नववर्ष के पहले दिन लिखना नहीं चाहती थी इस पोस्ट को ----मगर फ़िर सोचा कुछ अच्छा करने लिए की गई गलतियों से सबक लेना जरूरी है बस इसीलिए-------
ये घटना मेरी यादों की लिस्ट मे से नहीं है , मगर अब एक कडवी याद जरूर बन गई है------
२५ मार्च ,बुधवार ।
इंदौर के तमाम बडे अखबारों के मुखप्रष्ठ की एक खबर ------तिलकनगर में जैन दंपत्ती की हत्या-----इकलौते (शादीशुदा) बेटे ने अपने बचपन के साथी को अपने माता-पिता की हत्या की सुपारी दी।------ आठ लाख रुपए दिये------स्वयं के मकान मे लाकर हत्यारे को पहले से छुपाया ----- पिता उद्योगविभाग में कार्यरत , इसी माह की ३१ तारीख को रिटायर होने वाले थे------३१ मार्च को ही पिता का ६०वाँजन्म-दिन------माता-पिता द्वारा जमीन दान देने से नाराज------कारोबार पिता ने शुरू करवाया।------ शराब की आदत ------आदि-आदि!!!!!!! ------(१२ घंटे के अंदर सभी को गिरफ़्तार कर लिया गया।)
अच्छे-अच्छों को विचलित कर देने वाली खबर !!!!
हर कोई सोचने को विवश कि कहाँ गलती हुई ??? और किससे ???
और इससे मिला क्या ??? और किसको ???
आठ लाख रूपए------
------शायद आठ परिवार की सालभर की रोजी-रोटी ! ! !
------ कई परिवारों के लिए तो एक सपना ! ! !
------एक किडनी के मरीज का इलाज ! ! !
------कई बच्चों की स्कूल- फ़ीस ! ! !
------किसी के लिए मुआवजा ! ! !
-------एक छोटा-सा घर ! ! !
------३या४ नैनो ! ! !(किसी के लिए )
---और अंत मे इस गाने की पंक्तियाँ------कोई लाख करे चतुराई रे करम का लेख मिटे ना रे भाई-----(कवि तथा गायक प्रदीप जी ) -----
न गज़ल के बारे में कुछ पता है मुझे, न ही किसी कविता के, और न किसी कहानी या लेख को मै जानती, बस जब भी और जो भी दिल मे आता है, लिख देती हूँ "मेरे मन की"
Friday, March 27, 2009
Tuesday, March 24, 2009
यादें ----कुछ खट्टी----कुछ मीठी
उन्मुक्त जी ने अपने चिठ्ठे मे "जीना इसी का नाम है" नामक पोस्ट मे " रिश्तों "पर आधारित श्रंखला का जिक्र किया है -----हमारी जिन्दगी मे कई तरह के रिश्ते बनते -बिगड्ते रहते हैं ------ये रिश्ते खून के भी हो सकते है, भावनाओं के भी ,जाने-पहचाने भी और अनजाने भी ----ये वे रिश्ते है जिन्हे भुलाए नही भूल पाती मैं---------ऐसे ही रिश्तों की कहानी कडी दर कडी आपके सामने रखना चाहती हूँ----- ज्यादा लिखना मै जानती नहीं इसलिए भाषा बोलचाल वाली ही हो सकती है , यादों को एक क्रम में जमाना बहुत मुश्किल है इसलिए घटनाएँ जिस क्रम में याद आती जाएंगी ,लिखती जाउंगी ।-----------
आज पहली कडी--------
स्पोर्ट्स टीचर होने के कारण मेरा ज्यादातर समय खेल के मैदान में ही बीतता है । पिछले साल की बात है --- दो दिनों तक एक ९ - १० साल का एक बच्चा साफ़ - सुथरा , सफ़ेद कुर्ता-पजामा पहन कर , सिर में तेल लगाकर , अच्छे से बाल बनाकर मैदान के एक कोने मे खडा होकर मेरे स्कूल के हमउम्र बच्चों को फ़ुटबाल खेलते हुए देखा करता था । मेरा ध्यान पूरा समय उस बच्चे की हरकतों पर रहता था । बच्चों के बाल को जोर से मारने पर वह जोर से ताली बजाता , और चूक जाने पर उतनी ही जोर से हँस देता । उस दिन कुछ ऐसा हुआ----- मैदान मे ६ठी कक्षा का गेम्स पिरियड चल रहा था , लडकियों को रस्सी खेलने के लिए देकर मै लडकों को फ़ुटबाल खिला रही थी । वह बच्चा रोज की तरह आकर अपनी जगह पर खडा हो गया था , मैने उसे एक नजर देख लिया था , तभी मुझे पीछे से धीमी-धीमी सी आवाज सुनाई दी -----
---मेडम जीईईई-----------मेडमजीईई
---मैने मुडकर देखा ----वह बच्चा मेरे बहुत पास आ गया था । मैने पूछा----क्या है ?--------
---ये स्कूल कौनसी कक्षा तक है ?
---मुझे उसकी उत्सुकता देखकर हैरानी हुई ,मैने कहा-----ट्वेल्थ ( अंग्रेजी शब्द जबान पर जो चढ चुके है ), फ़िर कुछ संभलकर कहा----१२वीं ,---मैने पूछा क्यों ?
----अगर मै इसमे पढना चाहूँ तो मुझे यहाँ पढाएंगे ?
----यह सुनकर मेरी जो हालत हुई मै बयाँ नहीं कर पा रही हूँ ---------मुझे एक ही समय में जहाँ खुशी हो रही थी कि वो बच्चा कितनी उम्मीद से एक बडे अंग्रेजी स्कूल में पढना चाहता था, वही रोना भी आ गया था कि मेरे पास उसके इस प्रश्न का कोई उत्तर नही था । इस हालात को टालने के लिए मैने उससे पूछा था------- आप स्कूल जाते हो ?-------खुश होकर बोला------- हाँ !!!!!------- कौनसी कक्षा में पढते हो ? ------------
--------तीसरी--------मैने फ़िर पूछा कहाँ रहते हो ?--------उसने सडक के किनारे बने एक तम्बू की ओर इशारा करके बताया -----वहाँ ।-------मैने चौंकते हुए तम्बू की ओर देखा -----वो हर शहर मे सडकों के किनारे लगने वाला आयुर्वेदिक जडी-बूटीयों की दवाई बेचने वाला एक तम्बू था ।--------अब मुझे और उत्सुकता जागी------ पूछा ----और कौन रहता है आपके साथ ?-----------माँ , पिताजी और छोटा भाई।
------------कहाँ से आए हो ?(मेरा अगला सवाल था )-------- अपने गाँव से---- ( वह शहर व राज्य को शायद समझ नही पाया था ) --------यहाँ कैसे आये ?---------पिताजी अलग -अलग गाँव मे जाकर दवाई बेचते हैं , यहाँ भी दवाई बेचने के लिए आए हैं ।--------- ऐसे घुमते रहते हो तो स्कूल कब जाते हो ?------- जब हमारे गाँव में वापस जाते हैं तो मै फ़िर स्कूल जाता हूँ ।-------और बाकी समय ?------मैं अपनी किताबें साथ मे लेकर आता हूँ ।----------------( अब मेरे आश्चर्य का ठीकाना नही रहा ) तुम्हे यहाँ कौन पढाता है ?
------पिताजी ।--------तुम्हे पहाडे आते है ?-------हाँ १५ तक ।------मैने उससे कहा अगर वो अपनी कोपी लेकर आएगा तो मै उसे यही पर पढा दूँगी ।------बहुत खुश हो गया था वो ----- तभी बाल उसके पास आ गई ------उसने धीरे से उसे मार दिया , और मुस्कराकर मेरी ओर देखा ,फ़िर पास आकर पूछा-----मैं एक बार खेल सकता हूँ ?------- मैने तुरंत हाँ कर दी ।(शायद ये मेरे बस मे था ,मुझे खुशी हुई कि मै उसकी एक इच्छा पूरी कर पा रही थी ) मैने सभी बच्चों को फ़िर से इकठ्ठा किया और एक टीम में उसे रख दिया -----उसने अपनी टूटी-सी चप्पल उतार दी और हँसते हुए कहा----बहुत जोर से मारता हूँ मै ।----ये बच्चे तो पकड ही नही पाएंगे ।----- और सच में वह बहुत अच्छा खेला । बच्चे भी उसके साथ इस तरह से मिलकर खेले कि लगा ही नही कि व अपने स्कूल का बच्चा नहीं था । तभी घंटी बज गई । और स्कूल की छुट्टी हो गई , मैने उसे अगले दिन कोपी लाने का याद दिलाया । उसने हँसकर हाँ कहा------ उस दिन उस बच्चे की आँखों मे जो चमक देखी थी आज भी मुझे याद है ------
दूसरे दिन रविवार था । सोमवार को स्कूल के मैदान में जाते ही मेरी नजरें उसे ढूँढ रही थी -------वह बच्चा मुझे कहीं नजर नहीं आ रहा था ------ थोडा आगे आकर तम्बू वाली जगह पर देखा -----जगह खाली थी , वे जा चुके थे । बहुत उदास -सी रही मै उस दिन -------उस एक पिरियड के ३० मिनिट के छोटे से समय मे उसने मुझसे एक रिश्ता बना लिया था जिसका कोई नाम नही हो सकता । आज भी मैदान में जाते ही बरबस सबसे पहले उसकी याद आती है ---------मैं रोज ईश्वर से उसके लिए दुआ करती हूँ------- वो जहाँ भी हो ईश्वर उसकी मदद जरूर करे !!!! और उसे एक अच्छा इंसान बनाए !!!!!!
एक गीत का मुखडा याद आ रहा है-----हर खुशी हो वहाँ तू जहाँ भी रहे ,जिन्दगी हो वहाँ तू जहाँ भी रहे-----( लता मंगेशकर )(प्लेयर लगाना अभी सीखना है--असुविधा के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ )
२७ मार्च२००९ , गुडी पडवा -----
पुनःश्च :---इस पोस्ट को लिखने के समय तक मुझे किसी की लिन्क देना नही आता था ।आज इसमे सुधार करके लिन्क देना रचना से सीखा है। नववर्ष आपके जीवन मे भी कुछ नया करने (सकारात्मक) का जोश भरे---- ईश्वर से इसी प्रार्थना के साथ आप सभी को नववर्ष की शुभकामनाऐं !!!!!
आज पहली कडी--------
स्पोर्ट्स टीचर होने के कारण मेरा ज्यादातर समय खेल के मैदान में ही बीतता है । पिछले साल की बात है --- दो दिनों तक एक ९ - १० साल का एक बच्चा साफ़ - सुथरा , सफ़ेद कुर्ता-पजामा पहन कर , सिर में तेल लगाकर , अच्छे से बाल बनाकर मैदान के एक कोने मे खडा होकर मेरे स्कूल के हमउम्र बच्चों को फ़ुटबाल खेलते हुए देखा करता था । मेरा ध्यान पूरा समय उस बच्चे की हरकतों पर रहता था । बच्चों के बाल को जोर से मारने पर वह जोर से ताली बजाता , और चूक जाने पर उतनी ही जोर से हँस देता । उस दिन कुछ ऐसा हुआ----- मैदान मे ६ठी कक्षा का गेम्स पिरियड चल रहा था , लडकियों को रस्सी खेलने के लिए देकर मै लडकों को फ़ुटबाल खिला रही थी । वह बच्चा रोज की तरह आकर अपनी जगह पर खडा हो गया था , मैने उसे एक नजर देख लिया था , तभी मुझे पीछे से धीमी-धीमी सी आवाज सुनाई दी -----
---मेडम जीईईई-----------मेडमजीईई
---मैने मुडकर देखा ----वह बच्चा मेरे बहुत पास आ गया था । मैने पूछा----क्या है ?--------
---ये स्कूल कौनसी कक्षा तक है ?
