Sunday, September 12, 2010

क्या बात ...क्या बात...क्या बात ...

शब्द ने कहा भावों से
आया हूँ उबड़ खाबड़ राहों से
कहीं भाव बिखरे पड़े हैं
तो कहीं शब्द छिटके पड़े हैं
हम बनेंगे नहीं मीत
तो बताओ बनेंगे कैसे गीत
होता है जब माहौल रूहानी
तभी तो बनती है कोई कहानी
मैं अकेला कुछ नहीं कर पाउंगा
तुम साथ नहीं दोगे तो मर जाउंगा
आकर पास जरा मेरी तरफ़ देख
मिलकर बना लें हम कोई लेख
मिलन की खुशबू से
भीगो दें हम अपनी सविता
और शायद फ़िर हमारे प्यार से
जन्म ले कोई कविता ...

17 comments:

  1. कविता के स्रजन का नया माध्यम , सुंदर रचना , बधाई

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  2. बहुत सुन्दर!

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  3. कविता के ऊपर ही कविता तो अच्छी बनी है.. :)

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  4. वाह , क्या बात है ,क्या बात है ,
    क्या बात है ....


    सुन्दर अभिव्यक्ति ..

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  5. बहुत सुन्दर रचना!
    --
    कविता पढ़कर आनन्द आ गया!

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  6. भावों की तरलता में कविता जन्म लेने को तैयार रहती है।

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  7. क्या बात है, क्या बात है, क्या बात है.......कविता तो बन गई, क्या बात है!

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  8. अति सुंदर रचना, धन्यवाद

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  9. बस तभी से भाव शब्दों के भीतर बसते हैं !

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  10. sundar bhaav ...sundar rachna.

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  11. शब्द और भाव का लाजबाब तालमेल !

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  12. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 14 - 9 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
    कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  13. नयन.कनिटकर14 September, 2010 20:04

    बहूत सुन्दर रचना .शब्दो को अच्छा पिरोय हे.

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  14. बहुत ही सुंदर ....
    पहली बार पढ़ा कविता को कविता में ढलते हुए....
    बहुत अच्छा लगा

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  15. क्या बात है.......कविता तो बन गई,

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