Wednesday, June 2, 2010

उफ्फ़ !!! कितनी गर्मी है....................

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उफ्फ़ !!! कितनी गर्मी है ..........सोच रही थी मै कार की खिड़की से बाहर देखते हुए .........छोटे -बड़े सभी मजदूरों को काम करते देखकर ........................
घर पहुची तो ब्लॉग पढ़ने लगी ......उफ्फ़ !!! कितनी गर्मी है ...............सोच रही थी मै ...........छोटे -बड़े सभी का लिखा पढ़कर .....................
सभी को गर्मी होती है ...................
हम जलते है ..........अन्दर से भी .............बाहर से भी ...........
जलना हमारा नसीब है .......जीवित हो तो खुद जलने लगते है .......या दफ़न हो जाते है अपने कर्मो से ...........मृत हो तो जला दिए जाते है .............या दफना दिए जाते है .................
और दोष रोशनी देने वाले सूरज पर लगा देते है .....................उफ्फ़ !!!कितनी गर्मी है ..........

14 comments:

  1. सही बात है बहुत गर्मी है..

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  2. वाकई बहुत गर्मी है

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  3. ये जलना भी किस किस तरह का होता है और गर्मी भी अलग अलग किस्म की

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  4. उफ्फ!! कितनी गर्मी है...


    बढ़िया अभिव्यक्ति..मनोभावों की..

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  5. ये दर्शन है या कुछ और
    सचमुच बहुत गर्मी है।

    प्रणाम

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  6. वाह गर्मी की कविता की गर्मी में पंखा सा झल रही हैं पंक्तियाँ

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  7. उफ्फ!! हम तरस रहे इस गर्मी को!! एक महीने से बरसात ही बरसात है ओर सर्दी ही सर्दी,चलिये थोडी गर्मी हमारे यहां भेज दे ओर सर्दी यहां से ले जाये जितनी चाहिये:) उफ्फ!! कितनी गर्मी है... आप के यहां!!!

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  8. yar ab is garmi ka nam mat lo badi chid ho gai he

    me to bhagwan se prathna kar racha hun ki jaldi se barish kara de

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  9. वाह! सचमुच गर्मी का अहसास करवा दिया आपने!

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  10. कम शब्दों में गहरी बात...

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  11. आज की दुनिया का कटु शाश्वत वास्तविक सत्य ..

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