Thursday, January 10, 2013

जाड़ा और धूप ...



















(चित्र गूगल से साभार)

आज प्रस्तुत है अनूप शुक्ला जी के ब्लॉग "फ़ुरसतिया" से कुछ क्षणिकाएँ-


धूप खिली उजाले के साथ


प्रस्तावना सलिल भैया  की मदद से तैयार हुई ....आभार नहीं कर सकती .... :-)

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11 comments:

  1. वाह! सुबह-सुबह आपकी आवाज में इन (तथाकथित) कविताओं को सुनकर आनन्दित हो गये। बहुत मेहनत की आपने। कमेंट्री तो कविताओं से भी जबरदस्त है। बिहारी बाबू ग्रेट हैं। :)

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  2. सभी को आभार। .. अच्छा लगा।

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  3. प्रस्तावना , फिर क्षणिकाएं , पूरा संयोजन ही बहुत अनुपम है |

    सादर

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  4. बेहतरीन उम्दा … जय हो

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  5. वाह ... बेहतरीन

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  6. I always spent my half an hour to read this website's articles or reviews everyday along with a mug of coffee.
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  7. सुकुल जी के व्यक्तित्व से प्रभावित हुए बिना नहीं रहा जा सकता.. और इनकी रचनाएं भले ही हल्की-फुल्की हों, मगर हलके में नहीं ली जा सकतीं.. इन क्षणिकाओं और इनके इस पॉडकास्ट से जुडी सबसे मजेदार बात यह रही कि मैंने शुक्ल जी की पोस्ट पर टिप्पणी की और उसी समय यह फैसला किया कि अर्चना को कहूँगा इसे पॉडकास्ट करने को. संजोग से अर्चना भी मिल गयी चैट में और बोली, "भैया! अनूप जी की कविताओं का पॉडकास्ट बनाना है!"
    संजोग ऐसे ही बनाते हैं और भाई बहन की फ्रीक्वेंसी भी!!रिज़ल्ट आपके सामने है..
    जितनी खूबसूरत क्षणिकाएं - उतनी ही सुन्दर प्रस्तुति!!

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  8. उत्कृष्ट ...मनमोहक प्रस्तुति

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  9. बहुत सुन्दर क्षणिकाएं हैं । खासतौर पर पहली और चौथी ।

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  10. बड़े ही रोचक अन्दाज में लिखा आलेख..

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