---मुझे उसकी उत्सुकता देखकर हैरानी हुई ,मैने कहा-----ट्वेल्थ ( अंग्रेजी शब्द जबान पर जो चढ चुके है ), फ़िर कुछ संभलकर कहा----१२वीं ,---मैने पूछा क्यों ?
----अगर मै इसमे पढना चाहूँ तो मुझे यहाँ पढाएंगे ?
----यह सुनकर मेरी जो हालत हुई मै बयाँ नहीं कर पा रही हूँ ---------मुझे एक ही समय में जहाँ खुशी हो रही थी कि वो बच्चा कितनी उम्मीद से एक बडे अंग्रेजी स्कूल में पढना चाहता था, वही रोना भी आ गया था कि मेरे पास उसके इस प्रश्न का कोई उत्तर नही था । इस हालात को टालने के लिए मैने उससे पूछा था------- आप स्कूल जाते हो ?-------खुश होकर बोला------- हाँ !!!!!------- कौनसी कक्षा में पढते हो ? ------------
--------तीसरी--------मैने फ़िर पूछा कहाँ रहते हो ?--------उसने सडक के किनारे बने एक तम्बू की ओर इशारा करके बताया -----वहाँ ।-------मैने चौंकते हुए तम्बू की ओर देखा -----वो हर शहर मे सडकों के किनारे लगने वाला आयुर्वेदिक जडी-बूटीयों की दवाई बेचने वाला एक तम्बू था ।--------अब मुझे और उत्सुकता जागी------ पूछा ----और कौन रहता है आपके साथ ?-----------माँ , पिताजी और छोटा भाई।
------------कहाँ से आए हो ?(मेरा अगला सवाल था )-------- अपने गाँव से---- ( वह शहर व राज्य को शायद समझ नही पाया था ) --------यहाँ कैसे आये ?---------पिताजी अलग -अलग गाँव मे जाकर दवाई बेचते हैं , यहाँ भी दवाई बेचने के लिए आए हैं ।--------- ऐसे घुमते रहते हो तो स्कूल कब जाते हो ?------- जब हमारे गाँव में वापस जाते हैं तो मै फ़िर स्कूल जाता हूँ ।-------और बाकी समय ?------मैं अपनी किताबें साथ मे लेकर आता हूँ ।----------------( अब मेरे आश्चर्य का ठीकाना नही रहा ) तुम्हे यहाँ कौन पढाता है ?
------पिताजी ।--------तुम्हे पहाडे आते है ?-------हाँ १५ तक ।------मैने उससे कहा अगर वो अपनी कोपी लेकर आएगा तो मै उसे यही पर पढा दूँगी ।------बहुत खुश हो गया था वो ----- तभी बाल उसके पास आ गई ------उसने धीरे से उसे मार दिया , और मुस्कराकर मेरी ओर देखा ,फ़िर पास आकर पूछा-----मैं एक बार खेल सकता हूँ ?------- मैने तुरंत हाँ कर दी ।(शायद ये मेरे बस मे था ,मुझे खुशी हुई कि मै उसकी एक इच्छा पूरी कर पा रही थी ) मैने सभी बच्चों को फ़िर से इकठ्ठा किया और एक टीम में उसे रख दिया -----उसने अपनी टूटी-सी चप्पल उतार दी और हँसते हुए कहा----बहुत जोर से मारता हूँ मै ।----ये बच्चे तो पकड ही नही पाएंगे ।----- और सच में वह बहुत अच्छा खेला । बच्चे भी उसके साथ इस तरह से मिलकर खेले कि लगा ही नही कि व अपने स्कूल का बच्चा नहीं था । तभी घंटी बज गई । और स्कूल की छुट्टी हो गई , मैने उसे अगले दिन कोपी लाने का याद दिलाया । उसने हँसकर हाँ कहा------ उस दिन उस बच्चे की आँखों मे जो चमक देखी थी आज भी मुझे याद है ------
दूसरे दिन रविवार था । सोमवार को स्कूल के मैदान में जाते ही मेरी नजरें उसे ढूँढ रही थी -------वह बच्चा मुझे कहीं नजर नहीं आ रहा था ------ थोडा आगे आकर तम्बू वाली जगह पर देखा -----जगह खाली थी , वे जा चुके थे । बहुत उदास -सी रही मै उस दिन -------उस एक पिरियड के ३० मिनिट के छोटे से समय मे उसने मुझसे एक रिश्ता बना लिया था जिसका कोई नाम नही हो सकता । आज भी मैदान में जाते ही बरबस सबसे पहले उसकी याद आती है ---------मैं रोज ईश्वर से उसके लिए दुआ करती हूँ------- वो जहाँ भी हो ईश्वर उसकी मदद जरूर करे !!!! और उसे एक अच्छा इंसान बनाए !!!!!!
एक गीत का मुखडा याद आ रहा है-----हर खुशी हो वहाँ तू जहाँ भी रहे ,जिन्दगी हो वहाँ तू जहाँ भी रहे-----( लता मंगेशकर )(प्लेयर लगाना अभी सीखना है--असुविधा के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ )
२७ मार्च२००९ , गुडी पडवा -----
पुनःश्च :---इस पोस्ट को लिखने के समय तक मुझे किसी की लिन्क देना नही आता था ।आज इसमे सुधार करके लिन्क देना रचना से सीखा है। नववर्ष आपके जीवन मे भी कुछ नया करने (सकारात्मक) का जोश भरे---- ईश्वर से इसी प्रार्थना के साथ आप सभी को नववर्ष की शुभकामनाऐं !!!!!
Monday, March 23, 2009
टाईम-पास वार्तालाप
कुछ समय पहले एक फ़िल्म "वक्त "(नई )देखी थी,उसमें एक किरदार था जो बहुत सवाल करते रह्ता है,ऐसे किरदारों से हम जिन्दगी में कई बार टकराते हैं -----
आज मैं एक ऐसे टाईम-पास वार्तालाप की चर्चा करना चाहती हूँ, जिसका सामना मैंने करीब साल भर तक किया है -------आपको भी कई बार इनका सामना करना पडता होगा,जिसमे पूछने वाला ही सब कुछ बताते रहता है ------
---अरे!!!! आप!!!! नमस्ते ।
---नमस्ते !
---और ?,कैसे हैं?
---बढिया !
---कहाँ हैं आजकल ?
---यहीं !
---कोलंबिया में ही ?
---हाँ !
---अच्छा-अच्छा ,और सब अच्छे हैं ?
---हाँ ,एकदम बढिया !
---बच्चे कैसे हैं ?
---बढिया !
---कहाँ है आजकल ?---बाहर ही पढ़ रहे हैं ?
---हाँ !
---बेटा बडा़ है ना आपका ?
---हाँ !
---नोएडा में पढ रहा है ना ?
---हाँ !
---इंजिनियरिंग कर रहा है ना ?
---हाँ !
---आखरी साल होगा ना उसका ?
---हाँ !
---चलो बढ़िया ।--- और एक बेटी भी थी ना ?
---हाँ !
---वो कहाँ है ?
---पूना !
---क्या कर रही है ?
---बी.बी.ए.!
---पूना से ?
---हाँ !
---क्यों ?
---ऐसे ही !
---बी.बी.ए. तो इंदौर मे ही हो जाता है ना?
---हाँ !
---पुणे युनिवर्सिटी लगती होगी ना वहाँ ?
---हाँ !
---चलो बढिया ,ऐम.पी. से तो बढिया होगा ?
---हाँ ,देखो!!!
---तो फ़िर आप यहाँ अकेले ?
---नही, मेरी भतिजी है साथ !...
---यहीं एड्मिशन लिया है?
---हाँ !
---कौनसी क्लास में?
---इलेवन्थ !
---चलो बढिया,ये आपकी भतिजी है ?
---हाँ !
---क्या नाम है ?
---प्रान्जली !
---क्या सब्जेक्ट लिया है ?
---मेथ्स !
---अच्छा!! ,फ़िर कोचिंग-वोचिंग ?
---हाँ ,लगाई है !
---कहाँ ?
---पलासिया !
---अरेरे,तो वो तो दूर पडता होगा ?
---हाँ !
---फ़िर गाडी ?
---नहीं मै छोडती हूँ !
---अरे तो आपको तो चार राउंड हो जाते होंगे ?
---हाँ !
---चलो फ़िर भी अच्छा है ,आपको साथ तो है !!!
---हाँ!
---अपका खाना तो स्कूल में ही होता होगा ?
---हाँ !
---फ़िर इसका ?,ये भी वहीं खाती है ?
---नही ,इसका टाईम अलग है !
---फ़िर ?
---मेरी मम्मी भी है साथ में ।इसी के लिए आई है !
---चलो बढिया ,फ़िर तो आपको मदद मिल जाती होगी ?
---हाँ !
--- दिन में तो वो अकेले रहती होंगी ?
---हाँ !
---फ़िर क्या करती है ?दिन भर बोर हो जाती होंगी ?
---हाँ !
---उनको गाँव की याद आती होगी ,जाती होंगी कभी-कभी ?
---हाँ ,जाती रहती है !
---अकेले चली जाती है ?
---हाँ !
---इसकी मम्मी ? खरगोन में रहती है ?-------(*। *)--------
---और इस तरह अनवरत प्रश्नों का सिलसिला चलता रहता है -----
---
---कहिए--- आपको भी तो किसी ऐसे परिचित की याद नहीं आ रही है ?
आज मैं एक ऐसे टाईम-पास वार्तालाप की चर्चा करना चाहती हूँ, जिसका सामना मैंने करीब साल भर तक किया है -------आपको भी कई बार इनका सामना करना पडता होगा,जिसमे पूछने वाला ही सब कुछ बताते रहता है ------
---अरे!!!! आप!!!! नमस्ते ।
---नमस्ते !
---और ?,कैसे हैं?
---बढिया !
---कहाँ हैं आजकल ?
---यहीं !
---कोलंबिया में ही ?
---हाँ !
---अच्छा-अच्छा ,और सब अच्छे हैं ?
---हाँ ,एकदम बढिया !
---बच्चे कैसे हैं ?
---बढिया !
---कहाँ है आजकल ?---बाहर ही पढ़ रहे हैं ?
---हाँ !
---बेटा बडा़ है ना आपका ?
---हाँ !
---नोएडा में पढ रहा है ना ?
---हाँ !
---इंजिनियरिंग कर रहा है ना ?
---हाँ !
---आखरी साल होगा ना उसका ?
