न गज़ल के बारे में कुछ पता है मुझे, न ही किसी कविता के, और न किसी कहानी या लेख को मै जानती, बस जब भी और जो भी दिल मे आता है, लिख देती हूँ "मेरे मन की"
Tuesday, July 24, 2018
Monday, July 16, 2018
पटना यात्रा - एक याद
पटना ...
इस शहर में सुबह जल्दी हो जाती है, 5 बजे ही बहुत उजाला हो जाता है ..पास ही धोबी घाट है, 5-6 भाइयों के परिवार इस काम को मिलकर करते हैं, सुबह 6 बजते ही सब अपना काम शुरू कर देते हैं, अलग-अलग टंकियां बनी हुई है और हर टंकी के पास एक तिरछा पत्थर लगा हुआ है-
सारे पुरुष अलग-अलग कपड़े धोते हैं,किसी के पास चादरों का ढेर होता है तो किसी के पास साड़ियों का,कोई छोटे कपड़े धोता है तो कोई नाजुक ....बुजुर्ग महिलाएं कपड़े सूखने डालने का काम करती हैं ,बाकि कम उम्र की महिलाएं,जो बहू,बेटियां हो सकती हैं,कपड़े भिगोने और पानी इधर-उधर करते दिखती हैं।
इनके घर वैसे ही हैं अब तक जबकि आसपास मल्टियाँ बन गईं... मैं जिस बिल्डिंग से इन्हें देख रही हूँ वही 30 साल की हो चुकी है ....
इस परिवार के बारे में पता चला कि पहले माता-पिता ये काम करते थे,अब सारे भाईयों का परिवार करता है, पहले साथ थे अब यहीं पास-पास घर बंट गए...अब इनके बच्चे इंजीनियर बन चुके,लेकिन ये अपना यही काम करते हैं,यहीं रहते हैं,यहां से गंगा घाट ज्यादा दूर नहीं एक-डेढ़ किलोमीटर होगा.. यानि जिस समय ये बसे होंगे गंगा का किनारा दिखता होगा ...
अब कोचिंग रूपी कुकुरमुत्तों ने सारी जगह को घेर रखा है ..
.घर से बाहर निकलें तो हर तरफ बच्चे ही बच्चे दिखते हैं....और दूर तक चारों तरफ कोचिंग क्लास के विज्ञापन .... इतनी बहुतायत में मैंने अब तक नहीं देखे ...
कोचिंग के बारे में कहते हैं-यहां हर भाव में शिक्षक उपलब्ध हैं,बिजनेस है कोचिंग क्लासेस ....
इस शहर में सुबह जल्दी हो जाती है, 5 बजे ही बहुत उजाला हो जाता है ..पास ही धोबी घाट है, 5-6 भाइयों के परिवार इस काम को मिलकर करते हैं, सुबह 6 बजते ही सब अपना काम शुरू कर देते हैं, अलग-अलग टंकियां बनी हुई है और हर टंकी के पास एक तिरछा पत्थर लगा हुआ है-
सारे पुरुष अलग-अलग कपड़े धोते हैं,किसी के पास चादरों का ढेर होता है तो किसी के पास साड़ियों का,कोई छोटे कपड़े धोता है तो कोई नाजुक ....बुजुर्ग महिलाएं कपड़े सूखने डालने का काम करती हैं ,बाकि कम उम्र की महिलाएं,जो बहू,बेटियां हो सकती हैं,कपड़े भिगोने और पानी इधर-उधर करते दिखती हैं।
इनके घर वैसे ही हैं अब तक जबकि आसपास मल्टियाँ बन गईं... मैं जिस बिल्डिंग से इन्हें देख रही हूँ वही 30 साल की हो चुकी है ....
इस परिवार के बारे में पता चला कि पहले माता-पिता ये काम करते थे,अब सारे भाईयों का परिवार करता है, पहले साथ थे अब यहीं पास-पास घर बंट गए...अब इनके बच्चे इंजीनियर बन चुके,लेकिन ये अपना यही काम करते हैं,यहीं रहते हैं,यहां से गंगा घाट ज्यादा दूर नहीं एक-डेढ़ किलोमीटर होगा.. यानि जिस समय ये बसे होंगे गंगा का किनारा दिखता होगा ...
अब कोचिंग रूपी कुकुरमुत्तों ने सारी जगह को घेर रखा है ..
.घर से बाहर निकलें तो हर तरफ बच्चे ही बच्चे दिखते हैं....और दूर तक चारों तरफ कोचिंग क्लास के विज्ञापन .... इतनी बहुतायत में मैंने अब तक नहीं देखे ...
कोचिंग के बारे में कहते हैं-यहां हर भाव में शिक्षक उपलब्ध हैं,बिजनेस है कोचिंग क्लासेस ....
