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( क्योंकि इसके बाद ही मै ये सोच पाई हूँ )---
हर कोई बस अपनी ही किस्मत बदलना चाहता है ,
सिर्फ़ अपना घर ही बसाता है भले दूसरों का उजड जाए ,
छोटी-सी चादर भी अगर सबसे बाँट ले कोई ,
तो क्या मजाल किसी की कि कोई भूख से मर जाए ।
गर काटा न होता किसी ने बेवजह पेडों को अब तक,
हरी होती वसुन्धरा- पानी के लिए कोई न लड पाए ।
बुरा सोचने से किसी का- भला कब हुआ है आज तक ?,
गर अच्छा सोचें जो इन्सां- तो सबका भला न हो जाए ?
ठान ले जो धनिया अपनी बेटी को पढाना ,
बेटी के साथ ही उसकी- सारा गाँव भी पढ जाए ।
ख्ह्वाहिश है मेरी- राह के पत्त्थर हटाने की ,
इस उम्मीद में कि मेरे बाद कोई ठोकर न खा जाए............
फ़ितरत इन्सान की -------इन्सान खुद बनाता है ........
सब सकारात्मक सोचें- तो शायद ये दुनिया बदल जाए.........
दुनिया ऐसी ही बदल सकती है जब सब अच्छा सोचें और सकारात्मक भी ..हर पंक्ति लाज़वाब..बढ़िया रचना बधाई
ReplyDeleteफ़ितरत इन्सान की -------इन्सान खुद बनाता है
ReplyDeleteसब सकारात्मक सोचें- तो शायद ये दुनिया बदल जाए
आप की यह कविता सकारात्मक सोच लिये है, बहुत सुंदर लगी धन्यवाद
Archana ji maan gaye mere vyanga ka kitna sateek hal sujhaya...bas dua hai ki meri rachna chod aapki rachna dil me basa lein to duniya ka manjar hi badal jaye...
ReplyDeleteshukriya apni kalam se mujhe itna samman dene ke liye...
फ़ितरत इन्सान की -------इन्सान खुद बनाता है
ReplyDeleteठान ले जो धनिया अपनी बेटी को पढाना ,
ReplyDeleteबेटी के साथ ही उसकी- सारा गाँव भी पढ जाए ।
रोशनी की हद में आज भी तो नहीं है धनिया
बेहतरीन रचना
बहुत बढ़िया!
ReplyDeleteफितरत इंसान की के साथ अच्छा सामंजस्य बिठाया है आपने ! लेकिन बुरा मत मानियेगा 'फितरत इंसान की' बेहतरीन रचना बनी है !मैं तो दिलीप साहब का कायल हो गया हूँ
ReplyDeleteउत्कृष्ट ।
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