---हाँ !
---चलो बढ़िया ।--- और एक बेटी भी थी ना ?
---हाँ !
---वो कहाँ है ?
---पूना !
---क्या कर रही है ?
---बी.बी.ए.!
---पूना से ?
---हाँ !
---क्यों ?
---ऐसे ही !
---बी.बी.ए. तो इंदौर मे ही हो जाता है ना?
---हाँ !
---पुणे युनिवर्सिटी लगती होगी ना वहाँ ?
---हाँ !
---चलो बढिया ,ऐम.पी. से तो बढिया होगा ?
---हाँ ,देखो!!!
---तो फ़िर आप यहाँ अकेले ?
---नही, मेरी भतिजी है साथ !...
---यहीं एड्मिशन लिया है?
---हाँ !
---कौनसी क्लास में?
---इलेवन्थ !
---चलो बढिया,ये आपकी भतिजी है ?
---हाँ !
---क्या नाम है ?
---प्रान्जली !
---क्या सब्जेक्ट लिया है ?
---मेथ्स !
---अच्छा!! ,फ़िर कोचिंग-वोचिंग ?
---हाँ ,लगाई है !
---कहाँ ?
---पलासिया !
---अरेरे,तो वो तो दूर पडता होगा ?
---हाँ !
---फ़िर गाडी ?
---नहीं मै छोडती हूँ !
---अरे तो आपको तो चार राउंड हो जाते होंगे ?
---हाँ !
---चलो फ़िर भी अच्छा है ,आपको साथ तो है !!!
---हाँ!
---अपका खाना तो स्कूल में ही होता होगा ?
---हाँ !
---फ़िर इसका ?,ये भी वहीं खाती है ?
---नही ,इसका टाईम अलग है !
---फ़िर ?
---मेरी मम्मी भी है साथ में ।इसी के लिए आई है !
---चलो बढिया ,फ़िर तो आपको मदद मिल जाती होगी ?
---हाँ !
--- दिन में तो वो अकेले रहती होंगी ?
---हाँ !
---फ़िर क्या करती है ?दिन भर बोर हो जाती होंगी ?
---हाँ !
---उनको गाँव की याद आती होगी ,जाती होंगी कभी-कभी ?
---हाँ ,जाती रहती है !
---अकेले चली जाती है ?
---हाँ !
---इसकी मम्मी ? खरगोन में रहती है ?-------(*। *)--------
---और इस तरह अनवरत प्रश्नों का सिलसिला चलता रहता है -----
---
---कहिए--- आपको भी तो किसी ऐसे परिचित की याद नहीं आ रही है ?
Sunday, March 15, 2009
एक आशा - एक विश्वास
आजकल हर बच्चा पढने के लिए घर से दूर अकेला रहता है , मेरे बच्चे भी बाहर रह कर पढाई कर रहे हैं , आपमें से भी बहुतों के होंगे ।जब बच्चे जाते हैं तो हम उन्हे सैकडों हिदायते देते हैं , और माँ के लिए तो उसके बच्चे कभी बडे ही नहीं होते हैं । सबकी माँ को एक जैसी ही चिन्ता होती होगी --जैसी मुझे होती है ------
फ़िर एक मौका ,जैसे ऊपरी मंजिल पर ,
छोटा -सा झरोंखा ,
कोई चूक होने ना पाए ,
डोर हाथ से छूट ना जाए ,
पक्के नियमों पर चलना , जैसे--
सुबह उठना ,रात को सोना ,
रोज नहाना , शीश झुकाना ,
समय पर खाना ,
कार्य की योजना बनाना ,
समय पर कार्य खतम करना ,
घूमना , और फ़िर---
चैन से आराम करना ।
यदि इन नियमों को पालोगे ,
तो तुम्हारे नए " डेस्टिनेशन " को पा लोगे ।
मेरा आशिर्वाद तुम्हारे साथ है----
देखो मंजिल तुम्हारे कितने पास है ,
ईमानदारी से मेहनत करना----
और उम्मीदों पर खरा उतरना ,
फ़िर देखना मंजिल तुम्हारे कदम चूमेगी ,
और तुम्हारी माँ खुशी से झूमेगी ।
फ़िर एक मौका ,जैसे ऊपरी मंजिल पर ,
छोटा -सा झरोंखा ,
कोई चूक होने ना पाए ,
डोर हाथ से छूट ना जाए ,
पक्के नियमों पर चलना , जैसे--
सुबह उठना ,रात को सोना ,
रोज नहाना , शीश झुकाना ,
समय पर खाना ,
कार्य की योजना बनाना ,
समय पर कार्य खतम करना ,
घूमना , और फ़िर---
चैन से आराम करना ।
यदि इन नियमों को पालोगे ,
तो तुम्हारे नए " डेस्टिनेशन " को पा लोगे ।
मेरा आशिर्वाद तुम्हारे साथ है----
देखो मंजिल तुम्हारे कितने पास है ,
ईमानदारी से मेहनत करना----
और उम्मीदों पर खरा उतरना ,
फ़िर देखना मंजिल तुम्हारे कदम चूमेगी ,
और तुम्हारी माँ खुशी से झूमेगी ।
Friday, March 13, 2009
आओ थोडा सोचें---
कभी-कभी बच्चे ऐसी सीख दे जाते है कि हम सोचने पर मजबूर हो जाते है कि हम ऐसे क्यों नही है? क्यो हमारी सोच बडे होने पर संकीर्ण होती जाती है। अपनी गलती को स्वीकार करने मे कितनी देर लगा देते है हम ।
मै एक स्कूल में काम करती हूँ , इसलिए बच्चों से ही मुझे बहुत कुछ सीखने को मिलता है-------
कई बार बच्चे स्कूल में झगडते रहते है ----मेडम इसने "ऐसा " कहा----नो मेडम, इसने पहले कहा , किसी से भी पूछ लिजिए ।----और हम उनके झगडे को , सुलझाने को पूछते रहते है----क्यो आपने "ऐसा" कहा?----नो मेडम----फ़िर दूसरे से भी वही सवाल---- क्यों आपने?---नो मेडम!!!!! तो फ़िर झगडा क्यों?
और इसके बाद उन्हे वही कहानी सुना देते है----कि एक बार एक संत किसी पेड के नीचे बैठे थे ।एक आदमी आकर उन्हे गंदी-गंदी गाली देता है फ़िर भी वे शांत बैठे रहते है , थोड़ी देर बाद वो आदमी थक कर चला जाता है । उसके जाने के बाद सब उस संत से पूछते है----आपको वो इतनी गालीयाँ दे रहा था ,आपने उससे कुछ कहा क्यों नही? वे संत जबाब देते है---- " मैने गालीयाँ उससे ली ही नहीं , वो तो उसके पास ही रह गई।"
( हम बडे ये बात क्यों नहीं समझ पाते कि किसी के कुछ कह देने से कोई फ़र्क नही पडता अगर हम सही हैं तो हमेशा सही ही रहेंगे )
पर इस बार ऐसा नहीं हुआ था ५ वीं कक्षा के कुछ बच्चों की शिकायत एक बच्चे के बारे मे थी ----
---मेडम, इसने गंदी बात बोली।
---क्यों ?
---नो मेडम-
--- फ़िर ये सब क्यों कह रहे है?---
---मेडम ये हमारा झूठा नाम फ़ंसा रहे है--- किसी से भी पूछ लिजिए----
---वो क्यों? (तभी बाकी बच्चे बोल पडे मेडम ये क्लास मे भी ऐसे ही बोलता है।और तब तक मै भी जान चुकी थी कि इसी बच्चे की गलती है।)
मैने बच्चे से कहा ठीक है आप जिससे कहेंगे उससे पूछ लेंगे , और पहले बाकी बच्चों से पूछा----चलो कौन इसकी तरफ़ है?----- ( किसी भी बच्चे ने हाथ नही उठाया ) ,
मैने पूछा इसका बेस्ट फ़्रेंड कौन है? सबने एक बच्चे की ओर इशारा किया । मैने उससे पूछा----क्यों आप बताओ?----बच्चा बडी ही मासूमियत से ना मे सिर हिलाकर बोला----कभी-कभी तो गंदी बात बोलता है ये मेम ।
अब मैने उस बच्चे की ओर देखा और कहा----आप ही किसी की ओर इशारा कर दो जिस पर आप को भरोसा हो कि वो आपकी तरफ़ बोलेगा । बच्चे ने नजरें झुका ली---बोला हम बोलते है ।
- --तो??? अछ्छी बात है ???
---नो मेम-----सॉरी -----
इससे क्या होगा???,सजा तो आपको लेना पडेगी । कुछ सोच कर मैने सजा सुनाई----आप आज खेलोगे नहीं ,मैदान से बाहर ही खडे रहोगे । ठीक है??? , उसने हाँ मे सिर हिलाया , , इतनी आसानी से सजा मान लेने पर मैने आगे कहा----और सुनो अगले हफ़्ते इसी पिरियड मे अगर एक भी बच्चा तुम्हारी तरफ़ हो गया तो तुम्हे खेलने मिलेगा , और यदि एक भी बच्चे ने कहा- कि आपने फ़िर से गंदी बात बोली है तो आप बाहर ही खडे रहोगे ठीक है??? बच्चे ने फ़िर हाँ मे सिर हिलाया ।
मैने सभी बच्चों को हिदायत दी कि सब सच ही बताएंगे मुझे। मै इस बात को भूल ही गई थी ।अगली बार जब उस क्लास का गेम्स पिरियड आया बच्चे मेरे पास आते ही बोले मेडम इस पूरे हफ़्ते मे इसने किसी को भी बुरा नही बोला है , और अगर गलती से बोला भी है तो सॉरी कहा है ।
मै सुनकर हैरान रह गई , एक छोटे से बच्चे ने , जो कक्षा मे औसत दर्जे का कहलाता था , अपनी इच्छाशक्ति के बल पर कम समय मे ही खुद पर नियंत्रण करना सीख लिया था । अपनी एक गलती को आदत बनने से रोक दिया था उसने । क्या हम , बडे होकर भी , अपनी बुरी आदतों---जैसे सिगरेट , बीडी पीना , नशा करना , झूठ बोलना , अपशब्द बोलना , बेईमानी करना ( अनगिनत हो सकती है ---अपने मे ढूँढिए ) आदी -आदी छोड नही सकते ???
मै एक स्कूल में काम करती हूँ , इसलिए बच्चों से ही मुझे बहुत कुछ सीखने को मिलता है-------
कई बार बच्चे स्कूल में झगडते रहते है ----मेडम इसने "ऐसा " कहा----नो मेडम, इसने पहले कहा , किसी से भी पूछ लिजिए ।----और हम उनके झगडे को , सुलझाने को पूछते रहते है----क्यो आपने "ऐसा" कहा?----नो मेडम----फ़िर दूसरे से भी वही सवाल---- क्यों आपने?---नो मेडम!!!!! तो फ़िर झगडा क्यों?
