं।
शब्दों के भंवर में मैं घुमे जा रही हूँ ,
न तो शुरुआत का ,न ही अंत का कोई छोर पा रही हूँ ।
गाँधीजी के तीन बन्दर नजर आ रहे हैं ,
और आज के समयानुसार अपने अर्थ बता रहे हैं।
१- किसी और की मत सुन -कान बंद कर ,
२-जो कुछ हो रहा है होने दे -आँखे बंद कर ,
३-सब कुछ सहता जा -चुप रह ।
भला ये भी कोई अर्थ हुआ ?
एक तरफ़ खाई है तो दूसरी तरफ़ कुआं ।
अब किससे कहें ?,और क्या-क्या सहें ,
समझ नही पाती कहाँ डूबे और कहाँ बहें ?
आओ जरा इन विषयों पर नजर दौडाएं,
फ़िर अपनी बात को आगे बढायें --
अफसरों की कमाई / घोटालों की सफाई ,
चौराहों की शराब दुकाने / नशेडियों के अड्डे -ठिकाने ,
स्कूल -कॉलेजों की बढ़ती फीस / मध्यमवर्गीय लोगो की टीस,
काम करते बच्चे / पुल या मकान कच्चे,
विजेन्दर के मुक्कों की ताकत /लिम्बाराम की माली हालत ,
वॄद्धाश्रम में रहते दादा-दादी /नातीयों को पालते नाना-नानी ,
टूटते सपने /बिछड़ते अपने ,
इंसानियत का खून /हैवानियत का जूनून ,
सुबह की टेम्परेरी जोगींग या नेट पर की जाने वाली ब्लोगींग ।
किस पर लीखूं ,किस पर न ली्खूं ?
अब तक तो चुप थी, क्या अब भी सीखूं ?????????????????
sabkuchh bayan karti rachna
ReplyDeleteaaj ke haalaton ka sahi varnan
... बेहद प्रभावशाली
ReplyDeleteबहुत ही जोरदार पोस्ट है!
ReplyDelete--
सभी मुद्दे मुँह बाये खड़े हैं!
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कभी इन पर भी कलम अवश्य चलेगी!
bahut acchikavita he
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