Tuesday, November 11, 2014

अनवरत प्रवाहमान कहानी का बारहवाँ टुकड़ा

12-
सुबह स्कूल के लिए निकली तब बगल के मंदिर में दनादन घंटे पीटकर आरती निपटाई जा रही थी ,श्वान महोदय स्कूटर पर स्टंट करके आराम फरमा रहे थे 



 एक गौ माता गोबर करके निपटीं थी ,गोबर कोई उठा कर ले जा चुका था ,श्राद्ध पक्ष चल रहे हैं .....
 मैंने जल्दबाजी में नियम तोड़ते हुए सड़क पार की ...
स्टॉप पर खड़े होने पर सामने चाय की गुमटी दिख रही है दो 16-17 साल के बच्चे सिगरेट पीते हुए चाय गटक रहे हैं ,पढ़ने आए हैं इंदौर में ऐसे दिख रहे हैं ,कान में हेडफोन ....मेरी नजर उन पर जा टीकी है बहुत गुस्सा आ रहा है मन कर रहा बुला कर पूछूं कहाँ से आए हो या जाकर दो तमाचे जड़ दू




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समय खतम इन्तजार का ,स्कूल बस सामने आ खड़ी हुई है अंदर चढ़ने पर भी उन पर नजर है ,अब वे गुमटी वाले से अखबार लेकर अंदर उलटे हाथ का पन्ना पढ़ रहे हैं ...
बस चल दी .....मैं वहीं ..... जाने कितने बच्चे जानबूझकर अनजान बने रहते होंगे ...

ऐसे ही किसी टुकड़ा कहानी से - जो न जाने कब पूरी होगी .....

5 comments:

  1. जिंदगी की कहानी की एक सुबह , ताजा होकर कुछ खिझाती भी !

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (12-11-2014) को "नानक दुखिया सब संसारा ,सुखिया सोई जो नाम अधारा " चर्चामंच-1795 पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. show off का चलन जोरो पर हैं
    बहुत सही ....

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  4. dikhAwa....ohhh kya karein....sunder prastuti

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