और इसके बाद उन्हे वही कहानी सुना देते है----कि एक बार एक संत किसी पेड के नीचे बैठे थे ।एक आदमी आकर उन्हे गंदी-गंदी गाली देता है फ़िर भी वे शांत बैठे रहते है , थोड़ी देर बाद वो आदमी थक कर चला जाता है । उसके जाने के बाद सब उस संत से पूछते है----आपको वो इतनी गालीयाँ दे रहा था ,आपने उससे कुछ कहा क्यों नही? वे संत जबाब देते है---- " मैने गालीयाँ उससे ली ही नहीं , वो तो उसके पास ही रह गई।"
( हम बडे ये बात क्यों नहीं समझ पाते कि किसी के कुछ कह देने से कोई फ़र्क नही पडता अगर हम सही हैं तो हमेशा सही ही रहेंगे )
पर इस बार ऐसा नहीं हुआ था ५ वीं कक्षा के कुछ बच्चों की शिकायत एक बच्चे के बारे मे थी ----
---मेडम, इसने गंदी बात बोली।
---क्यों ?
---नो मेडम-
--- फ़िर ये सब क्यों कह रहे है?---
---मेडम ये हमारा झूठा नाम फ़ंसा रहे है--- किसी से भी पूछ लिजिए----
---वो क्यों? (तभी बाकी बच्चे बोल पडे मेडम ये क्लास मे भी ऐसे ही बोलता है।और तब तक मै भी जान चुकी थी कि इसी बच्चे की गलती है।)
मैने बच्चे से कहा ठीक है आप जिससे कहेंगे उससे पूछ लेंगे , और पहले बाकी बच्चों से पूछा----चलो कौन इसकी तरफ़ है?----- ( किसी भी बच्चे ने हाथ नही उठाया ) ,
मैने पूछा इसका बेस्ट फ़्रेंड कौन है? सबने एक बच्चे की ओर इशारा किया । मैने उससे पूछा----क्यों आप बताओ?----बच्चा बडी ही मासूमियत से ना मे सिर हिलाकर बोला----कभी-कभी तो गंदी बात बोलता है ये मेम ।
अब मैने उस बच्चे की ओर देखा और कहा----आप ही किसी की ओर इशारा कर दो जिस पर आप को भरोसा हो कि वो आपकी तरफ़ बोलेगा । बच्चे ने नजरें झुका ली---बोला हम बोलते है ।
- --तो??? अछ्छी बात है ???
---नो मेम-----सॉरी -----
इससे क्या होगा???,सजा तो आपको लेना पडेगी । कुछ सोच कर मैने सजा सुनाई----आप आज खेलोगे नहीं ,मैदान से बाहर ही खडे रहोगे । ठीक है??? , उसने हाँ मे सिर हिलाया , , इतनी आसानी से सजा मान लेने पर मैने आगे कहा----और सुनो अगले हफ़्ते इसी पिरियड मे अगर एक भी बच्चा तुम्हारी तरफ़ हो गया तो तुम्हे खेलने मिलेगा , और यदि एक भी बच्चे ने कहा- कि आपने फ़िर से गंदी बात बोली है तो आप बाहर ही खडे रहोगे ठीक है??? बच्चे ने फ़िर हाँ मे सिर हिलाया ।
मैने सभी बच्चों को हिदायत दी कि सब सच ही बताएंगे मुझे। मै इस बात को भूल ही गई थी ।अगली बार जब उस क्लास का गेम्स पिरियड आया बच्चे मेरे पास आते ही बोले मेडम इस पूरे हफ़्ते मे इसने किसी को भी बुरा नही बोला है , और अगर गलती से बोला भी है तो सॉरी कहा है ।
मै सुनकर हैरान रह गई , एक छोटे से बच्चे ने , जो कक्षा मे औसत दर्जे का कहलाता था , अपनी इच्छाशक्ति के बल पर कम समय मे ही खुद पर नियंत्रण करना सीख लिया था । अपनी एक गलती को आदत बनने से रोक दिया था उसने । क्या हम , बडे होकर भी , अपनी बुरी आदतों---जैसे सिगरेट , बीडी पीना , नशा करना , झूठ बोलना , अपशब्द बोलना , बेईमानी करना ( अनगिनत हो सकती है ---अपने मे ढूँढिए ) आदी -आदी छोड नही सकते ???
Tuesday, March 10, 2009
जब होली मे रंग उड गये---
बात कोई ३ साल पहले की है । बहुत दिनो से मेरा नागपुर जाना नही हुआ था। मेरी बेटी ने १२वीं की परीक्षा दीथी उस वर्ष । मैने सोचा कि कालेज मे एड्मिशन लेने के पहले एक बार अपनी दादी का आशिर्वाद भी ले लेगीऔर मेरा कुछ आफ़िस का काम (कम्पेन्सेशन का)भी निपटा लूंगी।
खैर प्रोग्राम बनाया और मै और मेरी बेटी होली के एक दिन पहले इंदौर से नागपुर के लिये रात की ९ बजे वालीट्रेन से निकले। पहली बार हम दोनो अकेले सफ़र कर रहे थे। स्टेशन पर आधा घंटा पहले ही पहुँच गये । गाडीप्लेट्फ़ार्म पर ही खडी थी , मगर डिब्बे मे लाईट नही थी, गाडी छूटने मे समय था , मैने कहा -अभी यही बेन्चपर बैठ जाते है ,लाईट चालू हो जाने देते है तब तक कुछ लोग भी आ जायेंगे तब अन्दर बैठेंगे। और हम बेन्चपर बैठ गये। १०-१५ मिनट बाद डिब्बे की लाईट भी चालू हो गई ।मगर बैठने के लिये हमारे दोनो के अलावाकोई भी दिखाई नही दे रहा था। हम दोनो एक-दुसरे की ओर देख कर मुस्करा रहे थे कि ---गजब ? क्या हमदोनो को ही होली पर बाहर जाना है। आखिर ५-७ मिनट पहले हम अपनी सीट पर बैठ गये । सोचा शायदअगले स्टेशनॊं से रिजर्वेशन होगा तब बैठेंगे । दोनो मस्त आमने -सामने की सीट पर बैठ गये । चेन बेचने वालाबार-बार आ जा रहा था हमने उसे मना कर दिया--- हमें कोई जरूरत नही है ।बाहर का नजारा देख रहे थे ।तभीदोनो की नजर एक व्यक्ति पर पडी ,वो बार-बार हमारी खिडकी के आस-पास चक्कर काट रहा था। हम दोनो नेआँखों ही आँखों मे इशारा किया और समझ लिया कि इससे सावधान रहने की जरूरत है , अभी हम ये समझ हीपाते कि वह व्यक्ति हमारी खिडकी के पास आया और कहने लगा--- मेडम, इस बोगी मे आप दोनो के अलावाकोई और नही है , बाहर चार्ट भी लग गया है , सिर्फ़ आप दोनो का ही नाम है पूरी बोगी में , आप टी. टी . से कहकर सीट चेंज कर लिजिए। (जिसे हम गलत समझ रहे थे , वो हमारा भला सोच रहा था)। जैसे ही सुना बेटीदौडकर पहले चार्ट देखकर आई ,बोली हाँ माँ हम दोनो ही है । मै घबरा गई ,( गाडी छूटने मे २ मिनट ही बाकीहोगे) , बेटी को भेजा -जा जल्दी से टी .टी. को ढूँढ कर बोल ----। बेटी दोड़कर गई टी . टी . महाशय मिल भीगये । कहा--- अभी जाकर बैठिए मै आता हूँ । गाडी रवाना हो चुकी थी । हम दोनो बेसब्री से उसका इंतजारकरने लगे । सारा मजा काफ़ूर हो गया था,सारे भगवान याद आने लगे थे , अब हम एक दूसरे को अकेले छोडकरभी जाने की हिम्मत नही कर पा रहे थे सो चुपचाप बैठ गये ।
करीब १० मिनट बाद टी. टी . आया , उसने बताया अगले डिब्बे मे जगह है --एक केबिन मे ६ लोग थे ,एक मे२लोग हमने सोचा अब चेंज ही कर रहे है तो ज्यादा लोगो के पास चले जाते है ,और हमने हमारी सीट ६ लोगोंके साथ ले ली।
खैर अब थोडी शान्ति मिल गई थी तो आराम से बैठ कर बतियाने लगे ,आजू -बाजू वालों को बताया कि सीटक्यों बदली? सफ़र शुरू हो चुका था ,अब अपने आसपास नजर दौडाई ३ पुरूष,३ महिलाएँ ,और तीनोँ की गोद मे१ वर्ष से कम उम्र के बच्चे। काफ़ी अछ्छा लगा था जगह बदल कर ।
चलो माँ अब कुछ खा ले--- बेटी कि आवाज आई---- हाँ चलो , कह कर खाना खा लिया।(वैसे सफ़र मे खाकरभी आये हो तो खाना ही पडता है)
अब तक ११ , साढे ११ बज चुके थे ,बच्चो की माताएँ थक चुकी थी ,वो सो गई। हम दोनो और तीनो पुरूष भीसोने की कोशिश करने लगे । थोडी देर मे सब सो चुके थे ।एक झपकी के बाद मै बाथरूम जाने के लिये उठीदेखा एक महिला जगी हुई है, मै जाकर वापस आई तो वो बोली --दीदी आप थोडा मेरे बच्चे को भी देखलिजिए ,मै भी हो आती हूँ (उसे उपर की बर्थ मिली थी ,वो शायद वहाँ बच्चे के गिरने के डर से ठीक से सो भीनही पा रही थी)। वो लौट कर आई , उसे ठीक से सोने की सलाह देकर मै अपनी जगह पर सोने लगी इतने मे हिनीचे वाला बच्चा रोने लगा।
बस इसी तरह सोते जागते सफ़र कट ही रहा था कि भोपाल मे ट्रेन रूकी ।थोडी देर बाद फ़िर सफ़र शुरू हुआ।
अभी १५ मिनट ही बीते होंगे कि एक आवाज ने हमे जगाया--- अरे ,अरे देखो वो आपका सुट्केस तो नही लेगया , हम सब फ़टाफ़ट उठे----- झुक कर देखा---और ये क्या हमारा एक सूट्केस गायब था,बाजु वाले की भीएक थैली गायब थी , हम ट्रेन मे दोनो तरफ़ देखने के लिये भागे भी--- तभी ट्रेन की चेन भी खींचीं गई थी ,बहुतसारे लोग हम सबको भागते दिखाई दिये ,हम लोग कुछ भी समझ नही पाये ,वो पुकारने वाला आदमी भी उतरगया, चेन खींचीं जाने पर ।
पूरी ट्रेन मे कोई टी . टी . नही दिखाई दिया । हर डिब्बे से लोग दौड कर आ रहे थे ,पता चला बहुत से लोगों कासामान चोरी गया था। मेरी रुलाई फ़ूट पडी। मेरा जो सूटकेस गया था उसमें मेरा पर्स जिसमे , सोने की चेन , अंगूठी वगैरह था ,और कुछ नगदी भी रखी थी ।बाकी मेरी बेटी के सारे कपडे थे। साथ वाले भाई साहब की थैलीमे भी उनके बच्चे को गिफ़्ट मे मिले गहने ही थे । पहली बार ही ऐसा हुआ था कि मैने अपना किमती सामानअपने हेंड्बेग मे न रख कर सूट्केस मे रखा था। सबसे पहले माँ याद आई , फ़ोन पर बताया ,ढाढस के दो शब्दसुन कर आँसू रूकने का नाम नही ले रहे थे । वो इन्दौर वाले भाईसाहब भी किसी दुसरे डिब्बे मे थे पता चलतेही ये देखने के लिये आए कि हमने जगह बदली थी या नही ,कही हमारे साथ कुछ और तो नही हुआ? बोले--- चलो जो हुआ अछ्छा ही हुआ अगर आप उस बोगी मे अकेले होते तो और भी बुरा हो सकता था । , खैर सोच लियाये भी अपने साथ होना लिखा होगा।
थोडी देर बाद ईटारसी स्टेशन आया , ट्रेन रूकी , मै और वो भाई साहब चेन खींच कर ट्रेन रोकने की हिदायतदेकर प्लेट्फ़ार्म पर थाने मे रिपोर्ट करने गये ,लेकिन जिसकी कि उम्मीद थी वैसा ही हुआ ,वहाँ कोई नहीथा,जो एक -दो आदमी थे वो भी दरवाजा बंद करके सो रहे थे ,इस बीच दो बार चेन खींच कर ट्रेन भी रोक लीगई थी ,हम वापस आ गए।(चेन खींच कर ट्रेन क्यों रोकी गई ये पूछ्ने भी कोई नही आया )।
किसी ने सलाह दी सुबह नागपूर मे रिपोर्ट कर देना। अब मरते क्या न करते । बैठ गए फ़िर से -----सोचतेसोचते ,एक -दो झपकी मारते-मारते---- सुबह किसी तरह नागपूर पहूँच गए । अब ???
