बोले रे पपिहरा ,पपिहरा
नित घन बरसे ,नित मन प्यासा
नित मन प्यासा.नित मन तरसे
पलको पर एक बूँद सजाए
बैठी हूँ सावन ले जाये जाए पी के देस में बरसे
नित मन प्यासा.नित मन तरसे
सावन जो संदेसा लाये मेरी आँख से मोती पाए
दान मिले बाबुल के घर से नित मन प्यासा.नित मन तरसेकठिन से कठिन प्रयास करना .........जुझारू प्रवृत्ति को दर्शाता है ...............................अंत में सबका भला होता है ........(ऐसा अगर किसी ने ना कहा हो तो मेरा समझे )............
सुनिए मेरी आवाज में ...........
वाणी जयराम के स्वर में यह गीत बहुत पहले सुना करता था! आपने भी इसे बहुत ही मधुरता के साथ गाया है!
ReplyDelete--
इस गीत को सुनवाने के लिए!
आपका आभार!
bahut hi madhurta se gaya...
ReplyDeleteघर के नेट ख़राब है.. लैब में सुन नहीं सकता.. पर इतिहास देख कर कह सकता हूँ कि आपने गाया तो अच्छा ही गाया होगा.. ठीक होने के बाद ही सुन पाऊंगा..
ReplyDeleteआपने इसे बहुत मधुरता के साथ गाया है ...
ReplyDeleteमस्त गीत है,सुबह सुबह मन प्रसन्न हो गया।
ReplyDeleteआभार
vah
ReplyDeleteखरगोश का संगीत राग रागेश्री
ReplyDeleteपर आधारित है जो कि खमाज
थाट का सांध्यकालीन राग है, स्वरों में
कोमल निशाद और बाकी स्वर शुद्ध लगते हैं, पंचम इसमें वर्जित है,
पर हमने इसमें अंत में पंचम का प्रयोग भी किया
है, जिससे इसमें राग बागेश्री भी झलकता है.
..
हमारी फिल्म का संगीत वेद
नायेर ने दिया है... वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट से
मिलती है...
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