चूँकि मै शिक्षा जगत से जुडी हूँ इसलिए ये बात कह रही हूँ----------कॄपया ध्यान दें--------
मेरे सामने हमेशा एक गम्भीर समस्या आई है शायद इसका सामना आप लोगों को भी करना पडता हो, इसलिए इस बात की ओर सबका ध्यान दिलाना चाहती हूँ---------
" हम अंग्रेजी स्कूलों में पढते हैं ,
इसलिए रोज जाने क्या-क्या नये शब्द गढते हैं ।
अंग्रेजी कुछ इस तरह बोलते हैं ---
और करते हैं भूल ,
जैसे--
यू नो--- जिस लडके ने कल डांस किया था---ही वाज सोSSS कूSSSल !!!
या फ़िर-----
कल जिस लडकी ने गाना गाया था ----शी वाज हाऊ ब्यूटीफ़ूSSSल !!!
ये तो थी पहली समस्या ...........
अब दूसरी की ओर बढते हैं,
और समस्या नम्बर दो की पायदान चढते हैं----
बिहारी, पंजाबी, मराठी, गुजराती, बंगाली, हरियाणवी,
आदि भाषाएं हम सुनते हैं ,
और चूँकि मध्य-प्रदेश के वासी हैं, तो
इस भाषा में पूछे गये प्रश्नों का उत्तर देने के लिए --
हिन्दी को ही चुनते हैं ,
और अन्त में ---तीसरी समस्या के रूप में आती है ,साऊथ की बारी --
और ये समस्या पहली दोनो समस्याओं से भी है भारी ,
वहाँ की भाषाएँ बहुत मधुर ,मीठी और सुरीली है ,
क्योंकि वे हमारी जड यानि संस्कॄत से जुडी हुई हैं ,
वहाँ के लोग जो भाषाएँ बोलते है ---
वो हमारे ऊपर से जाती है ,
और हमारी भाषा ,
उनके उपर से जाती है ,
जब हम आपस में मिलते है तो---
खडे रहते हैं दोनो आमने -सामने मुस्कुराते हुए ,
और एक दूसरे की बात समझ गये-- ये जताते हुए ,
तो आओ इन समस्याओं का हल निकालें,
हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा है---ये सबको दिखा दें,
हम सब कहीं भी रहें ,कैसे भी बोलें--पर
अन्याय, अत्याचार , और आतंकवाद से निपटने के इरादे से आगे आएँ ---
और जब भी मौका मिले ---राष्ट्रगीत ऊँचे परन्तु समवेत स्वर में गाएँ ---
इन तीनों समस्याओं को दूर करने का यही है एक उपाय ,ऐसी मुझे आशा है ---
क्योंकि आखिर "हिन्दी हमारी मातॄभाषा है ! ! ! ! !"
न गज़ल के बारे में कुछ पता है मुझे, न ही किसी कविता के, और न किसी कहानी या लेख को मै जानती, बस जब भी और जो भी दिल मे आता है, लिख देती हूँ "मेरे मन की"
Wednesday, December 23, 2009
Saturday, November 28, 2009
मुझे भी बहुत गुस्सा आता है उन पर .......................इसलिए.......क्या कोई मेरा सन्देश उन तक पहुँचायेगा ? ? ? ..
अरे कायर है ये आतंकी,
खुद तो जीते नही है,
दूसरो को भी नही जीने देते,
तभी तो हमेशा अकेले मरने से डरते है,
और मासूम लोगों का साथ चुनते हैं,
अगर हिम्मत है -तो जिन्दगी से लडकर दिखाएं,
फ़ाके मे अपने बच्चों को रोटी खिलाएं,
माँ -पिताजी को दवाई दिलवाएं,
और अपनी प्यारी बहना की शादी करवाएं,
इनके दिल में कोई प्यार नही होता,
इसलिए ये ममता,प्यार,मजहब को नही जानते,
अगर इनके दिल में प्यार होता,
तो ये औरों की नही,
अपने दिल की मानते,
और अपने अन्दर की आवाज को पहचानते ,
"अरे आतंकियों-- समय रहते सम्भल जाओ ,
अपने प्यार,ममता,और मजहब को पहचानो,
और अपनी जिन्दगी सफ़ल बनाओ !
