Monday, June 11, 2012

किस्मत की लकीर

किस्मत की लकीर
किताबों में नहीं होती
लिखी होती है सिर्फ़ हाथों में
और हाथ करते हैं विश्वास
मेहनत पर
खुद की लकीरों को नहीं मानते
करते हैं दिन रात काम
दिलाते हैं मुकाम
तुम्हें और मुझे
तुम और मैं
और फ़िर वही
बारिश की शाम
उठा लेते हैं
एक -एक जाम
अपनी अपनी किस्मत के नाम 

और खीच देते हैं लकीर
अपने और अपनों के बीच

उछालकर एक -दूसरे पर कीच ......
-अर्चना

8 comments:

  1. सुंदर मनोभावों की अच्‍छी अभि‍व्‍यक्‍ति‍ है जी

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  2. lakeeron pe kuchh maine bhi likha tha didi.... post karta hoon:)

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  3. ये हाथ की लकीरें
    छपी होती है
    मकड़े के जालों जैसी
    हथेली पर
    जिसमे रेखाएं
    होती है अहम्
    जिनके मायने
    होतें हैं ..हर बार
    अलग अलग
    एक छोटा सा क्रास
    एक नन्हा सा तारा
    बदल देता है
    उनके अर्थ
    या फिर
    लकीरों का
    मोटापा या दुबलापन
    भी बढ़ा देती है
    हमारी परेशानी


    चन्द्र बुध
    शुक्र बृहस्पति
    जैसे ग्रहों को
    इन जालों में समेटे
    हम लड़ते हैं ..
    ढूंढते हैं खुशियाँ
    इन लकीरों में ही
    कभी चमकता दिखता
    भाग्योदय
    तो कभी ..प्रकोप
    शनि दशा का !!!!!!
    और हम
    रह जाते हैं...
    मकड़े की तरह
    फंसे इन लकीरों में..
    इन जालों की तरह
    उकेरी हुए लकीरों
    को अपने वश में
    करने हेतु
    हम करते हैं धारण
    लाल हरे पीले
    चमकदार
    महंगे-सस्ते पत्थर
    अपनी औकात को देखते हुए
    बंध के
    रह जाते हैं..
    पर..किन्तु परन्तु में
    हो जाते हैं
    लकीर के फ़कीर




    वहीँ जिसने ढूढी
    एक और राह ..
    तो फिर
    जहाँ चाह वहीँ राह..
    इन लकीरों से
    भरी हथेलियों को
    भींच लिया
    मुठी में
    एक इमानदार
    कोशिश ..बस इतना ही
    शायद बन जाय शहंशाह
    तकदीर से ऊपर
    उठ कर
    मेहनत का बादशाह..........!!!!

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  4. जीवन कर्मों का ही तो प्रतिबिम्ब है।

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  5. वैसे तो किसी भी काम में सफलता पाने के लिए मेहनत और किस्मत दोनों की ही अहिमीयत होती है मगर मेहनत करने वाले हाथ अक्सर अपनी किस्मत खुद ही लिखा करते है। सार्थक रचना

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  6. किस्मत की लकीरे होती नहीं बनायी जाती हैं

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  7. हाथ की लकीरे ...पल पल बदलती रहती हैं

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  8. हाथ खुद की लकीरों को नहीं मानते.... वाह!
    सुन्दर रचना...

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