फ़िर सुहाना मौसम आया है
हर ओर बहुत खूबसूरत नजारा है
खुश्बू से मैं जान पाई हूँ
इस मौसम को महसूस पाई हूँ
तुम्हारा साथ था तो खिड़की के बाहर दिख जाता था
या सारा मौसम खुशबू समेत बाँहों मे सिमट आता था
अब उस खिड़की में झीना परदा पड़ा है
कुछ दिखता भी है तो बस धुंधला सा है
ये धुंधलाहट आँखों में है या बाहर
कौन बतायेगा मुझे
क्या आओगे फ़िर
या मुझे आना होगा
कोई राह तो सूझे...
हेमंत ऋतु पर सजी सुन्दर रचना
ReplyDeleteअरुन शर्मा
www.arunsblog.in
दे जाता है कुछ गम
ReplyDeleteयह खुशनुमा मौसम!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (09-12-2012) के चर्चा मंच-१०८८ (आइए कुछ बातें करें!) पर भी होगी!
सूचनार्थ...!
सुन्दर लिखा है..
ReplyDeleteस्मृतियों का तार न छेड़े,
ReplyDeleteसपनों का संसार न छेड़े।
ये मौसम जितने खुशनुमा होते हैं उतनी ही तकलीफ भी दे जाते हैं.. बहुत खूबसूरती से बयान किया है तुमने!! जीती रहो!!
ReplyDeleteसुंदर रचना अर्चना जी ...
ReplyDeleteनिःशब्द करती भावनाएं
ReplyDeleteझीने पर्दे के उस पार का खुशनुमा मौसम | बहुत सुंदर लिखा है | ऐसी रचना जिसके गर्भ में एक हलकी सी कसक या कहूँ तो ख्वाहिश छिपी हुई है |
ReplyDeleteसादर
सुंदर रचना ... मौसम खुशनुमा रहे
ReplyDelete