भला क्यूँ रहे ?
नेह भरा ये मन
यूं ही बेचैन...
नेह बंधन
बिन डोर बाँध ले
सबके मन...
करें जो स्नेह
बिना स्वार्थ सतत
बरसे नेह...
भटके मन
छटपटाए तन
कोई संग ना....
मोह न छूटे
सजे सँवारे देह
जगत मिथ्या ...
नश्वर देह!
साथ कुछ न जाये
फिर भी मोह...
देह का बोझा
ढोए जन्मोजनम
मुक्ति की आस....
छोटा पिंजड़ा
पंछी छ्टपटाए
देह न छूटे...
-अर्चना
नेह भरा ये मन
यूं ही बेचैन...
नेह बंधन
बिन डोर बाँध ले
सबके मन...
करें जो स्नेह
बिना स्वार्थ सतत
बरसे नेह...
भटके मन
छटपटाए तन
कोई संग ना....
मोह न छूटे
सजे सँवारे देह
जगत मिथ्या ...
नश्वर देह!
साथ कुछ न जाये
फिर भी मोह...
देह का बोझा
ढोए जन्मोजनम
मुक्ति की आस....
छोटा पिंजड़ा
पंछी छ्टपटाए
देह न छूटे...
-अर्चना
क्या प्रतिक्रिया दूँ नहीं समझ पा रही हूँ ,बस कहीं अंतर्मन को छू गयी .......
ReplyDeleteमन में मन की आस बिठा लें,
ReplyDeleteआती जाती साँस बिठा लें,
यदि न अपेक्षित जग का मंचन,
स्मृतियों का वास बिठा लें।
सुंदर हाइकू की श्रृंखला को एक सूत्र में बखूबी बांधा है आपने। शिल्प और भाव दोनो बेजोड़। वाह!
ReplyDeletehttp://zaruratakaltara.blogspot.in/2013/09/blog-post.html
ReplyDeleteविनम्र आग्रह २ का अवलोकन की कृपा कर अपना अमूल्य विचार दें
जगत मिथ्या पोस्ट से मन में आशा जगी है आपसे अमूल्य विचार प्राप्त होगे
सुंदर हाइकू
ReplyDeletelatest post नसीहत
सुन्दर
ReplyDelete