सोचा कोई तो अपने साथ रिपोर्ट करेगा ,मगर हम गलत थे ,हर कोई अपने घर पहूँचना चाहता था,कोई पुलिसके पचडे मे नही पडना चाहता था,किसी को कोई उम्मीद भी नही थी कि कोई कारवाई होगी ,लेकिन मै बेटी कोलेकर थाने मे गई ,पहला अनुभव था-- सब होली खेलने के मूड मे थे , कुछ " महक " रहे थे ,कुछ " चहक " रहेथे। - हमारे तो सारे रंग ही उड चुके थे तब तक ,करीब एक घंटा बैठाने के बाद बीच-बीच मे होली -मिलनकरके हमारी रिपोर्ट लिखी गई , ( जिस पर अमल होना अब तक बाकी है ,हम तो भूल भी चुके है कि हमने ऐसीकोई रिपोर्ट लिखवाई थी ) , खैर जैसे तैसे घर पहूँचे अपना बचा-खुचा सामान लेकर ! अब बेटी का चेहरा देखनेलायक था--- उसे रह-रह कर अपने कपडे याद आ रहे थे (नागपूर मे उस समय ३ दिन तक मार्केट बंद था ,अबबारी हँसने की थी) , अपनी दीदीयों के बिना साईज के कपडे उसे पहनना पडे ,हर कोई मजाक करता ---येअब नये कपडे----!!!!
अब भी सब याद आता है पर अब हम थोडे समझदार हो गए है---अपने मन को कुछ इस तरह समझातेहै---बेचारा चोर , कितना खुश हो गया होगा , त्योहार पर इतने कपडे , गहने ,पैसे मिलने से , अगर उसके पासये सब होता तो वो चोरी थोडी ही करता !!! हो सकता है उसकी भी मेरी जैसी कोई बेटी या बहन होगी!!!औरइतना सब कुछ त्यौहार पर पाकर कितना खुश हुए होंगे वो !!! शायद उसने उसके बाद कोई चोरी न की हो!!!!
बस ये सब सोच कर मन खुश हो जाता है कि अनजाने ही सही किसी की मदद तो हो गई( अब कोई जानबूझकर तो हम इतना कुछ किसी को देते नही) और ये सब सोच के --- होली के उडे रंग वापस लौट आये है।
"सभी ब्लोगर साथीयों को होली मुबारक "
खैर प्रोग्राम बनाया और मै और मेरी बेटी होली के एक दिन पहले इंदौर से नागपुर के लिये रात की ९ बजे वालीट्रेन से निकले। पहली बार हम दोनो अकेले सफ़र कर रहे थे। स्टेशन पर आधा घंटा पहले ही पहुँच गये । गाडीप्लेट्फ़ार्म पर ही खडी थी , मगर डिब्बे मे लाईट नही थी, गाडी छूटने मे समय था , मैने कहा -अभी यही बेन्चपर बैठ जाते है ,लाईट चालू हो जाने देते है तब तक कुछ लोग भी आ जायेंगे तब अन्दर बैठेंगे। और हम बेन्चपर बैठ गये। १०-१५ मिनट बाद डिब्बे की लाईट भी चालू हो गई ।मगर बैठने के लिये हमारे दोनो के अलावाकोई भी दिखाई नही दे रहा था। हम दोनो एक-दुसरे की ओर देख कर मुस्करा रहे थे कि ---गजब ? क्या हमदोनो को ही होली पर बाहर जाना है। आखिर ५-७ मिनट पहले हम अपनी सीट पर बैठ गये । सोचा शायदअगले स्टेशनॊं से रिजर्वेशन होगा तब बैठेंगे । दोनो मस्त आमने -सामने की सीट पर बैठ गये । चेन बेचने वालाबार-बार आ जा रहा था हमने उसे मना कर दिया--- हमें कोई जरूरत नही है ।बाहर का नजारा देख रहे थे ।तभीदोनो की नजर एक व्यक्ति पर पडी ,वो बार-बार हमारी खिडकी के आस-पास चक्कर काट रहा था। हम दोनो नेआँखों ही आँखों मे इशारा किया और समझ लिया कि इससे सावधान रहने की जरूरत है , अभी हम ये समझ हीपाते कि वह व्यक्ति हमारी खिडकी के पास आया और कहने लगा--- मेडम, इस बोगी मे आप दोनो के अलावाकोई और नही है , बाहर चार्ट भी लग गया है , सिर्फ़ आप दोनो का ही नाम है पूरी बोगी में , आप टी. टी . से कहकर सीट चेंज कर लिजिए। (जिसे हम गलत समझ रहे थे , वो हमारा भला सोच रहा था)। जैसे ही सुना बेटीदौडकर पहले चार्ट देखकर आई ,बोली हाँ माँ हम दोनो ही है । मै घबरा गई ,( गाडी छूटने मे २ मिनट ही बाकीहोगे) , बेटी को भेजा -जा जल्दी से टी .टी. को ढूँढ कर बोल ----। बेटी दोड़कर गई टी . टी . महाशय मिल भीगये । कहा--- अभी जाकर बैठिए मै आता हूँ । गाडी रवाना हो चुकी थी । हम दोनो बेसब्री से उसका इंतजारकरने लगे । सारा मजा काफ़ूर हो गया था,सारे भगवान याद आने लगे थे , अब हम एक दूसरे को अकेले छोडकरभी जाने की हिम्मत नही कर पा रहे थे सो चुपचाप बैठ गये ।
करीब १० मिनट बाद टी. टी . आया , उसने बताया अगले डिब्बे मे जगह है --एक केबिन मे ६ लोग थे ,एक मे२लोग हमने सोचा अब चेंज ही कर रहे है तो ज्यादा लोगो के पास चले जाते है ,और हमने हमारी सीट ६ लोगोंके साथ ले ली।
खैर अब थोडी शान्ति मिल गई थी तो आराम से बैठ कर बतियाने लगे ,आजू -बाजू वालों को बताया कि सीटक्यों बदली? सफ़र शुरू हो चुका था ,अब अपने आसपास नजर दौडाई ३ पुरूष,३ महिलाएँ ,और तीनोँ की गोद मे१ वर्ष से कम उम्र के बच्चे। काफ़ी अछ्छा लगा था जगह बदल कर ।
चलो माँ अब कुछ खा ले--- बेटी कि आवाज आई---- हाँ चलो , कह कर खाना खा लिया।(वैसे सफ़र मे खाकरभी आये हो तो खाना ही पडता है)
अब तक ११ , साढे ११ बज चुके थे ,बच्चो की माताएँ थक चुकी थी ,वो सो गई। हम दोनो और तीनो पुरूष भीसोने की कोशिश करने लगे । थोडी देर मे सब सो चुके थे ।एक झपकी के बाद मै बाथरूम जाने के लिये उठीदेखा एक महिला जगी हुई है, मै जाकर वापस आई तो वो बोली --दीदी आप थोडा मेरे बच्चे को भी देखलिजिए ,मै भी हो आती हूँ (उसे उपर की बर्थ मिली थी ,वो शायद वहाँ बच्चे के गिरने के डर से ठीक से सो भीनही पा रही थी)। वो लौट कर आई , उसे ठीक से सोने की सलाह देकर मै अपनी जगह पर सोने लगी इतने मे हिनीचे वाला बच्चा रोने लगा।
बस इसी तरह सोते जागते सफ़र कट ही रहा था कि भोपाल मे ट्रेन रूकी ।थोडी देर बाद फ़िर सफ़र शुरू हुआ।
अभी १५ मिनट ही बीते होंगे कि एक आवाज ने हमे जगाया--- अरे ,अरे देखो वो आपका सुट्केस तो नही लेगया , हम सब फ़टाफ़ट उठे----- झुक कर देखा---और ये क्या हमारा एक सूट्केस गायब था,बाजु वाले की भीएक थैली गायब थी , हम ट्रेन मे दोनो तरफ़ देखने के लिये भागे भी--- तभी ट्रेन की चेन भी खींचीं गई थी ,बहुतसारे लोग हम सबको भागते दिखाई दिये ,हम लोग कुछ भी समझ नही पाये ,वो पुकारने वाला आदमी भी उतरगया, चेन खींचीं जाने पर ।
पूरी ट्रेन मे कोई टी . टी . नही दिखाई दिया । हर डिब्बे से लोग दौड कर आ रहे थे ,पता चला बहुत से लोगों कासामान चोरी गया था। मेरी रुलाई फ़ूट पडी। मेरा जो सूटकेस गया था उसमें मेरा पर्स जिसमे , सोने की चेन , अंगूठी वगैरह था ,और कुछ नगदी भी रखी थी ।बाकी मेरी बेटी के सारे कपडे थे। साथ वाले भाई साहब की थैलीमे भी उनके बच्चे को गिफ़्ट मे मिले गहने ही थे । पहली बार ही ऐसा हुआ था कि मैने अपना किमती सामानअपने हेंड्बेग मे न रख कर सूट्केस मे रखा था। सबसे पहले माँ याद आई , फ़ोन पर बताया ,ढाढस के दो शब्दसुन कर आँसू रूकने का नाम नही ले रहे थे । वो इन्दौर वाले भाईसाहब भी किसी दुसरे डिब्बे मे थे पता चलतेही ये देखने के लिये आए कि हमने जगह बदली थी या नही ,कही हमारे साथ कुछ और तो नही हुआ? बोले--- चलो जो हुआ अछ्छा ही हुआ अगर आप उस बोगी मे अकेले होते तो और भी बुरा हो सकता था । , खैर सोच लियाये भी अपने साथ होना लिखा होगा।
थोडी देर बाद ईटारसी स्टेशन आया , ट्रेन रूकी , मै और वो भाई साहब चेन खींच कर ट्रेन रोकने की हिदायतदेकर प्लेट्फ़ार्म पर थाने मे रिपोर्ट करने गये ,लेकिन जिसकी कि उम्मीद थी वैसा ही हुआ ,वहाँ कोई नहीथा,जो एक -दो आदमी थे वो भी दरवाजा बंद करके सो रहे थे ,इस बीच दो बार चेन खींच कर ट्रेन भी रोक लीगई थी ,हम वापस आ गए।(चेन खींच कर ट्रेन क्यों रोकी गई ये पूछ्ने भी कोई नही आया )।
किसी ने सलाह दी सुबह नागपूर मे रिपोर्ट कर देना। अब मरते क्या न करते । बैठ गए फ़िर से -----सोचतेसोचते ,एक -दो झपकी मारते-मारते---- सुबह किसी तरह नागपूर पहूँच गए । अब ???
