न गज़ल के बारे में कुछ पता है मुझे, न ही किसी कविता के, और न किसी कहानी या लेख को मै जानती, बस जब भी और जो भी दिल मे आता है, लिख देती हूँ "मेरे मन की"
पता नहीं क्यों आवाज रूक रूक कर आ रही है
सच है नाम तो केवल व्यवहार के लिए रखा जाता है.. पर 'नाम नैनसुख, आंखन अंधे' ये भी तो कहते हैं...:)
सराहनीय कहानी.....दिल में उतर जाने वाली प्रस्तुति...साधुवाद!==================सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
शिक्षाप्रद कहानी!
पता नहीं क्यों आवाज रूक रूक कर आ रही है
ReplyDeleteसच है नाम तो केवल व्यवहार के लिए रखा जाता है.. पर 'नाम नैनसुख, आंखन अंधे' ये भी तो कहते हैं...:)
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सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
शिक्षाप्रद कहानी!
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