न गज़ल के बारे में कुछ पता है मुझे, न ही किसी कविता के, और न किसी कहानी या लेख को मै जानती, बस जब भी और जो भी दिल मे आता है, लिख देती हूँ "मेरे मन की"
बेशक अभिनव बधाई समीर जी और आप को
झूम झूम गया... मुग्ध हो गया इस जुगलबंदी पर..
यह प्रयोग बहुत सफल रहा!--जुगलबन्दी सुनकर मन प्रसन्न हो गया!
आनन्द तो मुझे भी बहुत आया..अभिनव प्रयोग रहा.
मुग्ध हो गया इस जुगलबंदी पर..
बहुत खूब! समीरलाल के स्वर में सुना था। अब आपको गाते हुये सुना तो और अच्छा लगा। बहुत सुन्दर!
अतिसुन्दर!!!!! मनमोहक, मनभावन!! :)
ये अभिनव प्रयोग बहुत ही सफल रहा..
jugalbandi bahut sundar
सुर का गुरुत्व और कविता की सुरीली शहनाई। मज़ा आ गया।
बहुत ख़ूब... आप और समीर जी को बधाई
चंचल नदी की नटखट धारा सा सुर अर्चनाजी काभेद भरे गहरे सागर का गांभीर्य लिए स्वर समीरजी काबेहद खूबसूरत प्रयोग...
अभिनव प्रयोग. ऐसी और पोस्टों का इंतज़ार है।
waah ...bahut sundar prayog ....badhaii evam shubhkamnayen ...!!
ADBHUT!
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बेशक अभिनव
ReplyDeleteबधाई समीर जी और आप को
झूम झूम गया... मुग्ध हो गया इस जुगलबंदी पर..
ReplyDeleteयह प्रयोग बहुत सफल रहा!
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जुगलबन्दी सुनकर मन प्रसन्न हो गया!
आनन्द तो मुझे भी बहुत आया..अभिनव प्रयोग रहा.
ReplyDeleteमुग्ध हो गया इस जुगलबंदी पर..
ReplyDeleteबहुत खूब! समीरलाल के स्वर में सुना था। अब आपको गाते हुये सुना तो और अच्छा लगा। बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteअतिसुन्दर!!!!! मनमोहक, मनभावन!! :)
ReplyDeleteये अभिनव प्रयोग बहुत ही सफल रहा..
ReplyDeletejugalbandi bahut sundar
ReplyDeleteसुर का गुरुत्व और कविता की सुरीली शहनाई। मज़ा आ गया।
ReplyDeleteबहुत ख़ूब... आप और समीर जी को बधाई
ReplyDeleteचंचल नदी की नटखट धारा सा सुर अर्चनाजी का
ReplyDeleteभेद भरे गहरे सागर का गांभीर्य लिए स्वर समीरजी का
बेहद खूबसूरत प्रयोग...
अभिनव प्रयोग. ऐसी और पोस्टों का इंतज़ार है।
ReplyDeletewaah ...bahut sundar prayog ....
ReplyDeletebadhaii evam shubhkamnayen ...!!
ADBHUT!
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