सोचा कोई तो अपने साथ रिपोर्ट करेगा ,मगर हम गलत थे ,हर कोई अपने घर पहूँचना चाहता था,कोई पुलिसके पचडे मे नही पडना चाहता था,किसी को कोई उम्मीद भी नही थी कि कोई कारवाई होगी ,लेकिन मै बेटी कोलेकर थाने मे गई ,पहला अनुभव था-- सब होली खेलने के मूड मे थे , कुछ " महक " रहे थे ,कुछ " चहक " रहेथे। - हमारे तो सारे रंग ही उड चुके थे तब तक ,करीब एक घंटा बैठाने के बाद बीच-बीच मे होली -मिलनकरके हमारी रिपोर्ट लिखी गई , ( जिस पर अमल होना अब तक बाकी है ,हम तो भूल भी चुके है कि हमने ऐसीकोई रिपोर्ट लिखवाई थी ) , खैर जैसे तैसे घर पहूँचे अपना बचा-खुचा सामान लेकर ! अब बेटी का चेहरा देखनेलायक था--- उसे रह-रह कर अपने कपडे याद आ रहे थे (नागपूर मे उस समय ३ दिन तक मार्केट बंद था ,अबबारी हँसने की थी) , अपनी दीदीयों के बिना साईज के कपडे उसे पहनना पडे ,हर कोई मजाक करता ---येअब नये कपडे----!!!!
अब भी सब याद आता है पर अब हम थोडे समझदार हो गए है---अपने मन को कुछ इस तरह समझातेहै---बेचारा चोर , कितना खुश हो गया होगा , त्योहार पर इतने कपडे , गहने ,पैसे मिलने से , अगर उसके पासये सब होता तो वो चोरी थोडी ही करता !!! हो सकता है उसकी भी मेरी जैसी कोई बेटी या बहन होगी!!!औरइतना सब कुछ त्यौहार पर पाकर कितना खुश हुए होंगे वो !!! शायद उसने उसके बाद कोई चोरी न की हो!!!!
बस ये सब सोच कर मन खुश हो जाता है कि अनजाने ही सही किसी की मदद तो हो गई( अब कोई जानबूझकर तो हम इतना कुछ किसी को देते नही) और ये सब सोच के --- होली के उडे रंग वापस लौट आये है।
"सभी ब्लोगर साथीयों को होली मुबारक "
Sunday, March 8, 2009
शुभकामनाएँ------
पिछ्ले वर्ष महिला दिवस की ही बात है -- स्कूल मे कुछ शिक्षिकाओं का सम्मान किया जाना तय किया गयाथा,मेरी भी गिनती पुरानी शिक्षिकाओं मे की जाने लगी थी ,मुझे पता चल गया था कि लिस्ट मे मेरा नाम भीहै। अभी तक कभी सामने आकर कुछ बोलने का काम नही पडा था।मै सोच रही थी कि अगर मेरा नाम पुकाराजाएगा तो मुझे वहाँ जाना पडेगा , और अगर वहाँ गई तो सिर्फ़ थैन्क्स बोल कर आना अछ्छा नही लगेगा । मुझेबहुत घबराहट हो रही थी, तब मुझे रचना (छोटी बहन ) की बात याद आई कि कैसे उसने अपनी बेटी के फ़ैन्सीड्रेस प्रोग्राम के लिए , कुछ अलग करने की चाह मे चंद लाईने लिखी , उसने भी तो कही नही सीखा, बससरस्वती माता का ध्यान किया और जो कुछ लिखा, वही आज महिला दिवस पर दोहराना चाहती हूँ-----
"आव्हान "
आओ सुनहरे सपनों को बुनें ,
अच्छाई और सच्चाई को चुनें ,
बुजुर्गों के अनुभवों को भुनें ,
अभावों में अपना सर न धुनें ,
मुश्किलों से लडें उत्साह में दूनें ,
अपने दिल की सुनें ,
फ़िर कोई न कह सके - देर कर दी तूने ,
चलो मेरे साथ आसमान छूने ।
इसी के साथ दुनिया की तमाम महिलाऒ , जो कहीं न कहीं सर्जक की भूमिका निभा रही है, को मेरी ओर से
महिला दिवस की हार्दिक शुभ-कामनाएँ ।
"आव्हान "
आओ सुनहरे सपनों को बुनें ,
अच्छाई और सच्चाई को चुनें ,
बुजुर्गों के अनुभवों को भुनें ,
अभावों में अपना सर न धुनें ,
मुश्किलों से लडें उत्साह में दूनें ,
अपने दिल की सुनें ,
फ़िर कोई न कह सके - देर कर दी तूने ,
चलो मेरे साथ आसमान छूने ।
इसी के साथ दुनिया की तमाम महिलाऒ , जो कहीं न कहीं सर्जक की भूमिका निभा रही है, को मेरी ओर से
महिला दिवस की हार्दिक शुभ-कामनाएँ ।
Saturday, March 7, 2009
बोलो ठीक है ना !!!!!
जो कुछ चाहो , वो मिल ही जाए ,
ऐसा कभी नही होता है ।इसलिए जो कुछ मिले ,
उसे " चाह " लेना ही ठीक है ।
जो कुछ सीखो , सब आ जाए,
ऐसा कभी नही होता है ।
इसलिए जो कुछ आ जाए ,
उससे ही " सीख " लेना ठीक है ।
जो कुछ लिखा है , वो सब पढ लिया हो ,
ऐसा कभी नही होता है ।
इसलिए जो कुछ पढ लिया हो ,
उसे ही " याद रख लेना " ठीक है ।
जो कुछ सुना , सब समझ लिया ,
ऐसा कभी नही होता है ।
इसलिए जो कुछ " समझा " ,
उसे ही " कर " लेना ठीक है।
जो कुछ बोला , सब काम का हो ,
जरूरी नही होता है ,
लेकिन बडों की कही हर बात को ,
शान्ति से " सुन " लेना ठीक है ।
जो कुछ खो गया , वो फ़िर से मिल जाए ,
ऐसा हमेशा नही होता है ,
इसलिए जो मिल गया ,
उसे ही " सहेज " लेना ठीक है ।
खुशी और गम , किसी के पास ज्यादा होते है ,
किसी के पास कम ,
इनको समान करने के लिए ,
आपस मे " बांट " देना ही ठीक है ।
किसी भी उम्र में कोई भी व्यक्ति ,
कभी परिपूर्ण नही होता है ,
इसलिए हर छोटे- बडे की कही बात पर ,
" ध्यान " देना ही ठीक है ।
कोई भी संस्कृति या धर्म ,
किसी को बुराई नही सिखाता ,
इसलिए हर धर्म और संस्कृति को ,
हमेशा " मान " देना ही ठीक है ।
Friday, March 6, 2009
अम्मार --- एक श्रद्धांजली
मै आज बहुत ही दुखी हूँ । घर में कोई नही है । भतीजी जो मेरे पास रह कर पढ रही है , होली की छुट्टियाँ होनेसे मम्मी के पास चली गई है । मन बहुत ही घबरा रहा है , किससे कहूँ ? और क्या ? इसलिये सोचा यहीं लिखूँशायद मन हल्का हो जाये ।आज एक ऐसा हादसा हो गया जिसका सामना ग्यारह साल मे पहली बार करना पडाहै । ऐसा नही है कि ये हादसा नया हो , आये दिन इसके बारे मे पढने-सुनने मे आता रहता है ।शायद ही कोईशहर इससे अछूता हो।
सुबह रोज की तरह स्कूल पहूँचे थे हम सब स्कूल बस से । हँस -हँस कर सभी बच्चो व अन्य सहयोगियो से मिलना हुआ। आज ८वी,९वी,११वी के बच्चो का आखरी पेपर था । अपेक्षाक्रत सरल पेपर (हिन्दी) । सब बच्चेबहुत ही खुश थे , त्योहार से पहले परिक्षाएं निपट जाने से । आपस मे मिलकर बच्चे होली खेलने की प्लानिंगकर रहे थे । कुल मिलाकर माहौल बहुत ही खुशनुमा था , मौसम मे भी अछ्छी ठंडक थी। तभी प्रार्थना की घंटीबजी , बच्चे लाईन मे खडे हुए ,१२वी कक्षा का भी (बोर्ड एक्जाम) पेपर था , रोज की तरह सभी बच्चॊ को "बेस्टऒफ़ लक" कहा गया। प्रार्थना शुरू हुई ,खतम हुई , बच्चे कतार में कक्षा मे जा ही रहे थे कि एक शिक्षीकाघबराई हुई सी प्रिन्सीपल मेडम के पास आई उसने उनके कान मे कुछ कहा।फ़िर क्या कहा जानने की जिज्ञासामे मै जल्दी-जल्दी उनके आफ़िस की ओर गई। रिसेप्स्निस्ट बाहर ही मिल गई , पूछा , और जो कुछ उसनेकहा-- सुनकर होश ही उड गए । एक साथी शिक्षक (सर) ने फ़ोन पर खबर की थी---"मेडम यहाँ एक्सीडेन्ट होगया है, करीब २०० मीटर फ़ासले पर ,अपने स्कूल के बच्चे हैं।जल्दी किसी को भेजिए।" सब घबरा गये थे, क्याहुआ होगा ? , तब तक ये जानने के लिये कि कौनसा बच्चा होगा , फ़िर से सर को फ़ोन लगाने की कोशीश कीगई, स्कूल का फ़ोन न लग पाने के कारण एक शिक्षीका ने अपने मोबाईल से लगाया -- सर कौनसा बच्चा है ? ---"अम्मार" ८वी क्लास । जबाब सुनकर वो वहीं गिर पडी (वो बच्चा उन्हीं की बहन का इक्लौता बेटा था,जिसेअपने स्कूल मे २साल पहले ही प्रवेश करवाया था उन्होंने)
सभी लोग दौडकर घटनास्थ्ल पर पहूचे थे ।किसी दुसरे स्कूल की बस का पिछ्ला पहिया उसके सर पर से चलागया था ,घटनास्थल पर ही उसकी मौत हो गई थी।
घटना के प्रत्यक्शदर्शी वे सर जब १२ बजे सारी कार्यवाही निपटाकर स्कूल पहूँचे उनसे जो जानकारी मिली----
"एक सेकंड के अंदर सब कुछ मेरे सामने ही खतम हो गया, मै उनसे कुछ मीटर की ही दूरी पर था ,तेज गती सेआती बस ने टक्कर मारी ,एक खट की आवाज आई ,मुझे भी उसने कट मारी ,मै जोर से चिल्लाया,वो नहीरूका, मैने वापस सामने देखा तो ये लोग गिरे हुए थे और वो बच्चा!!!!!, आगे वो बोल नही पाए सिर्फ़ आँसूनिकल पडे। -----फ़िर?---- मै उतरा ,आस-पास के लोगो को रोका, कोई रुकने को ही तैयार नहीथा,(सब सोचते है पुलिस के पचडे मे कौन पडे?) एक बच्चा जो घायल था बेहोश हो चुका था ,मैने उसे उठाकरहिलाया ,साँस चल रही थी ,फ़िर उसे देखा जो गाडी चला रहा था , उसके पैर मे चोट लगी थी वो उठ नही पा रहाथा ,वो घर फ़ोन लगाने की कोशीश कर रहा था। मैने फ़ोन लिया और कहा-आप जल्दी से इस जगह आ जाईयेएक्सीडेंट हुआ है ,फ़िर स्कूल और कन्ट्रोल रूम फ़ोन किया ।
"चूँकि वे चश्मदीद थे इसलिये अस्पताल पोस्ट्मार्टम और थाने रिपोर्ट के लिए गए ,थाने मे उनका अनुभव भीकडवा ही रहा । इस थाने का केस नही है वहाँ जाओ । वहाँ गए तो- वहाँ । गाडी का नम्बर क्यो नही देखा ?
