१)
ये सरसराहट
और
ठंड़ी हवा की
छुअन
बीते पल
याद दिलाती है...
क्योंकि
रजाई में दुबके ही
सुबह-सुबह
कहते थे तुम-
तू बड़ी अच्छी
चाय बनाती है........
-अर्चना
ये सरसराहट
और
ठंड़ी हवा की
छुअन
बीते पल
याद दिलाती है...
क्योंकि
रजाई में दुबके ही
सुबह-सुबह
कहते थे तुम-
तू बड़ी अच्छी
चाय बनाती है........
-अर्चना
२)
कड़ाके की ठंड
और ठंड में ठिठुरते बच्चे
सड़कों पर ....
काश कि कभी
सूरज ले लेता
किराए का कमरा
इन दिनों
फ़ुटपाथ पर
धूप की रजाई
ओढ़ा देती माँ
काम पर जाने से पहले .....
-अर्चना
३)
फ़िर ठंड का मौसम आया है
बचपन की गलियों में घुमा गया है
सुबह देर से उठना
अपनी हथेलियों को रगड़ना
माँ के हाथ का बना स्वेटर
और पापा वाला मफ़लर
सुबह गरम जलेबी और पोहा
शाम को उबला दूध और मेवा
दादी की गरम रजाई में घुस जाना
और फ़िर उनसे राजा-रानी की कहानी सुनना
उफ़्फ़ कितना कुछ याद दिला गया है
फ़िर ठंड का मौसम आया है ...
-अर्चना
४)
ठंड के मौसम में
माँ का पकड़कर नहलाना
ना ना करते मेरा नहाना
और लपेट कर फ़र वाला तौलिया
भाग कर हल्की धूप में जाना
फ़िर मुँह और कान बन्द कर
बिना बदन पौंछे
घुटनों पर सर को दबाना
और दाँतों का किटकिटाना
याद आता है हर बार
ठंड के मौसम में ....
-अर्चना
ठंड में ठिठरते मन के भाव..
ReplyDeleteअपने से बिछुड़ना और मीठी यादों को पुनर्जीवित कर उसे सांझा कर जी उठना अर्चना की जिजीविषा का ही कमाल हो सकता है
ReplyDeleteबेहतरीन
यहाँ तो ठण्ड नहीं वैसी, लेकिन तुम्हारी सारी कविताओं ने ठिठुरा दिया और साथ ही बचपन की और उन तमाम यादों की, जिनका तुमने ज़िक्र किया, गर्मी में गुनगुना एहसास भर दिया!! बहुत सुन्दर!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteठण्ड में इंसान ठिठुर सकता है भावनाएं नहीं -बहुत सुन्दर संस्मरण !
ReplyDeleteनई पोस्ट चाँदनी रात
नई पोस्ट मेरे सपनों का रामराज्य ( भाग २ )
वाह, बहुत सुन्दर शब्द-चित्र
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति। .....
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति को आज की बुलेटिन भारत का सबसे गरीब मुख्यमंत्री और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteजिए ठण्ड का केनवस खड़ा कर दिया आंखों के सामने ...
ReplyDeleteसम्बन्धो की ऊष्मा में भीगी हुई,अच्छी रचनाये है,बधाई
ReplyDeleteसम्बन्धो की ऊष्मा में भीगी हुई,अच्छी रचनाये है,बधाई
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