Thursday, May 26, 2011

हाथों की चंद लकीरें ........

अपने महबूब का हर लफ्ज़ याद आता है ,
याद आता है- हर पल, हर लम्हा ,
हर लम्हा वो,जो बिताया था साथ,
सिर्फ साथ ही नहीं ,थामे हाथ में हाथ,
हाथों में अब फिर से नजरें थमी हैं,
लगता है इनमें लकीरों की कमी है ...

13 comments:

  1. chaah ho prabal to lakiren ubhar aayengi...

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  2. बहुत खूब ..रश्मि जी की बात पर गौर कीजिये ..

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  3. उम्र के साथ सारी लकीरें गायब हो जाती हैं।

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  4. वाह ...बहुत खूब कहा है आपने ।

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  5. वाह ……………बहुत सुन्दर्।

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  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति| धन्यवाद|

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  7. लकीरें सिर्फ उलझाव पैदा करती हैं... तुम जैसी बहादुर औरतें लकीरों के लिखे को बदलने का जूनून रखती हैं!!

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  8. जीवन के अनुभूत सत्य को सामने लाती पंक्तियाँ ...आपका आभार

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  9. ये यादें ही तो हैं जो बची रह जाती हैं...

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  10. Today is documentation indisposed, isn't it?

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  11. यादें मधुर एहसासों के. सुंदर रचना.

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