किस्मत की लकीर
किताबों में नहीं होती
लिखी होती है सिर्फ़ हाथों में
और हाथ करते हैं विश्वास
मेहनत पर
खुद की लकीरों को नहीं मानते
करते हैं दिन रात काम
दिलाते हैं मुकाम
तुम्हें और मुझे
तुम और मैं
और फ़िर वही
बारिश की शाम
उठा लेते हैं
एक -एक जाम
अपनी अपनी किस्मत के नाम
और खीच देते हैं लकीर
अपने और अपनों के बीच
उछालकर एक -दूसरे पर कीच ......
-अर्चना
किताबों में नहीं होती
लिखी होती है सिर्फ़ हाथों में
और हाथ करते हैं विश्वास
मेहनत पर
खुद की लकीरों को नहीं मानते
करते हैं दिन रात काम
दिलाते हैं मुकाम
तुम्हें और मुझे
तुम और मैं
और फ़िर वही
बारिश की शाम
उठा लेते हैं
एक -एक जाम
अपनी अपनी किस्मत के नाम
और खीच देते हैं लकीर
अपने और अपनों के बीच
उछालकर एक -दूसरे पर कीच ......
-अर्चना
सुंदर मनोभावों की अच्छी अभिव्यक्ति है जी
ReplyDeletelakeeron pe kuchh maine bhi likha tha didi.... post karta hoon:)
ReplyDeleteये हाथ की लकीरें
ReplyDeleteछपी होती है
मकड़े के जालों जैसी
हथेली पर
जिसमे रेखाएं
होती है अहम्
जिनके मायने
होतें हैं ..हर बार
अलग अलग
एक छोटा सा क्रास
एक नन्हा सा तारा
बदल देता है
उनके अर्थ
या फिर
लकीरों का
मोटापा या दुबलापन
भी बढ़ा देती है
हमारी परेशानी
चन्द्र बुध
शुक्र बृहस्पति
जैसे ग्रहों को
इन जालों में समेटे
हम लड़ते हैं ..
ढूंढते हैं खुशियाँ
इन लकीरों में ही
कभी चमकता दिखता
भाग्योदय
तो कभी ..प्रकोप
शनि दशा का !!!!!!
और हम
रह जाते हैं...
मकड़े की तरह
फंसे इन लकीरों में..
इन जालों की तरह
उकेरी हुए लकीरों
को अपने वश में
करने हेतु
हम करते हैं धारण
लाल हरे पीले
चमकदार
महंगे-सस्ते पत्थर
अपनी औकात को देखते हुए
बंध के
रह जाते हैं..
पर..किन्तु परन्तु में
हो जाते हैं
लकीर के फ़कीर
वहीँ जिसने ढूढी
एक और राह ..
तो फिर
जहाँ चाह वहीँ राह..
इन लकीरों से
भरी हथेलियों को
भींच लिया
मुठी में
एक इमानदार
कोशिश ..बस इतना ही
शायद बन जाय शहंशाह
तकदीर से ऊपर
उठ कर
मेहनत का बादशाह..........!!!!
जीवन कर्मों का ही तो प्रतिबिम्ब है।
ReplyDeleteवैसे तो किसी भी काम में सफलता पाने के लिए मेहनत और किस्मत दोनों की ही अहिमीयत होती है मगर मेहनत करने वाले हाथ अक्सर अपनी किस्मत खुद ही लिखा करते है। सार्थक रचना
ReplyDeleteकिस्मत की लकीरे होती नहीं बनायी जाती हैं
ReplyDeleteहाथ की लकीरे ...पल पल बदलती रहती हैं
ReplyDeleteहाथ खुद की लकीरों को नहीं मानते.... वाह!
ReplyDeleteसुन्दर रचना...