माननीय जज साहब ,
मुझ पर एक मित्र ----"ब्लॉग लिखने का "ज्ञान" उन्होंने ही दिया है," और फ़िर हमारा तो स्वभाव ही ऐसा है कि किसी का आभार व्यक्त करना हो तो ऐसे करें कि अगला किसी का भला करे तो सोच समझ करे ना कि मन किया और कर दिया किसी को भी प्रेरित ।" (हर बार एक नया सम्बोधन देते हैं मुझे ---हिन्दी कमजोर है ---उनकी )--------का आरोप है कि मैं दूसरों की पोस्ट का पॉडकास्ट करती हूँ....................अब मैं ये तो पहले ही बता चुकी हूँ कि -----"न गज़ल के बारे में कुछ पता है मुझे .....न ही किसी कविता के .....और न किसी कहानी या लेख को मैं जानती ....बस जब भी और जो भी दिल में आता है .......लिख देती हूँ "मेरे मन की" -----"
भला अब आप ही बताएं-- मुझे तो ज्ञान आप-पास से ही ढूँढ्ना पडेगा न !......और मैं समझदार हूँ ( गवाह है मेरे पास )................
मैं इस आरोप से इंकार करती हूँ..............मैं सिर्फ़ उसी पोस्ट का पॉड्कास्ट बनाती हूँ....जो अच्छी हो या जिसे लोगों को जानना /सुनना/या पढना चाहिए ....(मेरी समझ से).............चाहे वो मेरी हो या दूसरों की ..............( गानों की बात नहीं कर रही ....वो तो झेलना ही पडेंगे आखिर मूड भी तो कोई चीज है ? बनाना तो पडता ही है न !)...........
मैंने अब तक जो पॉड्कास्ट किए है ..उसमे से कुछ सबूत प्रस्तुत है ......
सखिया आवा उडि़ चलीं..’
एक लघुकथा........
....एक गीत
कुछ कहने से बेहतर होगा.................सुनना..........
रक्तदान, देहदान महादान ...
बाल-उद्यान
आवाज
भोपाल त्रासदी
इनको सबने अच्छा ही बताया है ...........
आगे मैं यह कहना चाहती हूँ कि ------"क्या ये बेहतर नहीं होगा कि कहाँ ,किसने ,क्या कहा के बजाय ये बताएं कि आज कहाँ,किसने क्या अच्छा कहा !!!.."................................मैं पूछती हूँ कि लोग बुरी बातों का जिक्र
करते ही क्यूं है ?......................करेंगे ही नहीं तो वो फ़ैलेगी ही नहीं....................
इसे उदाहरण से समझ लें----------जब कोई एक बच्चा मेरे पास शिकायत करता है कि -फ़लां बच्चे ने मुझे गाली दी, अब सब गालीयां सबने सुनी थोडी रहती है ...पहले तो डिसाइड करना पडता है कि गाली है कि नहीं?.........इसमें बहुत समय खराब हो जाता है ...................इसलिए मैं तो शिकायत करने वाले बच्चे को ही एक चांटा डांटती हूँ (हाँ अब लगा नहीं सकते ..)कि -तुमने सुना ही क्यों?......और सुना तो तुम लिख कर दे दो ----क्या बोला ............मैं देखती हूँ क्या कर सकती हूँ.................अगर गाली हुई तो उसे बुलाएंगे ..........वरना ...............
गानों के लिए भी सबूत हैं मेरे पास --- क्यों गाती हूँ इस बात के भी सबूत हैं मेरे पास (सबूतों को बेह्तर करने केलिए गवाहों को वक्त दिया है ---....उचित समय पर उनकी अनुमति लेकर प्रस्तुत किया जा सकेगा ) ..........
वैसे तो कई तारीखों पर बहस करके समझौता कर लिया है मैने...........अब वे मेरे मित्र ही हैं . (पता बता पाने मे मैं असमर्थ हूँ------क्योंकि उनका कहना है कि एक बार किसी ने उनका पता दिया था तो सही पता होने के बाद भी गलत लोग आ पहूँचे थे .)....... ..........
फ़िर भी आप चाहें तो ---------------भविष्य में ऐसे सबूत भी दे पाने की कोशीश करूंगी कि हमारा समझौता हो चुका है........समझौता होने की खुशी मे मित्र को एक गीत भेंट देना चाहती हूँ . ..................
और एक संदेश भी :----
...बस अब और मुझे कुछ नहीं कहना .!!!................
सुन लिया..और जब समझौता हो ही गया है तो कुछ बोलने को बाकी नहीं रह जाता..अतः शुभकामना!!
ReplyDeleteलाजवाब प्रस्तुति धन्यवाद।
ReplyDeleteहम तो देखने वालो मै से है आप का मुक्कदमा इस लिये हम चुप रहेगे जी
ReplyDeleteएक निपटा-सुलझा मुक़दमा अच्छा लगा जी
ReplyDeleteसारे मुक़दमे समझौतों के साथ खत्म होते हैं यदि सोच पाज़िटिव है तो
itna acchha style hai...aur kahatin hain....likhnaa nahin jaanti....aur bhalaa likhnaa kaisaa hotaa hai....
ReplyDeleteएक समझौता परक पोस्ट :)
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