Friday, August 31, 2012

कोई छला न जाता

आशीष राय जी के ब्लॉग  युग दृष्टि  पर " विश्व छला क्यों जाता" नामक कविता पढ़ने के बाद जो कुछ सूझा वही लिखा। इसे पढ़ने से पहले आशीष जी की कविता जरूर पढ़े ।



तुहिन बिंदु की चमक से तारे शायद डर जाते
इसीलिए प्रभात वेला में तारे नभ में छिप जाते...

उज्जवल शशि की उज्ज्वल किरणें फ़ैलाती जग में उजियारा
खुद भी उज्ज्वल होने बादल ढँक लेता शशि को सारा...

रोता है जो खुद अपने पर कभी नहीं वो फ़िर उठ पाता
इसीलिये इंद्रधनुष भी- उगता ,रोता और खो जाता...

रूकता जो वो जीवन क्या?,जीवन हरदम चलते रहता,
फूलों में जीवन न होता, जीवन तो खूशबू में बहता..

जिसे प्यार करते हम मन से वो होता प्राणों से प्यारा
जान निछावर करते उस पर प्रेमी हो या देश हमारा...

सह्रदय ही निश्छल मन से सबको प्यार लुटाता
गर विश्वास शिराओं में बहता कोई छला न जाता...
-अर्चना

और फ़िर इसे फ़िर सुधारा मेरे भैया ...सलिल वर्मा ने


तुहिन-बिंदु की तेज चमक से, तारे शायद डर जाते,
इसीलिये शायद वे तारे हुई भोर तब छिप जाते!!

उज्जवल शशि की उज्जवल किरणें फैलाती उजियारा,
बादल उज्जवलता को पाकर ढँक लेता शशि सारा!

खुद पर जो रोता है प्राणी कभी नहीं उठ पाता,
इन्द्रधनुष इस कारण उगता, रोता और खो जाता!

रुकने को मत जीवन समझो, जीवन चलते रहना,
हों समाप्त ये फूल, किन्तु खुशबू बस देते रहना.

प्रेम करो जिसको वह तो होता प्राणों से प्यारा,
जान निछावर करो, प्रेमी हो या हो देश हमारा.

सच्चा मनुज सदा निश्छल हो सबपर प्रेम लुटाता,
विश्वास रहे जब नस नस में तब मनुज छला नहीं जाता.

- सलिल वर्मा









8 comments:

  1. बढि़या प्रस्‍तुति.

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  2. समस्त पाठकगन को यह बता देना मैं अपना फ़र्ज़ समझता हूँ कि इस रचना में मेरा कुछ भी नहीं है.. अर्चना ने मुझे कुछ शब्द दिए, जिसमें हेर-फेर की कोई गुंजायश नहीं थी, कुछ भाव पहले से ही पिरोये हुए थे, जिनमें मेरा दखल न के बराबर था, और फिर तब जो कुछ भी बन पड़ा पाँच-दस मिनट में वही आपके सामने है..
    /
    हाँ मुझे एक बात की खुशी है कि ब्लॉग जगत में कई स्थापित कवि जैसे भाई नीरज गोस्वामी, गुरुवर पंकज सुबीर के आशीर्वाद से गज़ल प्रस्तुत करते हैं, तथा मेरी निम्मो दीदी (निर्मला कपिला जी) बड़े भाई प्राण शर्मा जी के आशीर्वाद से गज़लें प्रस्तुत करती हैं.. मेरी छोटी बहन ने मुझे चुना, जिसमें न कविता करने की क्षमता है, न सुरों-छंदों का ज्ञान (सचाई है यह)..
    मैंने मना किया था कि मेरा नाम लिखने की आवश्यकता नहीं, लेकिन जिद्दी है..
    इसलिए कविता की सारी त्रुटियाँ अर्चना के नाम और तमाम तारीफें... वो भी अर्चना के नाम!! जीती रहो!!

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  3. वाह वाह बुआ.. :) :)
    चचा ने एक बार मेरी भी एक कविता को सुधारा था और एक english poem का translation किया था :)

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  4. बढि़या प्रस्‍तुति

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  5. सुधरा हुआ रूप बहुत ही सुन्दर है.

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  6. भाव अच्छे हैं ...!

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  7. nice presentation....
    Aabhar!
    Mere blog pr padhare.

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