Saturday, January 2, 2016

पचपन में भी बचपन

नये साल पर माँ ने चेताया कि अनजाने लोगों से ज्यादा मत मिला कर,और अकेले तो बिलकुल ही मत मिला कर .....
आजकल अखबार में बहुत -सी खबरें आती है .... जानने वाले ही धोखा दे देते हैं ....
माँ चिंतित है, मेरे अकेलेपन के कारण ....और समझ नहीं पाई हूँ मैं उन्हें अब तक ....बहुत डरती है वे............मुझे निडरता का पाठ पढ़ाते हुए ....
मैं जानती हूँ ,मेरे बच्चे भी मेरे बारे में यही कहते हैं ....
वे चिंतित रहती हैं ये कहते हुए भी कि बस! अब बहुत हुआ नौकरी करना ...अब आराम कर ...अब सब हो गया ....जबकि मेरे बाहर से आने पर पानी का गिलास आज भी ले आती है अपने हाथों में .......
और उन्हें चिंता मुक्त करने के लिए मैंने निर्णय ले लिया कि अब आराम ही करूँगी ... उनके साथ कुछ दिन रहूँगी ....
और मेरे ये कहने पर कि बंगलौर जाने से पहले यहाँ इन्दौर में रहने वाले अपने कुछ परिचितों (फ़ेसबुक परिचितों)से मिलना चाहती हूँ ...उन्होंने मुझे चेताया ....
मुझे याद आई अपनी ही कहानी "मुनिया का बचपन" ....

अब बेटी पचपन और माँ अठहत्तर की होने आई हैं ....
कितनी प्यारी होती है माँ ....
उसकी गोद में सारे दर्द दूर हो जाते हैं और उसका हाथ माथे पर घूमते ही उम्र पचपन की होने पर भी बचपन की ही रहती है ...... 

2 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन टीम की ओर से आप सब को नव वर्ष के अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं|

    ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, सभी को नए साल की हार्दिक शुभकामनाएं - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. बिलकुल सही कहा आपने

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