न गज़ल के बारे में कुछ पता है मुझे, न ही किसी कविता के, और न किसी कहानी या लेख को मै जानती, बस जब भी और जो भी दिल मे आता है, लिख देती हूँ "मेरे मन की"
Monday, November 25, 2019
Monday, November 4, 2019
वो छोटा लड़का
मुझे उसका नाम याद नहीं आ रहा पर उसकी याद बहुत आ रही है ........जब शादी होकर गई तो वो दौड़कर घर की चाबी लेकर आया था कोई 14-15 साल का लड़का था ..
.लालमाटिया कोयला केम्प में चार बजे पत्थर कोयले की सिगड़ी जलने रखता और आधे घंटे बाद लाईन से एक-एक के घर में पहुंचाता ......
एक ही सिगड़ी पर 5-6घर का शाम का खाना बारी बारी सब बना लेते .....सभी वर्ग के घर थे .....साहब-मजदूर..... अमीर-गरीब, शाकाहारी -मांसाहारी .......
हाँ लेकिन पहले शाकाहारियों के घर सिगड़ी जाती,फिर मांसाहारियों के घर......
और इसके बदले वो किसी एक घर में खाना खाता............
मुझे पत्थर कोयला जलाना नहीं आता सुनकर बहुत हँसा था......
अनवरत कहानी का एक टुकड़ा ....