१)
ओ! मेरे वीर सिपाही,
सीमा के प्रहरी -रखवाले
घर-आँगन को भूल के अपने ,
सीमा पर त्योहार मनाने वाले
एक दीप रखा है आँगन में मैंने
सन्देश छुपाया अनजाने
ऋणी रहेगी सदा तुम्हारी,
हर पीढ़ी की संताने
२)
सजाना अपने घर के आँगन में,
एक दीप उनके नाम का
जो वर्दी पहन पहरेदार बना है-
मेरी-तुम्हारी जान का..
सजाना एक दीप उनके लिए
जो लौट कर न आ सके
संग अपने परिवार के -
ये दीवाली न मना सके ...
सच है दी ,ये सैनिक है तभी तक ये सारे पर्व हम मना पा रहे हैं ..... हर दीप की रौशनी उनको ही समर्पित ......
ReplyDeleteवाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteमंगलमय हो आपको दीपों का त्यौहार
जीवन में आती रहे पल पल नयी बहार
ईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकार
लक्ष्मी की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार
ब्लॉग बुलेटिन टीम की ओर से आप सभी को धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएं|
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "कुम्हार की चाक, धनतेरस और शहीदों का दीया “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बहुत उम्दा.....
ReplyDeleteबहुत सुंदर , दीप पर्व मुबारक !
ReplyDeleteसामयिक कविता
ReplyDeleteप्रेरक प्रस्तुति ।
ReplyDeleteआपको दीप-पर्व की शुभकामनाएँ ।
इस दीप के समक्ष मैं सिर नवाता हूँ!
ReplyDeleteसच
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