हा हा हा.....ये शीर्षक है जो सब कुछ बता रहा है....जो कहीं और नही छपा है...मेरे लिए पहला मौका है ..सुनिए यहाँ---
विश्वास न हों तो देख लें---( यहाँ किसी और दिन छाप दूँगी )
ये रही लिन्क-----
http://www.garbhanal.com/Garbhanal%2054th.pdf
अगर देखने जा रहे हों तो आकर बताएं..पता तो चले कितने लोग विश्वास नहीं करते मुझ पर.....
विश्वास न हों तो देख लें---( यहाँ किसी और दिन छाप दूँगी )
ये रही लिन्क-----
http://www.garbhanal.com/Garbhanal%2054th.pdf
अगर देखने जा रहे हों तो आकर बताएं..पता तो चले कितने लोग विश्वास नहीं करते मुझ पर.....
बधाई!
ReplyDeletebadhai
ReplyDeleteCongrats :)
ReplyDeleteगर्भनाल में छपने पर बधाई!
ReplyDeleteमार्मिक कहानी, ईश्वर सबको सद्बुद्धि दे।
ReplyDeleteबधाई बधाई बधाई बधाई बधाई
ReplyDeleteआप सबका बहुत बहुत आभार...
ReplyDeleteनाईस नाईस बधाई जी
ReplyDeleteगर्भनाल प्रवासी पत्रिका हिंदी साहित्य की एक बहुत अच्छी सार्थक पत्रिका है ..मैं जब समय मिलता है जरुर पढ़ती हूँ.. मुझे भी उसमें अपनी रचना छपने पर ख़ुशी हुयी ...आपकी रचना बहुत अच्छी लगी ...हार्दिक शुभकामना
ReplyDeletebahdiyan ji badhaiya, mithai ke liye nahi kahunga :)
ReplyDeleteपहले तो,बधाई! मर्मभेदती कथा !!
ReplyDeleteकहानी छपने पर बधाई! मार्मिक लघुकथा।
ReplyDeleteपत्रिका में छपने के लिए बहुत बहुत बधाई..वाचन सुनकर आनन्द आ गया.
ReplyDeleteमार्मिक कथा.
आपई कलम से और इसी तरह की आवाज सुनने की इच्छा है...पत्रिकाओं के माध्यम से. :)
शुभकामनाएँ.
I like your blog . We wish you all the best .
ReplyDeleteshashi
Liked the story . Is it a true story .
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