फटने न देना कभी मन में छाए घने बादलों को,
वरना सबके साथ खुद का वजूद भी नजर नहीं आएगा ...
तबाही फैलाने को नहीं है ये मन तुम्हारा,
उम्मीद रखो रिश्ते का रेगिस्तान भी हरा नजर आएगा...
कुछ बातें फ़िर भी सदा अनकही ही रहेंगी
मौन हों जब कलम तो अश्रु भर आंखे कहेंगी....
अर्थ अश्रुओं का न समझा पाई है कभी लकीरें
उम्मीद की एक किरण बदल देती है तकदीरें........
-अर्चना
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (08-10-2016) के चर्चा मंच "जय जय हे जगदम्बे" (चर्चा अंक-2489) पर भी होगी!
ReplyDeleteशारदेय नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर!!
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