Saturday, September 25, 2010

जस्ट फ़ॉर चेंज......

देवेन्द्र का गाया एक गीत-- पल-पल दिल के पास ...


मैं-- अफ़साना लिख रही हूँ...


मैं-- न जाने क्यों ...


मैं-- हा हा हा हा 


9 comments:

  1. अरे वाह...!
    सारे के सारे ही सैड-साँग्स!
    --
    मगर सभी सदाबहार हैं!

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  2. देवेंद्र जी की आवाज़ बहुत अच्छी है, लेकिन गला खोल कर गाएँ तो और ख़ूबसूरत असर पैदा होगा. शब्दों के अंत तक जाते जाते आख़ीरी शब्द गुम हो जाता है. हर रात यादोंकी बारात ले आए में आखिरी त नहीं खुलकर आता. अच्छा लगा. पहले अंतरे सए पहले उनके गला साफ करने की भी आवाज़ सुनाई दी. बिना म्यूज़िक के मैं के गाए सारे गाने आनंदित करते हैं.सुरों की कमी सलिल दा के गाने न जाने क्यूँ में दिखती है.

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  3. धन्यवाद शास्त्री जी,अली जी,प्रवीण जी व सलील जी ।
    @सलील जी,आपकी बात सही है,घर पर रिकार्ड किया है ,(अगर खुल कर गाते है तो पड़ोसी परेशान हो जायेंगे)"मै" आभारी हूँ-सारे गाने पसन्द करने के लिए,
    गाना कभी सीखा नहीं हमने, तो सुर को समझना बहुत मुश्किल होता है फ़िर भी बस शौक है और घर में तो कोई सुनता नहीं सो----

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  4. सुन्दर गीत...मधुर आवाज़...

    पुराने गीतों का मज़ा ही कुछ और है

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  5. सुन्दर गीत...मधुर आवाज़...

    पुराने गीतों का मज़ा ही कुछ और है

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