प्रेम
सिर्फ ढाई अक्षर नही,
प्रेम नही समाता किसी
हायकू
त्रिवेणी
दोहा,सोरठा
या छंद में
..
प्रेम के लिए
लिखे जाएं यदि
ग्रन्थ
पुराण..
या महाकाव्य
रचे जाएं
तब भी
अधूरा ही
रहा है,
रहता है,
रहेगा प्रेम
प और म
के बीच के
आधे र की तरह....
शायद अभिशप्त है
रति से.....
प=प्रथम
म=मिलन........
-अर्चना(14/02/2014)
प्रेम या प्यार जो भी हो, जिसका पहला अक्षर ही अधूरा हो उसकी पूर्णता की बात क्या करना.जिस दिन वह पूरा हो चाहे कविता, नज़्म, ग़ज़ल, छन्द, सवैया, सोरठा, दोहा, कवित्त में उस दिन किसी ग्रंथ की आवश्यकता नहीं होती. जगत में ढूँढने वाले को कहाँ मिलता है यह प्रेम. अपने अंतस में देखने वाले ही पाते हैं प्यार का सागर! सागर की मछली जैसा, कोई उससे पूछे कि सागर क्या होता है तो क्या कहेगी??
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना है!!
प्रेम कहाँ पूर्णता पाता है, प्यासा रहेगा तो पाता रहेगा।
ReplyDeleteअपूर्णता भली है।
ReplyDeleteबहुत ही सटीक और सुन्दर रचना ...
ReplyDeleteबहुत ही सटीक और सुन्दर रचना ...
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