तब देखना दुनिया तुम पर नाज करेगी,
और तुम्हारी मौत के बाद भी तुम्हे सुनेगी !!!"
खुद तो जीते नही है,
दूसरो को भी नही जीने देते,
तभी तो हमेशा अकेले मरने से डरते है,
और मासूम लोगों का साथ चुनते हैं,
अगर हिम्मत है -तो जिन्दगी से लडकर दिखाएं,
फ़ाके मे अपने बच्चों को रोटी खिलाएं,
माँ -पिताजी को दवाई दिलवाएं,
और अपनी प्यारी बहना की शादी करवाएं,
इनके दिल में कोई प्यार नही होता,
इसलिए ये ममता,प्यार,मजहब को नही जानते,
अगर इनके दिल में प्यार होता,
तो ये औरों की नही,
अपने दिल की मानते,
और अपने अन्दर की आवाज को पहचानते ,
"अरे आतंकियों-- समय रहते सम्भल जाओ ,
अपने प्यार,ममता,और मजहब को पहचानो,
और अपनी जिन्दगी सफ़ल बनाओ !
तब देखना दुनिया तुम पर नाज करेगी,
और तुम्हारी मौत के बाद भी तुम्हे सुनेगी !!!"
Wednesday, November 25, 2009
मुझे नही पता था.............क्या आप जानते हैं ? ? ?अगर हाँ तो क्या आपने किसी कॊ बताया ? ? ?
Monday, November 16, 2009
बाल दिवस पर फ़िर याद आया .....मुझे अपना बचपन.........
बाल दिवस के सन्दर्भ मे अपनी एक कविता जो मैने पहले भी (गर्मी की छुट्टियों मे ) पोस्ट की थी एक बार फ़िर याद दिलाना चाहती हूँ------
एक था बचपन..........
"खो गया वो "बचपन" ,
जिसमें था "सचपन" ,
गुम हो गई "गलियां" ,
गुम हो गए "आंगन " ,
अब न वो "पाँचे" ,
ना ही वो "कंचे" ,
न रही वो "पाली" ,
ना "डंडा -गिल्ली" ,
न वो "घर-घर का खेल" ,
न शर्ट को पकड़कर बनती "रेल" ,
अब मुन्नी न पहनती --वो "माँ की साड़ी" ,
ना मुन्नू दौडाता--"धागे की खाली रील की गाडी" ,
खो गए कही वो "छोटे -छोटे बर्तन खाली" ,
जिसमे झूठ - मूठ का खाना पकाती थी --मुन्नी ,लल्ली ,
थोडी देर के लिए पापा -मम्मी बन जाते थे रामू और डॉली ,
अब न आँगन में "फूलो की क्यारी" ,
उदास -सी बैठी है गुडिया प्यारी ,
खो गई अब वो गुडिया की सहेली "संझा",
और भाई का वो "पतंग और मांझा" ,
ना दिखती कही साईकिल पर "सब्जी की थैली" ,(सुबह )
सडssssप की आवाज वो "चाय की प्याली" , (शाम )
"छुपा-छुपी" का वो खेल खो गया ,
खेलने का समय भी देखो--- अब कम हो गया !!!!!!
और अब इसके आगे-------
खेल ही जीवन है?,
या जीवन ही खेल है?
कभी इस पहेली में न खुद को डुबोना,
मेरी एक बात सदा याद रखना---
खेलों को जीवन से कभी न खोना,
क्योंकि --जब हम बच्चे होते हैं,
तो चाहते हैं--बडा होना , और
बडे हो जाने पर दिल चाहता है--
फ़िर से एक बार बच्चा होना ! ! !
