बात उन दिनों की है जब अपनी बेटी आठवीं कक्षा में पढ़ रही थी, हम होस्टल में रहते थे।
एक दिन उसने स्कूल से लौटकर कहा-
"मम्मी, जब कोई अपने से मिलने आता है ,तो लौटते समय कहता है-हमारे घर आना,और हम तो उन्हें कभी भी कह नहीं सकते कि -आप भी हमारे घर आना।" क्या कभी अपना कोई घर नहीं होगा,हम यहीं रहेंग?(3 साल से हम वहीं थे).......मेरी सारी सहेलियों को चाय बनाना आता है,कुछ तो नाश्ता भी बना लेती हैं अपना,मुझे तो चाय भी बनाना नहीं आता,अपना तो कोई किचन भी नहीं है😢
...और कुछ दिनों बाद मैंने घर लेकर जॉब से इस्तीफा दे दिया ,ये नहीं सोचा कि आगे काम क्या और कौनसा करूँगी,कमाई का जरिया क्या होगा?वो तो स्कूल वालों ने मुझे स्कूल छोड़ने नहीं दिया 😊और हम अपने घर रहने चले आए।
मैंने ठीक किया न !
बच्चों की जो मुस्कान तब देखी थी,आज भी याद है !😊
आज बेटी अपने घर में खुश हैं,ढेर सारी जिम्मेदारियों और "नानी की बेटी "के साथ
अनवरत चलने वाली कहानी का एक टुकड़ा ...
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (16-10-2017) को
ReplyDelete"नन्हें दीप जलायें हम" (चर्चा अंक 2759)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जन्म दिन की हार्दिक शुभ कामनाएं |
ReplyDeleteमासी जी जन्मदिन की बधाई और शुभकामनाएं ..!!
ReplyDeleteआपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं!
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