उन्हें बर्फ़ीली पहाड़ियों में भी गर्मी लगती है
और रेगिस्तान की गर्म हवाएं ठंडक पहुँचाती है
बरसाती बादल उन पर बिजली नहीं गिरा पाते
और उनके त्यौहार हमसे अलग होते हैं ....
परिवार उनका भी होता है पर हम -सा कमजोर नहीं
और ईमानदार मेहनती हैं वे,कामचोर नहीं
तुम्हारा बस नहीं कि तुम उन्हें पहचान भी पाओ
तुम तो बस- "बंदे में था दम" यही गीत गाओ!!!
-अर्चना
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (08-01-2018) को "बाहर हवा है खिड़कियों को पता रहता है" (चर्चा अंक-2842) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
नमन है इन वीरों को
ReplyDeleteबहुत खूब....
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