न गज़ल के बारे में कुछ पता है मुझे,
न ही किसी कविता के,
और न किसी कहानी या लेख को मै जानती,
बस जब भी और जो भी दिल मे आता है,
लिख देती हूँ "मेरे मन की"
Friday, September 17, 2010
बता सकते हो?
कांटो में फंस चुकी हूँ ,हंसने को कहते हो क्यों
न ठौर न ठिकाना,बसने को कहते हो क्यों
एक भी सुराख ना मिला अब तक मुझे
यूं किरण बनकर चमकने को कहते हो क्यों...
हमारीवाणी को और भी अधिक सुविधाजनक और सुचारू बनाने के लिए प्रोग्रामिंग कार्य चल रहा है, जिस कारण आपको कुछ असुविधा हो सकती है। जैसे ही प्रोग्रामिंग कार्य पूरा होगा आपको हमारीवाणी की और से हिंदी और हिंदी ब्लॉगर के साथ-साथ अन्य भारतीय भाषाओँ और भारतीय ब्लागर के लिए ढेरों रोचक सुविधाएँ और ब्लॉग्गिंग को प्रोत्साहन के लिए प्रोग्राम नज़र आएँगे। अगर आपको हमारीवाणी.कॉम को प्रयोग करने में असुविधा हो रही हो अथवा आपका कोई सुझाव हो तो आप "हमसे संपर्क करें" पर चटका (click) लगा कर हमसे संपर्क कर सकते हैं।
बहुत अच्छा लिखा है
ReplyDeleteएक भी सुराख ना मिला अब तक मुझे
यूं किरण बनकर चमकने को कहते हो क्यों..
क्या बात है...
एक भी सुराख ना मिला अब तक मुझे
ReplyDeleteयूं किरण बनकर चमकने को कहते हो क्यों..
...vaah laajavaab.
सब कुछ तो कह दिया यहाँ ....
ReplyDeleteवाह क्या बात है! बहुत बढ़िया लिखा है आपने!
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसुन्दर रचना! "सच में" पर आने और सुन्दर विचार व्यक्त करने के लिये धन्यवाद!
ReplyDeleteकाफी अच्छी बन पड़ी है ये क्षणिका..
ReplyDeleteकिरण को अपना काम करना चाहिए !
ReplyDeleteसुन्दर क्षणिका
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है
ReplyDeleteअच्छी अच्छा लिखा है
ReplyDeleteहमारीवाणी को और भी अधिक सुविधाजनक और सुचारू बनाने के लिए प्रोग्रामिंग कार्य चल रहा है, जिस कारण आपको कुछ असुविधा हो सकती है। जैसे ही प्रोग्रामिंग कार्य पूरा होगा आपको हमारीवाणी की और से हिंदी और हिंदी ब्लॉगर के साथ-साथ अन्य भारतीय भाषाओँ और भारतीय ब्लागर के लिए ढेरों रोचक सुविधाएँ और ब्लॉग्गिंग को प्रोत्साहन के लिए प्रोग्राम नज़र आएँगे। अगर आपको हमारीवाणी.कॉम को प्रयोग करने में असुविधा हो रही हो अथवा आपका कोई सुझाव हो तो आप "हमसे संपर्क करें" पर चटका (click) लगा कर हमसे संपर्क कर सकते हैं।
टीम हमारीवाणी
आज की पोस्ट-
हमारीवाणी पर ब्लॉग पंजीकृत करने की विधि
क्योंकि इसी में जीवन है...संघर्ष से जूझकर प्राप्त जीवन!!
ReplyDeleteबहुत ही व्यग्रता समेटे पंक्तियाँ।
ReplyDeleteयह कविता ही है न।
ReplyDeleteउन्मुक्त जी को बतायेंगी तो हम भी सुन लेंगे जबाब...
ReplyDeleteवैसे है अच्छी. :)
भावनाओं का सुनामी
ReplyDeleteइतने कम शब्दों में ??
कमाल है .. वाह .. वाह
मुक्तक बहुत सुन्दर है!
ReplyDeletebahoot achchhe jazbat........
ReplyDeleteबहुत बढिया क्षणिका ।
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