निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय...
जन्म हुआ तबसे सुनते आये हैं। ... अब रच बस गया है भारतीयों के मन में। ... अब निंदकों को नियर रखना हो तो निंदा तो करते रहना पड़ेगी वरना निंदक मिलेंगे कहाँ से। .. सबको अपनी कुटी की फिकर करने का हक़ तो है ही। ....तो भाईयों ,बहनों, मितरों कुछ भी कहा जाए , मुख्य बात निंदा करने की रहती है और जब कड़ी निंदा हो तो फिर तो सोने पे सुहागा। ....
हर भारतीय का भाई-चारा बनाये रखने का जन्मजात स्वभाव होता है , यहां की मिलनसारिता के किस्से इतिहास के पन्नों को भरते आये हैं। ... देश आजाद होने से पहले भी और बाद में भी। ...
मुफ्त में जो मिले लपक लेने में भारतीयों का नाम गिनीज बूक में होना चाहिए। .... इसलिए जहां बिना -साबुन और पानी के सिर्फ निर्मल करने की बात हो तो बाबा के साबुन को भी कोई न पूछे। ....
हर व्यक्ति अलग-अलग निंदा करे ये शोभा नहीं देता और कारण तो ये है की देश की आधी आबादी से भी ज्यादा रोटी-पानी के जुगाड़ में निंदा करने का समय ही नहीं निकाल पाती ,इसलिए समूह में एक चुने हुए सदस्य द्वारा निंदा का प्रचलन हो गया है अब। ..
सुई बराबर भी मौका मिले तो निंदा करने झपट पड़ते हैं लोग। ... जो अपने अपने समूह से चुने गए हैं। ...
इस बार ब्लॉगरी समूह की जुगलबंदी में कड़ी निंदा की जानी है। ...सो इस मौके का फ़ायदा कौन न उठाएंगे। ...
मैं भी कर देती हूँ कड़ी निंदा। .. कड़क चाय से भी कड़ी - मेरे निंदनीय लोग मेरे आस-पास रहें और मेरी कुटी के आँगन की शोभा ... डे तो क्या नाईट में भी मेरे सुभाव को निर्मल रखे। ...
सब रसों पर भारी होता है निंदा रस
ReplyDeleteबहुत खूब!
चर्चा चलती रहे बस -और निन्दा में तो आकर्षण भी होता है लोगों को साथ जोड़ लेने का .
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