Tuesday, September 4, 2012

यादों के दीप...प्रकाश करिया

सुनिए फ़ेसबुक पर मिले मित्र प्रकाश करिया जी की एक रचना...


यादों के दीप हमने जला कर बुझाये,बुझा कर जलाये,
तुझे भूल कर भी ऐ जानेमन हम भूल ना पाए,

वो कल की ही रातें थी, चाहत की बाते थी,
हर दिन वो तेरी मेरी, हसीं मुलाकातें थी,
कैसे वो प्यार तेरा तू ही बता हम भूल जाये,
यादो के दीप......

तरस दिल की हालत पे कुछ तो खाओ,
बहुत रो चुके है हम, हमे ना रुलाओ,
सितम ना करो अब, तेरे प्यार में गम बहुत है उठाए,
यादो के दीप.....

निशा मिट गए है, कदमो के मेरे,
निकल तो आये है, महफ़िल से तेरे,
खबर क्या तुझे के कदम कैसे थक कर हमने उठाए,
यादो के दीप.....

नहीं कोई उम्मीद हमको बहारो की,
होती नहीं दुनिया दिल के मारो की,
फिरते है मरे मरे खुद को हम दीवाना बनाए,
यादो के दीप....

माना नहीं है कोई ज़िन्दगी में गम,
मगर खुशियों से है महरूम क्यों हम,
तुझ को भुलाया है, यादो को तेरी कैसे भुलाए,
यादो के दीप....

अब चाहत नहीं रंगीन नजारो की,
फूलो की, खुशबु की,कोई बहारो की,
मज़बूरी कैसी है,अरमा है सरे दिल में दबाए,
यादो के दीप....
-प्रकाश करिया
एक नई जगह हिन्दी वाणी पर



3 comments:

  1. यादों के दीप श्री प्रकाश करिया जी की रचना का सुन्दर सस्वर वाचन ने नया आयाम दिया बधाई .

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  2. फेसबुक पर भी शेयर किया था, आज यहाँ भी सुना.. अच्छा गीत और अच्छी संगीत रचना!! स्वर में गीत की भावना खुलकर अभिव्यक्त हो रही है!! सुन्दर!!

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