एक बहुत अच्छी बात ये लगी कि पढ़ने का जूनून यहां दिखता है ... रिक्शेवाला ,ड्राईवर से लेकर दुकानदार और खाने का ठेला लगाने वाले का बच्चा किसी न किसी परीक्षा की तैयारी में जुटा है ....
जूस पीने एक जगह रूके तो वो बच्चा था 12 वीं में सुबह कोचिंग जाता है,शाम को जूस बेचता है....
ड्राईवर भैया गोप जी के बेटे ने इसी वर्ष बारहवीं दी,वे बताते हैं - 11 वीं से पटना ले आये गांव से ,कोचिंग डलवाये ,पहली ही बार में जे ई ई एडवांस निकाल लिया,और स्टेट रैंकिंग 3 हजार से कम है,अच्छा कॉलेज मिल जाएगा,लेकिन बेटा को डिफेंस में जाना है ,तो यहां उसकी कोचिंग लेगा अब ... 6 महीने में परीक्षा देगा ...फिट रहने को पास के पार्क में दौड़ता है सुबह...
सुनकर पिता की आंखों में तैरते सपने को देख सकते हैं हम...वे कहते हैं-बेटी दसवीं में है,गांव में है अभी ....वो भी टॉप करेगी ..
जूस पीने एक जगह रूके तो वो बच्चा था 12 वीं में सुबह कोचिंग जाता है,शाम को जूस बेचता है....
ड्राईवर भैया गोप जी के बेटे ने इसी वर्ष बारहवीं दी,वे बताते हैं - 11 वीं से पटना ले आये गांव से ,कोचिंग डलवाये ,पहली ही बार में जे ई ई एडवांस निकाल लिया,और स्टेट रैंकिंग 3 हजार से कम है,अच्छा कॉलेज मिल जाएगा,लेकिन बेटा को डिफेंस में जाना है ,तो यहां उसकी कोचिंग लेगा अब ... 6 महीने में परीक्षा देगा ...फिट रहने को पास के पार्क में दौड़ता है सुबह...
सुनकर पिता की आंखों में तैरते सपने को देख सकते हैं हम...वे कहते हैं-बेटी दसवीं में है,गांव में है अभी ....वो भी टॉप करेगी ..
सुखद संयोग कि पिछले दिनों मैंने भाभी,पल्लवी और मायरा के साथ पटना स्थित शक्तिपीठ "पटनदेवी" के दर्शन किये,यहां सती की दाईं जंघा गिरी थी,दीवार पर यही कहानी लिखी हुई है जो आपने बताई शिव द्वारा शव लेकर घूमना और विष्णुजी द्वारा 52 टुकड़े करना .... मंदिर एकदम संकरी गली में स्थित है ,बहुत छोटा सा मंदिर और बिलकुल लगे लगे ऊंचे मकानों से घिरा है पार्किंग की बहुत सीमित जगह ,पूजापे प्रसाद की दुकान वाले ही एक एक गाड़ी खड़ी करवा लेते हैं हम 1:50 पर दोपहर में पहुंचे ,मंदिर के गर्भद्वार पर ताला लगा था,पूछने पर पता चला 2 बजे खुलेगा, कुछ नव विवाहित जोड़े पूजा के लिए परिवार सहित आये थे ,जैसे ही 2 बजे एक पंडित जी ने लाईन में लगने वाली जगह का ताला खोला और सब तुरंत पंक्तिबद्ध हो गए गर्भद्वार का ताला खोलने दूसरे पंडित जी आये मुझसे आगे एक नवविवाहित जोड़ा था ,उन्होंने फूल और प्रसाद की टोकनी दुल्हन द्वारा आगे बढ़ाई ,पंडित जी ने पूछा शादी हुई है उनके साथ आई बहन ने हाँ कहा पंडित जी ने कहा साड़ी चढ़ानी चाहिए,लेकिन बहन ने कहा जितना बना उतना किया और प्रणाम करवा कर आगे चली ,मैंने और मायरा ने माथा टेका और आगे बढ़े पीछे भी नवजोड़ा था उनकी टोकरी में साड़ी भी थी ,पंडित जी ने उनसे कहा साड़ी ले जानी है वे बोले हाँ ,तो पंडित जी बोले 51 रूपये रखिये ....
मंदिर में शांति थी , शक्ति पाठ भी हो रहा था पीछे लेकिन 10 मिनट में दर्शन कर बाहर आ गए थे कोई भीड़ नहीं थी ..
इससे पहले हरमंदिर साहिब गए थे वहां से यहां का रास्ता बहुत भीड़ भरा और संकरा था ,पुराना पटना शहर है ये एरिया .--
इससे पहले हरमंदिर साहिब गए थे वहां से यहां का रास्ता बहुत भीड़ भरा और संकरा था ,पुराना पटना शहर है ये एरिया .--