Saturday, July 23, 2011

बारिशों के मौसम में...

(चित्र गूगल से साभार)
(दोनों में से  एक  चुनें व फ़िर पढ़ें कविता)



सावन का महीना
झमाझम बारिश
मूँदी आँखों मे
ढेरों ख्वाहिश
खोल दूं जो आँखें तो
टूटते सपनें हैं
बारिश और सपनों की
कैसी है ये साजिश.....







13 comments:

  1. तुम इसे साज़िश क्यों समझती हो.. एक बार इसे आँख मिचौनी का खेल समझकर देखो.. एक नया अर्थ मिलेगा!!
    और तब जाकर लगेगा कि दिल जो न सका वही राज़दिल कहने की शाम आई है!!

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  2. झमाझम वारिश में बच्चों की तरह झूम कर देखें .....
    शुभकामनायें आपको !

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  4. दीदी,
    यथार्थ तो सपनों से भी सुन्दर होते हैं यदि उन्हें सपनों के मानिंद देखा जाए तो और भी खूबसूरत लगते हैं.पहली बार आपकी लिखी कोई रचना पढ़ रहा हूँ.कोमल अहसास में छिपी तल्खी बाहर झांकती हुई प्रतीत होती है.गर्म तपती दोपहरी की वो पहली बूंद याद करें जो सबको हर्षा जाती है,ठंडक का अहसास कराती है और ढ़ेरों उम्मीद जगा जाती है.मन के भावों को पूरी ईमानदारी से उजागर करती रचना.

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  5. इस कविता का तो जवाब नहीं !

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  6. बहुत सुन्दर्।

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  7. बहुत सुन्दर .

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  8. वाह ... बारिश का मज़ा ... दुबई की चिलचिलाती गर्मी मैं मिली ठंडक ..

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