( जबकी घायलो को देखना ज्यादा जरूरी था)।
बाद मे अन्य बातें भी पता चली -- रोज उनके पापा मारूती वेन मे छोडने आते थे , आज ही वे दूकान चले गये, दूसरा भाई भी घर पर नही था, इसलिये अपने कजिन के साथ बाईक पर भेजा था , पापा ही सबसे पहले पहूँचेघटनास्थल पर।,एक और छोटी बहन है , देखो उसकी मौत उसे यहाँ खींच लाई , ५ मिनट का ही रास्ता बचाथा, होनी को कौन टाल सकता है , पता नही क्या-क्या सोचा होगा उसने !, कितने प्यार से निकला होगा माँ कोबाय करके ! बस इस जैसी ढेर सारी बातें !!!!!!
और "अम्मार" कितना प्यारा बच्चा था वो--- किसी से कुछ लेन-देना नही ,अपने काम से काम रखने वाला।हमेशा हँसते रहता था।
एक स्पोर्ट टीचर के अनुसार---"कल ही मैने उससे पूछा था--- और ? परीक्षा खतम?----हाँ सर ,--(खुश होकरबोला था), मै हमेशा मजाक किया करता था उसके साथ --- शेख अम्मार बोलूँ या अम्मार शेख? जबाब देता - कुछ भी कह लिजीए आप को जो अछ्छा लगे। मैने उसके कंधे मसलते हुए उसे गुदगुदी करते हुए पूछा था--- और आगे के बारे मे कुछ सोचा है ? ----क्या?---- मतलब बडे होकर क्या बनना है?--- हँसते हुए जबाब दियाथा --- "पायलेट"।
बाद मे स्कूल का आज हाफ़ डे कर दिया गया।(कल भी छुट्टी रखी है) हम सब टीचर उसके घर गये । बहुतशान्त लेटा था वो--------
बस उसे एक नजर देख कर आँखे मुंदकर ईश्वर से प्रार्थना ही कर पाई मै "हे ईश्वर इस बच्चे की आत्मा को शांतिदेना और इसके परिवार वालो को इस सदमे को सहने की शक्ती।"
और जो दूसरा बच्चा था ( ५वी कक्षा )--- चोट तो ज्यादा नही आई मगर सदमे से बेहोश था अस्पताल मे तबतक ।
और इस सबके बाद जो प्रश्न दिमाग मे घूम रहे है वो--- क्या बसवाले को रूकना नही चाहीए था?, आखिर वो भी किसी स्कूल की बस का ही ड्राईवर था। क्या बच्चों से उसे कोई लगाव नही रहा होगा?, स्कूल बसों की गति पर नियंत्रण जरूरी नही है? रास्ते मे आने-जाने वाले मदद के लिए क्यो नही रूकते? क्या रूकने के लिये किसी अपने के साथ ही दुर्घटना घटनी चाहिए ? और क्या ईश्वर को भी अछ्छे लोगो को ले जाने की जल्दी रहती है?
एक जरा सी भूल ने कितना कुछ तबाह कर दिया। अगर एक क्षण का ही जीवन है तो इतनी भागदौड क्यों?????
सुबह रोज की तरह स्कूल पहूँचे थे हम सब स्कूल बस से । हँस -हँस कर सभी बच्चो व अन्य सहयोगियो से मिलना हुआ। आज ८वी,९वी,११वी के बच्चो का आखरी पेपर था । अपेक्षाक्रत सरल पेपर (हिन्दी) । सब बच्चेबहुत ही खुश थे , त्योहार से पहले परिक्षाएं निपट जाने से । आपस मे मिलकर बच्चे होली खेलने की प्लानिंगकर रहे थे । कुल मिलाकर माहौल बहुत ही खुशनुमा था , मौसम मे भी अछ्छी ठंडक थी। तभी प्रार्थना की घंटीबजी , बच्चे लाईन मे खडे हुए ,१२वी कक्षा का भी (बोर्ड एक्जाम) पेपर था , रोज की तरह सभी बच्चॊ को "बेस्टऒफ़ लक" कहा गया। प्रार्थना शुरू हुई ,खतम हुई , बच्चे कतार में कक्षा मे जा ही रहे थे कि एक शिक्षीकाघबराई हुई सी प्रिन्सीपल मेडम के पास आई उसने उनके कान मे कुछ कहा।फ़िर क्या कहा जानने की जिज्ञासामे मै जल्दी-जल्दी उनके आफ़िस की ओर गई। रिसेप्स्निस्ट बाहर ही मिल गई , पूछा , और जो कुछ उसनेकहा-- सुनकर होश ही उड गए । एक साथी शिक्षक (सर) ने फ़ोन पर खबर की थी---"मेडम यहाँ एक्सीडेन्ट होगया है, करीब २०० मीटर फ़ासले पर ,अपने स्कूल के बच्चे हैं।जल्दी किसी को भेजिए।" सब घबरा गये थे, क्याहुआ होगा ? , तब तक ये जानने के लिये कि कौनसा बच्चा होगा , फ़िर से सर को फ़ोन लगाने की कोशीश कीगई, स्कूल का फ़ोन न लग पाने के कारण एक शिक्षीका ने अपने मोबाईल से लगाया -- सर कौनसा बच्चा है ? ---"अम्मार" ८वी क्लास । जबाब सुनकर वो वहीं गिर पडी (वो बच्चा उन्हीं की बहन का इक्लौता बेटा था,जिसेअपने स्कूल मे २साल पहले ही प्रवेश करवाया था उन्होंने)
सभी लोग दौडकर घटनास्थ्ल पर पहूचे थे ।किसी दुसरे स्कूल की बस का पिछ्ला पहिया उसके सर पर से चलागया था ,घटनास्थल पर ही उसकी मौत हो गई थी।
घटना के प्रत्यक्शदर्शी वे सर जब १२ बजे सारी कार्यवाही निपटाकर स्कूल पहूँचे उनसे जो जानकारी मिली----
"एक सेकंड के अंदर सब कुछ मेरे सामने ही खतम हो गया, मै उनसे कुछ मीटर की ही दूरी पर था ,तेज गती सेआती बस ने टक्कर मारी ,एक खट की आवाज आई ,मुझे भी उसने कट मारी ,मै जोर से चिल्लाया,वो नहीरूका, मैने वापस सामने देखा तो ये लोग गिरे हुए थे और वो बच्चा!!!!!, आगे वो बोल नही पाए सिर्फ़ आँसूनिकल पडे। -----फ़िर?---- मै उतरा ,आस-पास के लोगो को रोका, कोई रुकने को ही तैयार नहीथा,(सब सोचते है पुलिस के पचडे मे कौन पडे?) एक बच्चा जो घायल था बेहोश हो चुका था ,मैने उसे उठाकरहिलाया ,साँस चल रही थी ,फ़िर उसे देखा जो गाडी चला रहा था , उसके पैर मे चोट लगी थी वो उठ नही पा रहाथा ,वो घर फ़ोन लगाने की कोशीश कर रहा था। मैने फ़ोन लिया और कहा-आप जल्दी से इस जगह आ जाईयेएक्सीडेंट हुआ है ,फ़िर स्कूल और कन्ट्रोल रूम फ़ोन किया ।
"चूँकि वे चश्मदीद थे इसलिये अस्पताल पोस्ट्मार्टम और थाने रिपोर्ट के लिए गए ,थाने मे उनका अनुभव भीकडवा ही रहा । इस थाने का केस नही है वहाँ जाओ । वहाँ गए तो- वहाँ । गाडी का नम्बर क्यो नही देखा ?
( जबकी घायलो को देखना ज्यादा जरूरी था)।
बाद मे अन्य बातें भी पता चली -- रोज उनके पापा मारूती वेन मे छोडने आते थे , आज ही वे दूकान चले गये, दूसरा भाई भी घर पर नही था, इसलिये अपने कजिन के साथ बाईक पर भेजा था , पापा ही सबसे पहले पहूँचेघटनास्थल पर।,एक और छोटी बहन है , देखो उसकी मौत उसे यहाँ खींच लाई , ५ मिनट का ही रास्ता बचाथा, होनी को कौन टाल सकता है , पता नही क्या-क्या सोचा होगा उसने !, कितने प्यार से निकला होगा माँ कोबाय करके ! बस इस जैसी ढेर सारी बातें !!!!!!
और "अम्मार" कितना प्यारा बच्चा था वो--- किसी से कुछ लेन-देना नही ,अपने काम से काम रखने वाला।हमेशा हँसते रहता था।
एक स्पोर्ट टीचर के अनुसार---"कल ही मैने उससे पूछा था--- और ? परीक्षा खतम?----हाँ सर ,--(खुश होकरबोला था), मै हमेशा मजाक किया करता था उसके साथ --- शेख अम्मार बोलूँ या अम्मार शेख? जबाब देता - कुछ भी कह लिजीए आप को जो अछ्छा लगे। मैने उसके कंधे मसलते हुए उसे गुदगुदी करते हुए पूछा था--- और आगे के बारे मे कुछ सोचा है ? ----क्या?---- मतलब बडे होकर क्या बनना है?--- हँसते हुए जबाब दियाथा --- "पायलेट"।
बाद मे स्कूल का आज हाफ़ डे कर दिया गया।(कल भी छुट्टी रखी है) हम सब टीचर उसके घर गये । बहुतशान्त लेटा था वो--------
बस उसे एक नजर देख कर आँखे मुंदकर ईश्वर से प्रार्थना ही कर पाई मै "हे ईश्वर इस बच्चे की आत्मा को शांतिदेना और इसके परिवार वालो को इस सदमे को सहने की शक्ती।"
और जो दूसरा बच्चा था ( ५वी कक्षा )--- चोट तो ज्यादा नही आई मगर सदमे से बेहोश था अस्पताल मे तबतक ।
और इस सबके बाद जो प्रश्न दिमाग मे घूम रहे है वो--- क्या बसवाले को रूकना नही चाहीए था?, आखिर वो भी किसी स्कूल की बस का ही ड्राईवर था। क्या बच्चों से उसे कोई लगाव नही रहा होगा?, स्कूल बसों की गति पर नियंत्रण जरूरी नही है? रास्ते मे आने-जाने वाले मदद के लिए क्यो नही रूकते? क्या रूकने के लिये किसी अपने के साथ ही दुर्घटना घटनी चाहिए ? और क्या ईश्वर को भी अछ्छे लोगो को ले जाने की जल्दी रहती है?
