Wednesday, July 18, 2012

फ़िर आया सावन...



नन्हीं सी बूँदो                 
तुम जो बरसोगी 
धरा खिलेगी..

सावन आया
पिया कहीं न जाना 
झूला झूलेंगे..

छाते के नीचे
फ़ुहारों के बीच में 
तुम और मैं ..

ओ री बरखा
जो भिगोई चुनरी 
फ़िर तपूंगी....

घोर गर्जन
घबराए से पंछी 
रूको बदलों...

मैं हूँ उदास
बरसेंगी अँखियाँ  
पूरे सावन...


5 comments:

  1. आजकल हाईकु पर जोर है...

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  2. एक सावन अनेक रूप ...

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  3. बहुत सुन्द्स्र , कम शब्दों में अधिक अभिव्यक्ति ....साधुवाद |

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