एक था बचपन..........
"खो गया वो "बचपन" ,
जिसमें था "सचपन" ,
गुम हो गई "गलियां" ,
गुम हो गए "आंगन " ,
अब न वो "पाँचे" ,
ना ही वो "कंचे" ,
न रही वो "पाली" ,
ना "डंडा -गिल्ली" ,
न वो "घर-घर का खेल" ,
न शर्ट को पकड़कर बनती "रेल" ,
अब मुन्नी न पहनती --वो "माँ की साड़ी" ,
ना मुन्नू दौडाता--"धागे की खाली रील की गाडी" ,
खो गए कही वो "छोटे -छोटे बर्तन खाली" ,
जिसमे झूठ - मूठ का खाना पकाती थी --मुन्नी ,लल्ली ,
थोडी देर के लिए पापा -मम्मी बन जाते थे रामू और डॉली ,
अब न आँगन में "फूलो की क्यारी" ,
उदास -सी बैठी है गुडिया प्यारी ,
खो गई अब वो गुडिया की सहेली "संझा",
और भाई का वो "पतंग और मांझा" ,
ना दिखती कही साईकिल पर "सब्जी की थैली" ,(सुबह )
सडssssप की आवाज वो "चाय की प्याली" , (शाम )
"छुपा-छुपी" का वो खेल खो गया ,
खेलने का समय भी देखो--- अब कम हो गया !!!!!!
और अब इसके आगे-------
खेल ही जीवन है?,
या जीवन ही खेल है?
कभी इस पहेली में न खुद को डुबोना,
मेरी एक बात सदा याद रखना---
खेलों को जीवन से कभी न खोना,
क्योंकि --जब हम बच्चे होते हैं,
तो चाहते हैं--बडा होना , और
बडे हो जाने पर दिल चाहता है--
फ़िर से एक बार बच्चा होना ! ! !
Wednesday, November 11, 2009
हम कहाँ के हैं मम्मी -------?????
ये एक बहुत बडा प्रश्न है मेरे लिए। दरअसल मै जहाँ रह रही हूँ,वहाँ कभी रहूँगी ऐसा मैने सपने मे भी नही सोचा था,मै जहाँ रहती थी वो जगह मजबूरी में मुझे छोड देनी पडी,जहाँ मै रहना चाहती थी वो जगह मुझे नही मिली,अब मै कहाँ रहूँगी ये मुझे नही मालूम,मै एकदम सच कह रही हूँ---
कल भाषा को लेकर जो खबर सुनने में आई तो सब कुछ याद आ गया अपने बारें में-------
मेरा जन्म मध्यप्रदेश के छोटे से गाँव खरगोन में हुआ,पढाई भी यहीं की। शादी हुई,---ससुराल नागपूर, (महाराष्ट्र) में है। हमारे पूर्वज गुजरात में रहते थे , कई पीढी पहले वे शायद रोजी रोटी की तलाश मे वहाँ से चले-------कुछ लोग मध्यप्रदेश मे, व कुछ लोग महाराष्ट्र में जाकर बस गये-------जो लोग मालवा,निमाड, मे आकर बसे उनके रीती रिवाज,बोली, खान-पान,पहनावा, सबमें यहाँ के रहन-सहन व बोली,खान-पान,पहनावा मिल गये ,जो लोग महाराष्ट्र की तरफ़ गये उन लोगो ने वहाँ का पहनावा, रहन-सहन खान-पान बोली सब अपना लिया हम लोगों का आपस में संपर्क भी बहुत कम रह गया।
मेरी शादी हमारे आपसी रिश्ते को मजबूती देने के उद्द्येश से की गयी थी। हमने एक-दूसरे कॊ बहुत समझा भाषा की परेशानी होते हुए भी आपसी सामंजस्य आजतक बरकरार रखा है ।जब मै पहली बार ससुराल गई तो शादी की पार्टी मे बधाई के साथ एक सवाल से मेरा सामना हुआ था-----तुम्हे मराठी नही आती ?अब भला मै क्या जबाब देती? मगर ये सवाल कुछ इस तरह पूछा गया कि मै आज तक भी मराठी नही बोल पाई , मेरी सासुजी मराठी मे कुछ पूछ्ती हैं तो मै हिन्दी मे जबाब देती हूँ और जब मै कुछ पूछ्ती हूँ तो वे मराठी में जबाब देती है हम दोनो को ही आजतक बात करने और समझने में कोइ परेशानी नही आई है|