एक जरा सी भूल ने कितना कुछ तबाह कर दिया। अगर एक क्षण का ही जीवन है तो इतनी भागदौड क्यों?????
Thursday, March 5, 2009
फ़ैसला आपका ! ! ! ! !
बहुत जरूरी है आज मेरा यहाँ लिखना,वरना उसको बचाया नही जा सकेगा । एक और प्रतिभा प्रोत्साहन केअभाव में यहाँ से पलायन कर जाएगी ,और हम उसके उपभोग से वन्चित हो जाएंगे। ज्ञान का प्रकाश फ़ैलतेफ़ैलते रह जाएगा। और फ़िर शुरू होगा चर्चाओं का दौर-------- पहले कारण ढूंढे जाएंगे,फ़िर उनके उपाय ।कुछ लोग कारण पैदा होने के कारण ढूंढेंगे! और अगर कारण ढूंढ लिये जाएंगे, तो एक-दूसरे पर दोषारोपण होंगे। वाद-विवाद होंगे । बहस होगी। बस! और अगर एक पक्का कारण ढूंढ भी लिया तो,तब तक प्रतिभा कही गुमहो जाएगी । आखिर इन्तजार की भी तो कोई सीमा होती है।
अब उपायों की बात करें तो सुझाव आमंत्रित किए जाएंगे। वो स्वयं को कितना फ़ायदा पहुंचाएंगे , ये देखाजाएगा। - समझ में नही आता कि हम लोगों को जो सुविधाएं मिलती है , हम उसका उपभोग अछ्छी तरह से क्यों नहीं कर सकते? मेरा इशारा मूलभूत सुविधाओं की ओर नहीं है ( इसके तो हम आदी हो चुके हैं) जैसे---
बिजली (स्विच बन्द न करना) , पानी ( नल खुले रखना,जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल करना) , हवा (धूल,धूएं वरंगों से भरना) , सडकें ( बनने के बाद गढ्ढे करना) , मकान (जरूरत से ज्यादा बडे बनवाना),आदि-आदि।उदाहरण तो बहुत हैं , अब आप पढ ही रहे है तो आगे भी जोड लेना।
अब इस ब्लॊगिंग को ही उदाहरण मान लें, तो देखिए घर बैठे कितने विषय पढने को मिलते है ।एक नया ब्लागर बिचारा रोज ही कुछ न कुछ लिखने का सोचते रहता है, कभी-कभी तो पूरा दिन ही सोचने मे बीत जाता है ,और जब लिख देता है तो टिप्प्णियों का इन्तजार करता रहता है ।जब पहली टिप्प्णी मिलती है तोखुश हो जाता और अगर वो भी किसी उंचे ब्लागर की हो तो वारे-न्यारे !!! मगर इसके बाद उसकी नजरटिप्प्णीयों की संख्या पर भी जाती ही है( अब क्रिया पर प्रतिक्रिया होना भी तो जरूरी है न!!) और जब बातहो रही है उसकी "लेखन प्रतिभा के उपभोग" की तो-उसने अछ्छा लिखा , बुरा लिखा,उसे इसका पता तोहोना चाहिए। अब रोज लिखने के चक्कर में उसे समझ नहीं आता कि प्रतिक्रियाओं के लिए कितना वक्त दे ? (उसे ये भी जानकारी नही होती की विकसित ब्लागरों के एक नही तीन-तीन , चार-चार और कभी-कभी तो इससे भी ज्यादा ब्लोग होते हैं, रोज लिखो -- और हर दिन अलग-अलग ब्लोग पर पोस्ट करो, ६-७ दिन में पुनः पहले ब्लोग से दोहराना शुरू !!! प्रतिक्रियाओं की भरमार!!!!!)।
मुझे करीब दो माह हुए है,पहले परिचितों कि प्रतिक्रिया ही मिलती थी। अब थोडे घूमने -फ़िरने वाले भी आनेलगे है । लेकिन मुझे लगता है - जब नई पोस्ट आ जाती है तो पुरानी कोई नहीं पढता!!! क्योंकि वहाँप्रतिक्रियाएँ
आना बन्द हो जाती है।तो अगर आप यहाँ तक पहुँच गये हैं , तो मेरी पिछ्ली पोस्ट पर भी एक नजर डाल लेना।
(बेकार हो तो बेकार ही टिप्प्णी दे देना, कुछ तो प्रतिक्रिया दे देना)।
अब आपको बता दूं कि प्रारंभ मे जिस प्रतिभा के पलायन के बारे मे लिखा है वो मै ही हूँ।
अब समस्या भी सामने है और हल भी , फ़ैसला आपका!!!!!!!!!!
अब उपायों की बात करें तो सुझाव आमंत्रित किए जाएंगे। वो स्वयं को कितना फ़ायदा पहुंचाएंगे , ये देखाजाएगा। - समझ में नही आता कि हम लोगों को जो सुविधाएं मिलती है , हम उसका उपभोग अछ्छी तरह से क्यों नहीं कर सकते? मेरा इशारा मूलभूत सुविधाओं की ओर नहीं है ( इसके तो हम आदी हो चुके हैं) जैसे---
बिजली (स्विच बन्द न करना) , पानी ( नल खुले रखना,जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल करना) , हवा (धूल,धूएं वरंगों से भरना) , सडकें ( बनने के बाद गढ्ढे करना) , मकान (जरूरत से ज्यादा बडे बनवाना),आदि-आदि।उदाहरण तो बहुत हैं , अब आप पढ ही रहे है तो आगे भी जोड लेना।
अब इस ब्लॊगिंग को ही उदाहरण मान लें, तो देखिए घर बैठे कितने विषय पढने को मिलते है ।एक नया ब्लागर बिचारा रोज ही कुछ न कुछ लिखने का सोचते रहता है, कभी-कभी तो पूरा दिन ही सोचने मे बीत जाता है ,और जब लिख देता है तो टिप्प्णियों का इन्तजार करता रहता है ।जब पहली टिप्प्णी मिलती है तोखुश हो जाता और अगर वो भी किसी उंचे ब्लागर की हो तो वारे-न्यारे !!! मगर इसके बाद उसकी नजरटिप्प्णीयों की संख्या पर भी जाती ही है( अब क्रिया पर प्रतिक्रिया होना भी तो जरूरी है न!!) और जब बातहो रही है उसकी "लेखन प्रतिभा के उपभोग" की तो-उसने अछ्छा लिखा , बुरा लिखा,उसे इसका पता तोहोना चाहिए। अब रोज लिखने के चक्कर में उसे समझ नहीं आता कि प्रतिक्रियाओं के लिए कितना वक्त दे ? (उसे ये भी जानकारी नही होती की विकसित ब्लागरों के एक नही तीन-तीन , चार-चार और कभी-कभी तो इससे भी ज्यादा ब्लोग होते हैं, रोज लिखो -- और हर दिन अलग-अलग ब्लोग पर पोस्ट करो, ६-७ दिन में पुनः पहले ब्लोग से दोहराना शुरू !!! प्रतिक्रियाओं की भरमार!!!!!)।
मुझे करीब दो माह हुए है,पहले परिचितों कि प्रतिक्रिया ही मिलती थी। अब थोडे घूमने -फ़िरने वाले भी आनेलगे है । लेकिन मुझे लगता है - जब नई पोस्ट आ जाती है तो पुरानी कोई नहीं पढता!!! क्योंकि वहाँप्रतिक्रियाएँ
आना बन्द हो जाती है।तो अगर आप यहाँ तक पहुँच गये हैं , तो मेरी पिछ्ली पोस्ट पर भी एक नजर डाल लेना।
(बेकार हो तो बेकार ही टिप्प्णी दे देना, कुछ तो प्रतिक्रिया दे देना)।
अब आपको बता दूं कि प्रारंभ मे जिस प्रतिभा के पलायन के बारे मे लिखा है वो मै ही हूँ।
अब समस्या भी सामने है और हल भी , फ़ैसला आपका!!!!!!!!!!
Tuesday, March 3, 2009
जाने कब????
यहाँ हर एक की अपनी कहानी होती है ,
कभी खुद तो कभी दूसरो की जबानी होती है।
हमे अपने बारे मे सब पता होता है ,
क्या अछ्छा होता है?,क्या बुरा होता है।
अपने फ़ायदे की हर बात, हम मानते है,
और स्वार्थपूर्ती के लिये हर जगह की खाक छानते है।
जिससे हो हमे नुकसान ,ऐसी हर बात टालते है,
और जरा-सी बात पर ही ,दूसरो को मार डालते है।
कुछ लोग जब यहाँ अपनी लाइफ़-स्टोरी गढते है,
तभी कुछ लोग, औरों की लाइफ़-स्टॊरी पढते है।
यहाँ लोग अपने पापो का घडा दूसरो के सर फ़ोडते है,
और दूसरो की चादर खींचकर मुंह तक ओढते है।
जो कुछ हम करते है,या करने वाले होते है ,सsssब जानते है,
फ़िर भी अपने आप को क्यो??? नही पहचानते है ।
जाने कब??? वो दिन आयेंगे ,
जब हम अपने आप को बदल पायेंगे!!!!!!!!!!
कभी खुद तो कभी दूसरो की जबानी होती है।
हमे अपने बारे मे सब पता होता है ,
क्या अछ्छा होता है?,क्या बुरा होता है।
अपने फ़ायदे की हर बात, हम मानते है,
और स्वार्थपूर्ती के लिये हर जगह की खाक छानते है।
जिससे हो हमे नुकसान ,ऐसी हर बात टालते है,
और जरा-सी बात पर ही ,दूसरो को मार डालते है।
कुछ लोग जब यहाँ अपनी लाइफ़-स्टोरी गढते है,
तभी कुछ लोग, औरों की लाइफ़-स्टॊरी पढते है।
यहाँ लोग अपने पापो का घडा दूसरो के सर फ़ोडते है,
और दूसरो की चादर खींचकर मुंह तक ओढते है।
जो कुछ हम करते है,या करने वाले होते है ,सsssब जानते है,
फ़िर भी अपने आप को क्यो??? नही पहचानते है ।
जाने कब??? वो दिन आयेंगे ,
जब हम अपने आप को बदल पायेंगे!!!!!!!!!!