Tuesday, October 7, 2014

चमक

चमक






कल फिर मेरी सहयात्री ने मुझसे पूछा -
दूसरी शादी नहीं की?
हँस दी मैं हमेशा की तरह ......
आज दुधिया चाँदनी है
ये चाँद से कहो न थोड़ा हटे, छुपे....
तुम्हारे तो पास है वो, साथ है वो
कई दिनों से, कई सालों से...
मान लेगा तुम्हारी बात शायद ..
इतनी चाँदनी में तो
भीगी कोरे भी चमक कर
दिख जाती है ...
हँसने पर भी तो
भीग जाती है न कोरें.....
- अर्चना

5 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 9-10-2014 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1761 में दिया गया है
    आभार

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  2. इतना ही कह पाऊंग़ा। बहुत ही भावना प्रधान रचना। स्वयं शून्य

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  3. कहने की नहीं,बात केवल अनुभव की है !

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