जब शादी हुई थी पतिदेव आसनसोल( बंगाल ) में कार्यरत थे, तीन वर्ष बाद तबादला हुआ----हम राँची (बिहार) में आ गये। ओफ़िस के कार्य से पति गोहाटी( आसाम) गये थे, वहाँ से किसी कार्यवश शिलोंग (मेघालय ) जाना पडा-----रास्ते में एक्सीडेन्ट हॊ गया-------बहुत गम्भीर चोट आई-----फ़िर गोहाटी, आसाम के बहुत बडे न्यूरोलॊजी अस्पताल में दो महीने कोमा मे रहने के बाद(याददाश्त चली गई थी) चिकित्सकॊ के भरसक प्रयास के बाद, टूटे हाथ का ओपरेशन करवाने तब बाम्बे( महाराष्ट्र) वापस आये----दस बारह दिनॊं के बाद घर नागपूर(महाराष्ट्र) में होने के कारण नागपूर आना तय किया। दो - ढाई माह तक CIIMS (अस्पताल का नाम) में रखने के बाद चिकित्सको ने घर पर ही रखने की सलाह दी सो घर ले आये । कुछ परिस्थितियाँ ऐसी बनी की वापस खरगोन लौटना पडा। अथक प्रयासों के बाद भी उन्हें बचाया न जा सका ।आज इस बात को १४ वर्ष बीत चुके हैं।
ये हादसा हुआ तो जिन लोगो ने मेरी व हमारे परिवार की मदद की वे भारत के हर प्रान्त के सदस्य थे मै उन सब की आभारी हूँ ,एक-दूसरे की भाषा न जानने पर भी सहयोग भरपूर मिला, हम एक दूसरे की सारी बातें भी समझ गये।
मुझे आज भी याद है क्रष्ण्न साहब ने मुझे इस हादसे की खबर सुनाई थी ,सिंग जी के यहाँ मै दोनो बच्चो---५वर्षीय बेटी पल्लवी और ७वर्षीय बेटे वत्सल को अकेले छोड्कर शाशिदादा(मेरे कजिन जेठजी) के साथ पहली बार हवाई यात्रा कर कलकत्ता पहूँची थी ,वहाँ से दूसरे दिन ही उडान थी गौहाटी के लिये इसलिए दास साहब के घर मुझे रुकवाया गया था वहाँ मेरी दादी और नानी जैसी उनकी माँजी और बुआजी रात भर मेरे सिर पर हाथ फ़ेरते हुए मेरे सिरहाने जागते बैठी रही। सुबह इनके साहब रामचन्द्रन साहब भी हमारे साथ गौहाती के लिए रवाना हुए थे-----जब मै होस्पिटल मे पहूंची तो डाक्टर चक्रवर्ती सीढी पर ही अपने साथियो के साथ मेरी राह देख रहे थे ।रात गेस्ट हाऊस मे आने पर जब घबराकर मेरी रुलाई रोके नही रुक रही थी तक २ बजे रात में गेस्ट हाउस मे काम करने वाले पूर्वोत्तर के भाईयो ने मुझे चाय बनाकर पिलाई, वे भी मेरे साथ जागते रहे थे । सुबह एक कार ओफ़िस की ओर से अस्पताल आने -जाने के लिए व दवाई वगैरा की व्यवस्था के लिए दी गई। उसके ड्राईवर विजय यादव कॊ मै मरते दम तक नही भूल सकती दिन रात जागकर विजय ने हमारे लिए जो कुछ भी किया उसके लिए मै उसे नमन करना चाहती हूँ । विजय जब चौथी कक्षा में पढता था ,बिहार के एक गाँव से भागकर वहाँ पहूंचा था,उसने हमसे पारिवारिक रिश्ता~ कायम किया था | वहाँ जो दो बडे साहब मुझसे मिले वे चालना साहब पंजाब व वर्मा साहब उत्तरप्रदेश के रहने वाले थे , दो माह तक इन दोनो परिवारों ने मेरा, मेरी माँ,भाई सास-ससु्र जी का अपने परिवार के सदस्यों की तरह ध्यान रखा । खैर !!!
