-साब नमस्ते
-हम्म
-साब जी नमस्ते
-कहा न,हम्म
-जी साबजी
-नाम ?
-मालूम नही
-हें? कहाँ से आया?
-सरसती देस के जुगलबंदी सहर से
-कैसे?
-कलम रस्ते..
-तो,कोई नाम तो होगा न?
-जी मां व्यंग्य बुलाती है
-और बाप?
-नहीं है
-नहीं है? मतलब?
-मतलब इस बार नहीं है
-अबे! बाप तो सबका होता है,हमेशा होता है, तेरा इस बार नहीं हैं,कह रहा है? किसको मूर्ख बनाना चाहता है?सेरोगेसी में भी मां का पता नहीं होता,बाप तो होता ही होता है।
-जी
-फिर?
-मेरा इस बार नहीं है,
-कैसे?
-जुगलबंदी के शहंशाह ने कलम कर दिया सिर ,कहा इस बार बिना सिर के रहो...अपनी दुम के बल पर ....
-पर भला ऐसा क्यों?
- उनका मानना है व्यंगों की जमात के सिर चुनकर लोग उस पर ताज रखते हैं फिर उसका शीर्ष कभी भी, कहीं भी किसी भी तरह इस्तेमाल करने लगते हैं, जबकि मोलभाव पिछलग्गी दुमों का किया धरा होता है👍
-ओह!बात तो सई कही,अब ये बता मेरे पास क्यों आया?
-इस बार भी छपना है,साबजी ! "बिना शीर्षक"
-उससे क्या होगा?
-साबजी दुम के भाव बढ़ेंगे,जुगलबंदी शहर के शहंशाह सरसती देस में नाम कमाएंगे ....
-और ?
-और लोग जान जाएंगे कि व्यंग्य भी "बिना शीर्ष के" जिंदा रहकर यानि छपकर ताज वालों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा सकता है ।
-शाबास!
-तो हाँ समझूं साबजी
-अरे हाँ, बिंदास जा और फेसबुक वॉल पे ड्यूटी संभाल...."बिना शीर्ष के"
-
न गज़ल के बारे में कुछ पता है मुझे, न ही किसी कविता के, और न किसी कहानी या लेख को मै जानती, बस जब भी और जो भी दिल मे आता है, लिख देती हूँ "मेरे मन की"
दुम
ReplyDeleteयानि ..
टेल..
मतलब पूँछ
...जमाना ही है
दुम का..
पर रहनी चाहिए
हिलती हिलती हुई
ग़ज़ब की सोच,...
दीदी को सादर नमन