बेमौसम की गर्मी और सूखी हवा
मुरझाये से खडे हैं जो ये पेड जवां
ढूँढ रहे हैं शायद उस शख्स को ,
जो उनकी हालत को कर सके बयाँ
कि दिया है जहर हमने ही उन्हें
हर तरफ़ और हर तरह से ,
उगलकर के धुआँ
माँग रहे है हमसे ही अब मदद
कि लाकर दो दवा ,
या सलामती की करो दुआ ! ! !
achchhi rachna ...sahi kaha aapne
ReplyDeleteजी हा कभी कभी दवा देने वाले को भी दवा की और कभी कभी दुआ की ज़रूरत पड जाती है.
ReplyDeletesunder abhivyakti
ReplyDeletevisit to the blog for environment concern
ReplyDeletebahut hi khub kahi aapane ....atisundar
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