बात ये नही थी कि मेरे साथ क्या हुआ था बात ये है कि जब ये हादसा हुआ तो मेरे बच्चे बहुत छोटे थे ,वे आसनसोल में बंगाली भाषा समझते थे,फ़िर बिहारी भाषा का प्रभाव उन पर पडा।.( इस बीच करीब चार माह तक वे स्कूल नही जा पाये थे) परिस्थितिवश वे नागपूर में करीब डेढ साल तक रहे वहाँ मराठी से सामना हुआ फ़िर खरगोन यहाँ गुजराती -----जिसमे कि स्थानीय भाषा का प्रयोग ज्यादा किया जाता है, समझने की कोशीश करते रहे .............दोनो की पढाई अंग्रेजी माध्यम से हुई -------आज बेटा नोइडा में है उसका बोलने का लहजा वहीं के लोगॊ की तरह का है परन्तु सारी भाषाओ जिनसे उसका सामना हुआ समझता है , व बेटी पूना में ग्रेजुएशन करने के बाद बंगलोर में है मराठी अच्छी तरह से बोल लेती है और आश्चर्य नही होगा कि थोडे दिनॊ में दक्षिण भारतीय भाषाओं कॊ थोडा समझने लगे ।
आज भी मुझसे जब ये प्रश्न पूछा जाता है कि आप कहाँ के है? तो मै खुद सोच में पड जाती हूँ कहती हूँ वैसे तो हम गुजराती ब्राह्नण हैं मगर ससुराल में मराठी रिति-रिवाज माने जाते हैं,पर मुझे वहाँ रहने का मौका नही मिला, मै बंगाल,बिहार मे महाराष्ट्र से ज्यादा रही, लेकिन अभी मध्यप्रदेश मे रहती हूँ ...........अगले २-३ सालो मे बच्चों की नौकरी जहाँ लगेगी वहाँ रहूँगी इसलिए मैं कहाँ की हूँ????पता नहीं ..................
और अब बच्चे बडे हो गये हैं ये सवाल उनके सामने भी आयेगा और वे फ़ोन पर मुझसे पूछेंगे हम कहाँ के हैं मम्मी ?????
