न जाने कितनी चीजें सीखी लड़की होने के कारण ...
ये दो फ्रेम शादी के बाद मेरे साथ ही ससुराल आई थी ....मैं तो इधर-उधर होती रही ...मगर ये आज भी उसी जगह टंगी हैं जहाँ नवम्बर 1984 में मैंने टांगी थी ......
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जब भी यहाँ आती हूँ .... बहुत कुछ याद दिलाती हैं .......
बढ़िया कलाकारी।
ReplyDeleteबढि़या। यह कपड़े पर बनाई गई है या टिन पर उकेरी गई है ?
ReplyDeleteवेलवेट के कागज पर फेविकोल से चिपकाया
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