तुम इसे साज़िश क्यों समझती हो.. एक बार इसे आँख मिचौनी का खेल समझकर देखो.. एक नया अर्थ मिलेगा!! और तब जाकर लगेगा कि दिल जो न सका वही राज़दिल कहने की शाम आई है!!
दीदी, यथार्थ तो सपनों से भी सुन्दर होते हैं यदि उन्हें सपनों के मानिंद देखा जाए तो और भी खूबसूरत लगते हैं.पहली बार आपकी लिखी कोई रचना पढ़ रहा हूँ.कोमल अहसास में छिपी तल्खी बाहर झांकती हुई प्रतीत होती है.गर्म तपती दोपहरी की वो पहली बूंद याद करें जो सबको हर्षा जाती है,ठंडक का अहसास कराती है और ढ़ेरों उम्मीद जगा जाती है.मन के भावों को पूरी ईमानदारी से उजागर करती रचना.
bahut sunder......
ReplyDeleteतुम इसे साज़िश क्यों समझती हो.. एक बार इसे आँख मिचौनी का खेल समझकर देखो.. एक नया अर्थ मिलेगा!!
ReplyDeleteऔर तब जाकर लगेगा कि दिल जो न सका वही राज़दिल कहने की शाम आई है!!
वाह!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया!
झमाझम वारिश में बच्चों की तरह झूम कर देखें .....
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
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ReplyDeleteदीदी,
ReplyDeleteयथार्थ तो सपनों से भी सुन्दर होते हैं यदि उन्हें सपनों के मानिंद देखा जाए तो और भी खूबसूरत लगते हैं.पहली बार आपकी लिखी कोई रचना पढ़ रहा हूँ.कोमल अहसास में छिपी तल्खी बाहर झांकती हुई प्रतीत होती है.गर्म तपती दोपहरी की वो पहली बूंद याद करें जो सबको हर्षा जाती है,ठंडक का अहसास कराती है और ढ़ेरों उम्मीद जगा जाती है.मन के भावों को पूरी ईमानदारी से उजागर करती रचना.
इस कविता का तो जवाब नहीं !
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत
ReplyDeleteबहुत सुन्दर्।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया!
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर .
ReplyDeleteवाह ... बारिश का मज़ा ... दुबई की चिलचिलाती गर्मी मैं मिली ठंडक ..
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