कल भाषा को लेकर जो खबर सुनने में आई तो सब कुछ याद आ गया अपने बारें में-------
मेरा जन्म मध्यप्रदेश के छोटे से गाँव खरगोन में हुआ,पढाई भी यहीं की। शादी हुई,---ससुराल नागपूर, (महाराष्ट्र) में है। हमारे पूर्वज गुजरात में रहते थे , कई पीढी पहले वे शायद रोजी रोटी की तलाश मे वहाँ से चले-------कुछ लोग मध्यप्रदेश मे, व कुछ लोग महाराष्ट्र में जाकर बस गये-------जो लोग मालवा,निमाड, मे आकर बसे उनके रीती रिवाज,बोली, खान-पान,पहनावा, सबमें यहाँ के रहन-सहन व बोली,खान-पान,पहनावा मिल गये ,जो लोग महाराष्ट्र की तरफ़ गये उन लोगो ने वहाँ का पहनावा, रहन-सहन खान-पान बोली सब अपना लिया हम लोगों का आपस में संपर्क भी बहुत कम रह गया।
मेरी शादी हमारे आपसी रिश्ते को मजबूती देने के उद्द्येश से की गयी थी। हमने एक-दूसरे कॊ बहुत समझा भाषा की परेशानी होते हुए भी आपसी सामंजस्य आजतक बरकरार रखा है ।जब मै पहली बार ससुराल गई तो शादी की पार्टी मे बधाई के साथ एक सवाल से मेरा सामना हुआ था-----तुम्हे मराठी नही आती ?अब भला मै क्या जबाब देती? मगर ये सवाल कुछ इस तरह पूछा गया कि मै आज तक भी मराठी नही बोल पाई , मेरी सासुजी मराठी मे कुछ पूछ्ती हैं तो मै हिन्दी मे जबाब देती हूँ और जब मै कुछ पूछ्ती हूँ तो वे मराठी में जबाब देती है हम दोनो को ही आजतक बात करने और समझने में कोइ परेशानी नही आई है|
जब शादी हुई थी पतिदेव आसनसोल( बंगाल ) में कार्यरत थे, तीन वर्ष बाद तबादला हुआ----हम राँची (बिहार) में आ गये। ओफ़िस के कार्य से पति गोहाटी( आसाम) गये थे, वहाँ से किसी कार्यवश शिलोंग (मेघालय ) जाना पडा-----रास्ते में एक्सीडेन्ट हॊ गया-------बहुत गम्भीर चोट आई-----फ़िर गोहाटी, आसाम के बहुत बडे न्यूरोलॊजी अस्पताल में दो महीने कोमा मे रहने के बाद(याददाश्त चली गई थी) चिकित्सकॊ के भरसक प्रयास के बाद, टूटे हाथ का ओपरेशन करवाने तब बाम्बे( महाराष्ट्र) वापस आये----दस बारह दिनॊं के बाद घर नागपूर(महाराष्ट्र) में होने के कारण नागपूर आना तय किया। दो - ढाई माह तक CIIMS (अस्पताल का नाम) में रखने के बाद चिकित्सको ने घर पर ही रखने की सलाह दी सो घर ले आये । कुछ परिस्थितियाँ ऐसी बनी की वापस खरगोन लौटना पडा। अथक प्रयासों के बाद भी उन्हें बचाया न जा सका ।आज इस बात को १४ वर्ष बीत चुके हैं।
ये हादसा हुआ तो जिन लोगो ने मेरी व हमारे परिवार की मदद की वे भारत के हर प्रान्त के सदस्य थे मै उन सब की आभारी हूँ ,एक-दूसरे की भाषा न जानने पर भी सहयोग भरपूर मिला, हम एक दूसरे की सारी बातें भी समझ गये।
मुझे आज भी याद है क्रष्ण्न साहब ने मुझे इस हादसे की खबर सुनाई थी ,सिंग जी के यहाँ मै दोनो बच्चो---५वर्षीय बेटी पल्लवी और ७वर्षीय बेटे वत्सल को अकेले छोड्कर शाशिदादा(मेरे कजिन जेठजी) के साथ पहली बार हवाई यात्रा कर कलकत्ता पहूँची थी ,वहाँ से दूसरे दिन ही उडान थी गौहाटी के लिये इसलिए दास साहब के घर मुझे रुकवाया गया था वहाँ मेरी दादी और नानी जैसी उनकी माँजी और बुआजी रात भर मेरे सिर पर हाथ फ़ेरते हुए मेरे सिरहाने जागते बैठी रही। सुबह इनके साहब रामचन्द्रन साहब भी हमारे साथ गौहाती के लिए रवाना हुए थे-----जब मै होस्पिटल मे पहूंची तो डाक्टर चक्रवर्ती सीढी पर ही अपने साथियो के साथ मेरी राह देख रहे थे ।रात गेस्ट हाऊस मे आने पर जब घबराकर मेरी रुलाई रोके नही रुक रही थी तक २ बजे रात में गेस्ट हाउस मे काम करने वाले पूर्वोत्तर के भाईयो ने मुझे चाय बनाकर पिलाई, वे भी मेरे साथ जागते रहे थे । सुबह एक कार ओफ़िस की ओर से अस्पताल आने -जाने के लिए व दवाई वगैरा की व्यवस्था के लिए दी गई। उसके ड्राईवर विजय यादव कॊ मै मरते दम तक नही भूल सकती दिन रात जागकर विजय ने हमारे लिए जो कुछ भी किया उसके लिए मै उसे नमन करना चाहती हूँ । विजय जब चौथी कक्षा में पढता था ,बिहार के एक गाँव से भागकर वहाँ पहूंचा था,उसने हमसे पारिवारिक रिश्ता~ कायम किया था | वहाँ जो दो बडे साहब मुझसे मिले वे चालना साहब पंजाब व वर्मा साहब उत्तरप्रदेश के रहने वाले थे , दो माह तक इन दोनो परिवारों ने मेरा, मेरी माँ,भाई सास-ससु्र जी का अपने परिवार के सदस्यों की तरह ध्यान रखा । खैर !!!
बात ये नही थी कि मेरे साथ क्या हुआ था बात ये है कि जब ये हादसा हुआ तो मेरे बच्चे बहुत छोटे थे ,वे आसनसोल में बंगाली भाषा समझते थे,फ़िर बिहारी भाषा का प्रभाव उन पर पडा।.( इस बीच करीब चार माह तक वे स्कूल नही जा पाये थे) परिस्थितिवश वे नागपूर में करीब डेढ साल तक रहे वहाँ मराठी से सामना हुआ फ़िर खरगोन यहाँ गुजराती -----जिसमे कि स्थानीय भाषा का प्रयोग ज्यादा किया जाता है, समझने की कोशीश करते रहे .............दोनो की पढाई अंग्रेजी माध्यम से हुई -------आज बेटा नोइडा में है उसका बोलने का लहजा वहीं के लोगॊ की तरह का है परन्तु सारी भाषाओ जिनसे उसका सामना हुआ समझता है , व बेटी पूना में ग्रेजुएशन करने के बाद बंगलोर में है मराठी अच्छी तरह से बोल लेती है और आश्चर्य नही होगा कि थोडे दिनॊ में दक्षिण भारतीय भाषाओं कॊ थोडा समझने लगे ।
आज भी मुझसे जब ये प्रश्न पूछा जाता है कि आप कहाँ के है? तो मै खुद सोच में पड जाती हूँ कहती हूँ वैसे तो हम गुजराती ब्राह्नण हैं मगर ससुराल में मराठी रिति-रिवाज माने जाते हैं,पर मुझे वहाँ रहने का मौका नही मिला, मै बंगाल,बिहार मे महाराष्ट्र से ज्यादा रही, लेकिन अभी मध्यप्रदेश मे रहती हूँ ...........अगले २-३ सालो मे बच्चों की नौकरी जहाँ लगेगी वहाँ रहूँगी इसलिए मैं कहाँ की हूँ????पता नहीं ..................
और अब बच्चे बडे हो गये हैं ये सवाल उनके सामने भी आयेगा और वे फ़ोन पर मुझसे पूछेंगे हम कहाँ के हैं मम्मी ?????
Sunday, November 8, 2009
मेरी पहली ( पॉडकास्ट) कविता .............
पिछले दिनों मेरे स्कूल में एक नवम्बर से चार नवम्बर तक सीबीएसई नॅशनल " Taekwondo "चेम्पियनशिप आयोजित की गई थी |पहली बार इतने बड़े स्तर पर कोई आयोजन किया गया था| इस आयोजन को लेकर हम सब बहुत उत्साहित थे | ईस्ट, वेस्ट, नार्थ वन, नार्थ टू व साऊथ झोन के करीब चार सौ बच्चों ने इस प्रतियोगिता में भाग लिया| तीस अक्टोबर से ही टीमो का आना शुरू हो गया था, इकतीस तारीख़ की शाम को सभी प्रशिक्षको की मीटिंग रखी गई थी,चूँकि बहती गंगा में सभी हाथ धोना चाहते है, इसीलिए हमने भी इसी कार्यक्रम के साथ हमारा वार्षिकोत्सव का कार्यक्रम निपटाना उचित समझा |एक तारीख़ की सुबह औपचारिक कार्यक्रम के पश्चात प्रतियोगिता का शुभारम्भ हुआ ,सभी प्रतियोगियों ने खेल भावना के साथ खेलने की शपथ ली और उसका पालन भी किया |शाम को वार्षिकोत्सव के अर्न्तगत सांस्कृतिक कार्यक्रम रखा गया था ,सभी आयु वर्ग के बच्चों ने शानदार प्रस्तुति दी ,खासकर ड्रम व बासुरी की जुगलबंदी तथा सभी प्रान्तों के डांस को मिलाकर बने फ्यूजन डांस की प्रस्तुति ने सबका मन मोह लिया |विजेताओ को पुरस्कार वितरित किए गए |
दूसरे व तीसरे दिन सभी मुकाबले समयानुसार दो सत्रों में सम्पन्न हुए रात्रि को सबकी थकान दूर करने के लिए हल्का फुल्का मनोरंजन कार्यक्रम किया गया जिसमे प्रतियोगी बच्चों ने भी गानों व न्रत्यो की अनुपम प्रस्तुति दी |इन कार्यक्रमों में हम सब शिक्षको ने भी बढ़चढ़कर हिस्सा लिया और इन बच्चों के साथ गाना गाकर व नृत्य करके अपना बचपन जिया, दूसरे दिन मैंने भी एक गाना बच्चों की पसंद का गाया.........................
चूँकि कार्यक्रम में १९ वर्ष आयुवर्ग के बच्चे भी थे इसलिए मैंने तीसरे दिन अपनी कविता "खेल-खेल में "सुनाई ,कविता बहुत पसंद की गई और कई लोगो ने उसकी फोटोप्रति लेने की इच्छा जताई, मुझे बहुत खुशी हुई और उन सबसे वादा किया की अपने ब्लॉग पर मै इसे पॉडकास्ट करुँगी और इसीलिए ये मेरी कविता पॉडकास्ट के रूप में ...........................
चौथे व अन्तिम दिन चार नवम्बर को सभी के सहयोग से कार्यक्रम का सफलता पूर्वक समापन हुआ| सभी विजेताओ को मेरी ओर से बधाई ..........
दूसरे व तीसरे दिन सभी मुकाबले समयानुसार दो सत्रों में सम्पन्न हुए रात्रि को सबकी थकान दूर करने के लिए हल्का फुल्का मनोरंजन कार्यक्रम किया गया जिसमे प्रतियोगी बच्चों ने भी गानों व न्रत्यो की अनुपम प्रस्तुति दी |इन कार्यक्रमों में हम सब शिक्षको ने भी बढ़चढ़कर हिस्सा लिया और इन बच्चों के साथ गाना गाकर व नृत्य करके अपना बचपन जिया, दूसरे दिन मैंने भी एक गाना बच्चों की पसंद का गाया.........................
चौथे व अन्तिम दिन चार नवम्बर को सभी के सहयोग से कार्यक्रम का सफलता पूर्वक समापन हुआ| सभी विजेताओ को मेरी ओर से बधाई ..........
Wednesday, October 14, 2009
भजन....
जीवन की एक कडवी सचाई.................
मीराबाई का एक भजन...............
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मीराबाई का एक भजन...............
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